शराब जैसे नशों के प्रयोग से माँ-बहन, बेटी की पहचान जब खत्म हो जाती है-पंकज महाराज 

Ahmed N
By Ahmed N

जहाजपुर (आज़ाद नेब) प्रेम व सौहार्द का पाठ पढ़ाते, शाकाहार-सदाचार का सन्देश देते, मद्यनिषेध की अपील करते, गुरु की महिमा का गुणगान करते, जीव कल्याण का सुलभ रास्ता बताते तथा अच्छे समाज के निर्माण हेतु सत्संग सन्देश देते हुये जयगुरुदेव धर्म प्रचारक संस्था, मथुरा के अध्यक्ष एवं विख्यात् सन्त बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के उत्तराधिकारी पूज्य पंकज जी महाराज दशहरा मैदान पंडेर अपने काफिले के साथ पहुंचे तो नगर के स्थानीय भाई, बहनों ने बैण्डबाजे, सुसज्जित कलशों, पुष्पों के साथ महाराज जी का भव्य स्वागत किया।

आज यहां सत्संग से पूर्व राजस्थान प्रांत के अध्यक्ष विष्णु कुमार सोनी, उपाध्यक्ष हरिनारायण गुर्जर भोपा, पवन माली, मुकेश जाट सरपंच, भैरू गुर्जर, अनिल सोनी प्रवक्ता संगत जिला भीलवाड़ा, लोकेश सोनी, गोपाल, दुर्गालाल, देशराज ने पुष्पहार द्वारा पूज्य महाराज जी का स्वागत किया।

अपने उद्बोधन में पूज्य महाराज जी ने कहा कलयुग की प्रभु प्राप्ति की सबसे सरल साधना सुरत शब्द योग (नामयोग) की साधना पर प्रकाश डालते हुये ‘‘सतयुग त्रेता द्वापर बीता, काहु न जानी शब्द की रीता। कलयुग में स्वामी दया विचारी, परगट करके षब्द पुकारी।’’ पंक्तियॉ उद्धृत की और कहा कलयुग में पिछले युगों की साधनायें सम्भव नही है।

प्रभु ने दया करके सन्तों को इस कलयुग में भेजा और उन्होंने आकर रचना का रहस्य खोलते हुये बताया कि सारी आत्मायें ‘शब्द’ पर, जो बाहर के कानों से नहीं सुनाई देता, उतारकर लाई गई। अब सुरत (आत्मा) का सम्बन्ध शब्द से टूट गया अब उसे ज्ञान नहीं रहा कि हम कहाँ थे? कहाँ से आये और मरने के बाद कहाँ जायेंगे।

सन्तों ने यह भी रहस्य खोला कि आत्मा दोनों आँखों के मध्य भाग में विराजमान है, उसमें परासृश्टि (आन्तरिक रचना) को देखने के लियेे दिव्य दृश्टि है, आकाशवाणी, अनहदवाणी शब्द को सुनने का तीसरा कान है। इसकी साधना के लिये प्रभु को प्राप्त करने वाले सन्त सतगुरु की आवश्यकता है। उनकी खोजकर अपनी आत्मा का कल्याण करा लेना चाहिये नहीं तो यह जीवन निरर्थक चला जायेगा।

नर्कों में कठोर यातनायें सहनी पड़ेगी। महापुरूष जब साधना करके ऊपर के मण्डलों में जाते हैं तो जीवों को मिल रही यातनाओं का दृष्य देखते है तो द्रवित होकर जीवों को चेताते है। उन्होंने कहा भौतिक विद्या की चोटी से आध्यात्मिक विद्या का गूढ़ ज्ञान रहस्य प्रारम्भ होता है, जिसे पाने के लिये सबसे पहले चरित्रवान और मानवतावादी बनना होगा। महाराज जी ने शाकाहार अपनाने और नशा त्यागने की पुरजोर अपील की। ‘‘तिल भर मच्छी खाइ कै, कोट गऊ दे दान।

काशी करवट ले मरे, निष्चय नरक निदान।’’ पंक्तियाँ उद्धृत करते हुये कहा मानव शाकाहारी प्राणी है इसके विपरीत मांसाहार के सेवन से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो रही है और शराब जैसे नशों के प्रयोग से माँ-बहन, बेटी की पहचान जब खत्म हो जाती है, तो अच्छे बुरे कार्य का ज्ञान कैसे होगा?

उन्होंने गुरू की महिमा और जयगुरुदेव नाम की महिमा का बखान करते हुये बताया कि गुरू की महिमा अगम अपार है। बिना गुरू के कोई भी इस संसार रूपी समुद्र से पार नहीं जा सकता है।

 

‘‘जयगुरुदेव’’ नाम को हमारे गुरू महाराज परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी ने जगाकर इसमें अपरम्पार षक्ति भरी है, जिससे लोगों का लोक-परलोक दोनों बनता है। संत पंकज जी ने बताया आगरा-दिल्ली बाई पास पर मथुरा में वरदानी जयगुरुदेव नाम योग साधना मन्दिर बना है, जहां एक बुराई चढ़ाने पर एक मनोकामना की पूर्ति होती है। यहीं पर आगामी 20 से 24 दिसम्बर तक 75वां जयगुरुदेव वार्षिक सत्संग-मेला आयोजित होगा। आप सभी को निमन्त्रण है मथुरा पधार कर दया, दुआ, आशीर्वाद प्राप्त करें।

इस अवसर पर संस्था के महामन्त्री बाबूराम यादव, जयगुरुदेव आश्रम मथुरा के प्रबन्धक सन्तराम चौधरी, बिहार प्रदेश के अध्यक्ष मृत्युन्जय झा, दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष विजय पाल सिंह आदि कई संभ्रान्त स्थानीय जन मौजूद रहे।

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