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टोंक रत्न धन्ना भगत: अनन्य भक्ति के कालजयी पर्याय भक्त शिरोमणि धन्ना जी , सुनते हैं उनके खेत में स्वयं विष्णु भगवान ने रूप बदलकर 'हाळी' का काम किया था - Dainik Reporters

टोंक रत्न धन्ना भगत: अनन्य भक्ति के कालजयी पर्याय भक्त शिरोमणि धन्ना जी , सुनते हैं उनके खेत में स्वयं विष्णु भगवान ने रूप बदलकर ‘हाळी’ का काम किया था

liyaquat Ali
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Tonk News/सुरेश बुन्देल।  कहते हैं कि भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। भगवान कब, किसपे और कितना प्रसन्न हो जाएं, कहा नहीं जा सकता? भारतीय इतिहास में भक्त रैदास, भक्त प्रहलाद, मीरा बाईं इत्यिादि कई उदाहरण हैं, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ईश्वर को उन पर कृपा करनी ही पड़ी। मन शुद्ध और सच्चा हो तो किसी प्रकार का धार्मिक पाखण्ड करने व आडम्बर रचने की जरूरत नहीं। कहा भी गया है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’ मध्यकालीन भारत में पैदा हुए संत रामानंदाचार्य के 12 प्रमुख शिष्यों ने जिस तरह भक्ति आन्दोलन के माध्यम से समाज को शुचिता व आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाया, उसने समाज को नैतिक मूल्यों में प्रवृत्त करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके एक शिष्य के रूप में धन्ना भगत का नाम भी आता है, सौभाग्य से जिनका जन्म टोंक जिले के धुआं कलां ग्राम में 20 अप्रैल 1415 तदनुसार विक्रम संवत 1472 में हुआ था।

ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक कालान्तर में चौरू के रहने वाले रामेश्वर लाल जाट अभयनगर (धुआं कलां- देवली ) आकर बस गए थे, यहीं पर बालक धन्ना का जन्म हुआ। गरीब कृषक परिवार में पैदा हुए धन्ना का बचपन अभावों में बीता किन्तु परवरिश धार्मिक वातावरण में हुई। कहते हैं कि धन्ना के घर साधु- संतों की आवाजाही हमेशा बनी रहती थी, जिनकी बातें सुनने के कारण बालक धन्ना का रूझान भक्ति की तरफ स्वत: ही उन्मुख हो गया। किशोरावस्था में उनके पिता ने धन्ना को पशु चराने का सौंप दिया। धन्ना भगत के बारे में कई किस्से- कहानियां सुने और सुनाए जाते हैं।

किवदन्तियों के अनुसार भगवान के बारे में पूछताछ करने की वजह से एक बार मंदिर के पुजारी ने धन्ना को एक बेकार सा पत्थर कपड़े में लपेटकर पकड़ा दिया और कहा कि यही भगवान हैं। इसकी एवज में मंदिर के पुजारी ने धन्ना से गाय हथिया ली। खुश होकर धन्ना उस पत्थर को घर ले गए और सेवा- पूजा करने लगे। भगवान के साक्षात्कार करने की जिज्ञासा धन्ना के मन में थी, लिहाजा उन्होंने जिद ठान ली कि जब तक भगवान स्वयं प्रकट हो कर खाना नहीं खाएंगे, तब तक मैं भी नहीं खाऊंगा। सुनते हैं कि धन्ना के भोलेपन, निश्छल भावना और सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए तथा भोजन किया।

इसी प्रकार कहा जाता है कि धन्ना के छोटे भाई ने चतुराई से जमीन के बंटवारे के वक्त उपजाऊ खेत तो स्वयं ले लिया और भोले- भाले धन्ना को बंजर खेत दे दिया। बंजर खेत में फसल नहीं होने के कारण जीवन- यापन का संकट पैदा हो गया, तब किसी ने धन्ना से ये कहा कि इस खेत में केवल ठाकुर जी (भगवान विष्णु) ही फसल उगा सकते हैं। यह सुनकर धन्ना भगत ने भगवान से लौ लगाने के लिए कठोर साधना की और अन्न- जल तक त्याग दिया।

बताते हैं कि भगवान विष्णु धन्ना की भक्ति से प्रसन्न होकर ‘हाळी’ के रूप में अवतरित हुए और उस बंजर खेत में दिन- रात रखवाली करके बहुत अच्छी फसल उगाई। धन्ना भगत का शेष जीवन भगवान विष्णु की आराधना में बीता और वे अनन्य भक्ति के मार्ग पर चलते हुए 1475 में मोक्ष को प्राप्त हुए। तिथि के हिसाब से धन्ना भगत का जन्म तुलसीदास से भी पूर्व हुआ। #उनका जन्म गुरू नानक देव जी के अवतरण से 53 वर्ष पूर्व का माना जाता है।

कारण कुछ भी रहे हों लेकिन जो स्थान धन्ना भगत को हिन्दू धर्म में मिलना चाहिए था, दुर्भाग्य से नहीं मिला। उन्हें सर्वाधिक मान- सम्मान देने का श्रेय केवल सिक्ख धर्म को जाता है। उनकी स्मृति में धुआं कलां में ‘भक्त शिरोमणि धन्ना भगत साहिब’ गुरूद्वारा भी स्थापित किया गया है, जहां उनकी 600 वीं जयन्ती भव्य रूप में मनाई जा चुकी है। सिक्खों के पवित्र ग्रंथों में भी भगत जी की स्तुतियों का उल्लेख मिलता है।

मीरा बाई भी धन्ना भगत का नाम अपने भजनों में लिया करती थीं। मशहूर अभिनेता दारा सिंह ने भी धन्ना भगत पर एक फिल्म बनाई है। आज भी पंजाब में जट्ट महासभा बाकायदा धन्ना भगत की जयंती मनाती है।

सुरेश बुन्देल- टोक @ कॉपीराइट

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