भयेभ्य स्त्राही नो देवी दुर्गे माॅं नमोस्तुते ।।
आज के अर्थ प्रदान युग में मानव का लक्ष्य यश, मान प्राप्त करने के साथ धन, भवन, वाहन आदि को प्राप्त कर परिपूर्ण होना है । अतः मानव अपने प्रयत्नों से सब कुछ प्राप्ति करने का प्रयत्न करता रहता है क्योकि क्रियाशील मानव का जीवन ही वास्तविक जीवन है । जीवन में प्राप्ति तब तक संभव नही जब तक समय क्षण योग का ज्ञान नही होगा । क्योकि प्रत्येक क्षण अपने-आप में अलग-अलग महत्व लिए हुये होता है । भक्ति, साधना, आराधना कर्म से जुडी है । इनका समन्वय किसी पर्व योग मुहुर्त में होता है तो मानव जीवन का निर्माण स्वतः ही सभंव हो जाता है ।
नवरात्रि पर्व नवरात्रि याने जीवन में व्याप्त अंधकार को समाप्त कर प्रकाश की ओर अग्रसर कर जीवन को सामर्थ बनाता है । साथ ही आने वाली विपदाओं से छुटकारा दिलवाता है, नवरात्रि पर्व मानव में नवीन चेतना जागृत करता है साथ ही दिशा-निर्देश करके सही मार्ग की ओर अग्रसित करता है । प्रत्येक मानव में प्रकृति अनुसार सात्विक, राजस, तामस, त्रिगुणात्म गुण होते है । साधक जो गुरू के सानिध्य में मंत्रो द्वारा साधना कर शक्ति प्राप्त करता है । आराधक जो आत्मा से लीन होकर आराधना करता है एंव मोक्ष चाहता है । भक्त जो निष्ठा एंव भाव से समर्पित होता है एंव परिस्थितियों से संघर्ष कर सुयोग का लाभ उठा लेता है ।
इस विशेष क्षण में माॅं-दुर्गा की की गई भक्ति आराधक को प्रफृल्लित विकसित करके सौभाग्य प्रदान करती है जिस महाशक्ति की उपासना तीनो लोको के स्वामी ब्रहमा, विष्णु, महेश एंव सभी देवतागण करते है जो तीनो देवो से बढकर है जो सूक्ष्म एंव स्थूल शरीर से परे महाप्राण आदि शक्ति है वह स्वंय परब्रहमा स्वरूप है, जो केवल अपनी इच्छा मात्र से ही सृष्टि की रचना चल-अचल भौतिक प्राणी वस्तुओं का पालन, रचना व संहार करने में समर्थ है । यधपि वह निर्गुण स्वरूप है किन्तु धर्म की रक्षा व दुष्टों के नाश हेतु शक्ति ने अवतार धारण किये है ।
श्रीमद भागवत में स्ंवय देवी ने ब्रहमा जी से कहा है कि एक ही वास्तविकता है वह है सत्य, में ही सत्य हॅंू,, मैं ना तो नर हॅंू ना नारी एंव ना ही प्राणी लेकिन कोई वस्तु ऐसी नही जिसमें में, विधमान नही हॅंू । प्रत्येक वस्तु में शक्ति रूप में रहती हॅंू । देवीपुराण में स्ंवय भगवान विष्णु स्वीकार करते है कि वो मुक्त नही है । वो कठपुतली की भांति कार्यरत है, कठपुतली संचालन की डोर तो महादेवी के हाथो में है, ब्रहमाजी सृष्टि की रचना करते है तो विष्णु जी पालन करते है एंव शिवजी संहार करते है जो केवल यंत्र की भांति कार्यरत है, जो शक्ति की कठपुतली मात्र है ।
महादानव दैत्यराज के अत्याचार से तंग आकर समस्त देवतागण ब्रहमाजी के पास गये एंव दैत्यराज से मुक्ति दिलाने की अर्चना की ।, तब ब्रहमाजी ने बताया कि दैत्यराज की मृत्यु कुंवारी कन्या के हाथ से होगी । तब सभी देवताओ ने मिलकर अपने सम्मिलित तेज से देवी के इस शक्ति रूप को प्रकट किया । भगवान शंकर के तेज से देवी का मुॅंह, यमराज के तेज से केश, भगवान विष्णु के तेज से भुजाएंे, इन्द्र के तेज से स्तन, पवन के तेज से कमर, वरूण के तेज से जाघ्ॅंो, पृथ्वी के तेज से नितम्ब, ब्रहमा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से पैरों की उंगलियां, वस्तुओं के तेज से भोहे, वायु के तेज से कान एंव अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने ।
देवी का शक्ति रूप प्रकट होने पर शिवजी ने शक्ति व बाणों का तरकस, यमराज ने दण्ड, काल ने तलवार, विश्वकर्मा ने परसा, प्रजापति ने मणियों की माला, वरूण ने दिव्य शंख, हनुमान जी ने गदा, शेषनाग ने मणियों मे ंसुशोभिति नाग, इन्द्र ने वज्र, भगवान श्री नारायण ने धनुष, वरूण ने पाश व तीर ब्रहमा ने चारो वेद, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह, समुद्र ने दिव्य वस्त्र एंव आभूषण दिये जिससे शक्ति देवी 18 भुजाओं वाली प्रकट हुई । सभी के द्वारा देवी की स्तुति की गई कि शक्ति सदैव अजन्मी और अविनाशी है यही आदि यही अनन्त है जो ब्रहमा विष्णु महेश सहित देवताओं व मनुष्यों द्वारा पूज्य है ।
शक्ति के नौ अवतार है जिन्हे नवदुर्गा कहते है –
1. शैलपुत्री 2. ब्रहमचारिणी 3. चन्द्रघंटा
4. कुष्मा डा 5. स्कन्दमाता 6. कात्यायनी
7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्वियात्री आदि
श्री दुर्गा सप्तशती में देवी के नौ अवतारों का वर्णन है ।
माॅं की शक्ति तो वह शस्त्र है जिसके माध्यम से
किसी भी महासग्रांम को आसानी से जीता जा सकता है –
शक्ति की प्राप्ति माॅं दुर्गा से गतिशील भक्त को होती है । भाग्य का रोना रोने वाले या असहाय को नही सृष्टि की अनन्त शक्ति प्राणी मात्र के सत्कर्म पुरूषार्थ एंव कर्तव्य परायणता में निहित है कर्म ही शक्ति का मूलाधार है वह परम शक्ति प्राप्त करने का मार्ग है । अतः शक्ति प्राप्त कर जीवन को आनन्दमयी, सुखी बनाकर विकास करना है जो शक्ति पूजन करना चाहिये क्योकि शक्ति स्वरूप माॅं दुर्गा की आराधना कर्म, निष्ठा और कर्तव्य परायण बनाकर जीवन को शक्ति प्रदान करती है ।
माॅं देवी के 108 नाम है जिनका योग 9 है माॅं ने नौ अवतार धारण किये है । साधना में ली जाने वाली माला के मणियो ंकी संख्या 108 है जिनका योग 9 है आकाशीय सौरमण्डल में नौ ग्रह है नवरात्रि का योग नौ है अंको की संख्या भी नौ है जो शक्ति की साधना एंव भक्ति का योग है ।
वैज्ञानिक सृष्टि से अणुबम, बिजली, बेतार, यान, वायुयान आदि शक्ति उर्जा की देन है । शक्ति बिना प्राणी निर्जिव है । अतः सम्पूर्ण ब्रहामंाड देवी का प्रतिबिम्ब छाया मात्र है । समस्त भौतिक पदार्थेा एंव जीवों में शक्ति देवी द्वारा ही चेतना व प्राण का संचार होता है । इस नश्वर संसार में चेतना के रूप में प्रकट होने से देवी को चित स्वरूप मणी माना जाता है । प्रत्येक मानव में भी शक्ति अर्थात उर्जा है जैसे इंजन से फालतू भाप निकाली जाती है उसी प्रकार मानव भी व्यर्थ में अपनी उर्जा नष्ट करता है, किन्तु जिनकी शक्ति संगीत, खेलकूद, लिखने-पढने में शोध में विज्ञान की खोज में साधना, समाधि में खर्च होती है वह व्यर्थ नही जाती ।
सामान्य से सामान्य गृहस्थी मानव द्वारा माॅं की आराधना कर शक्ति प्राप्त की जा सकती है जिससे जीवन में पूर्ण प्रज्ञावान चेतन्य तथा सोलह कला पूर्ण व्यक्तित्व बन सकता है । इसके लिए कही भटकने या सन्यास लेने की आवश्यकता नही आवश्यकता केवल लग्न से प्राप्त करने की आकांक्षा, आवश्यकता भक्ति साधनों की जिनका सीधा संबंध मन से, श्रद्वा से, विश्वास से है । अतः माॅं की शरण में जाना ही मानव कल्याण है ।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे स्वार्थ साधिके ।
शरण्ये अम्बके गौरी नारायणी नमो प्रस्तुते ।।
भगवती दुर्गा आप मंगल स्वस्थ है । समस्त भक्तों का कल्याण करने वाली है । मैं आपकी शरण में हॅू आप मेरी रक्षा करें ।

मनु ज्योतिष एंव वास्तु शोद्य संस्थान
बडवाली हवेली के सामने सुभाष बाजार टोक (राज.) 304001
मो. 9413129502, 9261384170