इतिहास मे हुआ गुम टोंक का मीठा खरबूजा

Firoz Usmani

 

Tonk (फिरोज़ उस्मानी)। गर्मी का मौसम आते ही दादा-दादी व नाना-नानी की पहली पंसद टोंक का मीठा खरबूजा रहा है। बाजार से खरीदकर अपने परिवार-जन के साथ बैठकर इसकी मीठास का लुत्फ उठाते थे। पूरी गर्मियों तक घर के बूढ़े ,जवान व बच्चें बढ़े चाव से इसको खाते थे। लेकिन  बनास नदी मे अधांधुध बजरी अवैध दौहन से हुई पानी की कमी के चलते देश विदेश मे अपनी मीठास की एक अलग ही पहचान रखने वाला टोंक का मशहूर खरबूजा अपनी मीठास खौ चुका है।

 अन्य राज्यों से आ रहा है

गर्मी जेसे-जेसे अपने तेवर दिखा रही है, वेसे ही खरबूजों की आवक भी शुरू हो गई है। पूरी दुनिया मे अपनी मिठास के लिये जाने जाने वाला टोंक का खरबूजा समय के साथ अपनी वो मिठास खो चुका है। बरसों से टोंक में खरबूजा का व्यापार करने वाले अब अन्य राज्यों से खरबूजा लाकर बैचने पर मजबूर है। बावजूद इसके खरबूजों खाने वाले बढ़े-बुढ़े शौकिन लोगो मे इसके प्रति अब भी काफी महत्त्व है ।

ये तो टोंक का खरबूजा है’’

राजस्थान मे गंगा-जमूनी संस्कृति वाला यह शहर खरबूजो की मिठास का शहर भी रहा था, यहां के खरबूजे देश-विदेश मे निर्यात किये जाते थे और बाहर के लोग इसे खाते ही इसकी पहचान के रूप मे कह देते थे ‘‘अरे भाई यह तो टोंक का खरबूजा है’’। बनास नदी के पानी से कई दशको तक खरबूजो की मिठास ने टोंक का नाम देश मे ही नही  विदेशो मे भी मशहूर किया।

 

उल्लेखनीय है कि लगभग तीन-चार दशक पूर्व टोंक के खरबूजो की मिठास राजस्थान से बाहर जाकर दिल्ली, मुम्बई, गुजराज के साथ विदेशो मे अपनी पहचान रखते थे, लेकिन समय के बदलाव ने खरबूजो को मीठे की जगह फ ीका कर दिया है, जो खरबूजो पहले मिलता था उसका अंशमात्र भी आज टोंक को नही मिल पाता।

  सुखी बनास ने लील लिया खरबूजा

खरबूजो के व्यापारी बताते है कि इसका प्रमुख कारण बीसलपुर बांध का बनना रहा है, क्योंकि बीसलपुर बांध बनने से पूर्व टोंक की बनास नदी मे 12 महिने पानी रहता था, जिसके फ लस्वरूप यहां पर खरबूजो का व्यवसाय विकसित हुआ पर आज बनास नदी 12 महिने सूखी रहती है । साथ ही रही सही कसर बनास नदी क्षेत्र मे धडल्लें से हो रहें अवैध बजरी दौहन ने पूरी कर दी।

 

जिसके चलते बनास नदी मे अब उचें-उचें गड्डें व व टीले हो जाने से वहां खरबूजो की खेती कर पाना नामूमकिन हो गया है। जिसके कारण टोंक के खरबूजो की बात कहानी बनकर रह गई है और वर्तमान टोंक मीठे खरबूजो को तरस रहा है। अब टोंक के  व्यापारियो को खरबूजो की बाहर से आवक करनी पड रही है।

गायब हुई खरबूज़े की मिठास

खरबूजा बैचकर घर चलाने वाली मधु सैनी का कहना है कि उसका परिवार कई पीढियों से इस व्यवसाय को कर रहे है और उसके बाप-दादा कहते थे कि टोंक के खरबूजो की जो पैदावार होती है और एक-एक खरबूजो मे किसान की मेहनत, मीठास के रूप झलकती थी, पर अब खरबूजे मे मिठास गायब हो चुकी है।

 

वही ठेला लगाकर खरबूजे बेचने वाले इकबाल, जुम्मा ने बताया कि हमने वो जमाना भी देखा था जब इसकी पैदावार होती थी हर किसान के खरबूजे की बिक्र ी के बाद खुश होकर जाता था पर आज व्यापारी बाहर से खरबूजा मंगवाते है और टोंक मे अब नाममात्र को खरबूजो की खेती होती है वह बाडी के द्वारा होती है, जिसमे मिठास तो नही होती पर किसानो को खरबूजो की थोडी आवक हो जाती है। ज्यादातर खरबूजा अब अन्य राज्यों से लाकर टोंक मे बैचा जाता है, लेकिन उसमे वो मीठास नही मिल पाती है।

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Firoz Usmani Tonk : परिचय- पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 15 वर्षो से संवाददाता के रूप में कार्यरत हुंॅ, 9 साल से राजस्थान पत्रिका ग्रुप के सांयकालीन संस्करण (न्यूज़ टुडे) में जिला संवाददाता के रूप से कार्य कर रहा हंू। राजस्थान पत्रिका न्यूज़ चैनल में भी अपनी सेवाएं देता रहा हूं। एवन न्यूज चैनल में भी संवाददाता के रूप में कार्य किया है। अपने पिता स्व. श्री मुश्ताक उस्मानी के सानिध्य में पत्रकारिता की क्षीणता के गुण सीखें। मेरे पिता स्व.श्री मुश्ताक उस्मानी ने भी 40 वर्षो तक पत्रकारिता के क्षैत्र में कार्य किया है। देश के कई बड़े न्यूज़ पेपर से जुड़े रहे। 10 वर्ष दैनिक भास्कर में ब्यूरों चीफ रहें।
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