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शायर मखमूर सईदी की बेगम तंगहाली में, कभी महलों में रहती थी, आज सर छुपाने को आसरा तक नही, - Dainik Reporters

शायर मखमूर सईदी की बेगम तंगहाली में, कभी महलों में रहती थी, आज सर छुपाने को आसरा तक नही,

Dr. CHETAN THATHERA
3 Min Read

Tonk News /फ़िरोज़ उस्मानी। कभी नवाबो की तरह जीवन जीने वाली अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त टोंक के मशहूर शायर मखमूर सईदी की 75 वर्षीय पत्नी सईद उन्नीसा बेगम इन दिनों फाखाकाशी का जीवन व्यतीत कर रही है। सर छुपाने के लिए कोई आसरा तक नही है। दर दर की ठोकरे खाने के बाद बहीर क्षेत्र में दूर की एक ननद के छोटे से कमरे में गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रही है। अपने हालातो के बारे में जब चर्चा करती है तो फूट फूट कर रोने लगती है,औलाद ना होने का भी गम उन्हें काफी सताता है।

रोते हुए वो बताती है कि कभी दिल्ली में तीन मंजिला इमारत में रहती थी,जिसके आगे पीछे नोकर चाकर हुआ करते थे, खाने पीने की कोई कमी नही थी।वो अपने पति शायर मखमूर सईदी के साथ टोंक आया करती थी तो रिश्तेदारों में उनसे मिलने के लिए होड़ लग जाया करती थी, महफिले जमा करती थी। लेकिन दस वर्ष पूर्व पति की मृत्यु के बाद हालातों ने ऐसी करवट ली कि अपनो ने भी साथ छोड़ दिया। जो भी कुछ था वो भी उनके करीबियों की वजह से खत्म हो गया। इतने बड़े शायर की विधवा के इन हालातो को हर कोई नज़र अंदाज़ किए हुए है। जबकि मखमूर सईदी का नाम उर्दू शायरी में बड़े अदब से लिया जाता है।

मखमूर सईदी का असली नाम सुल्तान मो. खान था,लेकिन उन्हें उनके उपनाम से जाना जाता है। उनका जन्म 31 दिसम्बर 1934 में टोंक में हुआ था, टोंक के खलिलिया मदरसे में अपनी शुरुआत की शिक्षा प्राप्त की ।

बाद में उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से उर्दू में एमए किया, मशहूर शायर बिस्मिल सईदी से शायरी के गुण सीखे, बाद में वो दिल्ली चले गए, वो पत्रकारिता से भी जुड़े रहे,सईदी ने फिल्मी संवाद भी लिखे। 1958 से 1975 तक दिल्ली में निकलने वाले तहरीक में एडिटर रहे, तथा सन 1994 से 1999 तक दिल्ली उर्दू अकादमी के सेकेट्री भी रहे। इसके साथ ही भारत सरकार की कौमी उर्दू कॉंसिल की मैगज़ीन उर्दू दुनिया व फिक्रो फन के सलाहकार रहे।

केंद्रीय साहित्य अकादमी सहित कई उर्दू अकादमियों से सईदी को सम्मान भी मिला। राजस्थान सरकार द्वारा सन 1998 में उन्हें राजस्थान गौरव से सम्मानित किया। उनकी शायरी के कलाम से उन्हें देश मे ही नही बल्कि विदेश में पहचान दिलाई। उर्दू शायरी में उनका नाम बड़े अदब से लिये जाता है। दस वर्ष पूर्व मखमूर सईदी के इंतेक़ाल हो गया। टोंक से फ़िरोज़ उस्मानी की रिपोर्ट

1. मखमूर सईदी की शायरी ।
हम कि फिर तेरी हक़ीक़त पे नज़र कर न सके

ज़िंदगी तू ने हमें ख़्वाब दिखाए क्या क्या

2. अपनी किस्मत हूँ उलझता ही चला जाता हूँ मैं,
तेरी तकदीर नहीं हूँ कि संवरता जाऊँ

 

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम