अलीगढ़, (हि.स.)। समाज में बेटियों के प्रति बढ़ रहीं घटनाओं को लेकर सभी अपने-अपने तरीके से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। प्रतिक्रिया देने में हमारे देश का युवा भी पीछे नहीं है। ऐसी ही एक प्रतिक्रिया मंविवि की छात्रा आयुषी रायजादा द्वारा कविता के माध्यम से दी गई है।
डर लगता है –
खेल कूद की उम्र में भी
अब गोद में बैठने से डर लगता है,
अनजानों से ही नहीं,
अब तो अपनो से भी डर लगता है!!
कोई प्यार से बुलाए,
तो कुछ हो जाने का डर लगता है,!!
अनजानों से ही नहीं,
अब तो अपनों से भी डर लगता है!!
रात होने से पहले घर वापस आ जाना,
शायद अब माँ कहना भूल गयी है,
क्योंकि दिन में भी बाहर भेजने से,
अब उसको भी डर लगता है!!
ये गलती नहीं उन छोटे कपड़ों की, न ही जिस्म की,
अब तो हिज़ाब पहनने वाली को भी डर लगता है!!
ये दरिंदें है साहब! इनकी नज़रों से ही डर लगता है।।
काँप जाती है रूह जब जांगो पर हाथ इनके जाते हैं,
सिकुड़ कर बैठ जाती हूँ,
जब दरिंदगी ये अपनी दिखलाते है!!
झकझोर के मेरे जिस्म को जब जिंदा ,
मुझे जलाते हैं,
चीख़ में मेरी तब वो डर दिखता है!!
ये दरिंदे है साहब!
इनकी नज़रो से ही डर लगता है!!
गर्भ में लड़की को मार देना,
शायद अब सही लगता है,
रेप होने के डर से,
ये पाप ढोना सही लगता है!!
बचाने बेटी को इन हैवानों से,
यही तरीका सही लगता है!!
ये दरिंदे है साहब!
इनकी नज़रों से ही डर लगता है!!
न जाने कब वो दिन आऐगा,
जब ये डर मेरे ज़हन से चला जाएगा!!
होकर बेख़ौफ निकलूंगी मैं भी घर से बाहर, परिवार को मेरे तब कोई खौफ़ न सताएगा।।
न जाने कब वो दिन आएगा?