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नकारात्मक भाव रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन का पतन कर लेते है - संत सुधा सागर - Dainik Reporters

नकारात्मक भाव रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन का पतन कर लेते है – संत सुधा सागर

liyaquat Ali
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दूनी (हरि शंकर माली) । देवली उपखण्ड के श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ‘सुदर्शनोदय’ तीर्थ आँवा मे चल रहे चातुर्मास मे महाराज ससंग मे मुनि श्री सुधा सागर जी ने अपने मंगल प्रवचनों मे कहा की तीन तरह से जातक पाप का भागी बनता है : मन में दूसरों के प्रति इर्ष्या भाव रखना , वाणी द्वारा दूसरों को कटुवचन कहना व शारीरिक रूप से दूसरों का अहित करना , और पुण्य प्राप्त करने के बहुत से मार्ग है जैसे :

– परमपिता परमेश्वर की आराधना करना , दान करना , जरुरतमंद की सहायता करना , दूसरों को पाप करने से रोकना, अपने माता-पिता की सेवा करना, पशु-पक्षियों को भोजन खिलाना आदि । सामान्य शब्दों में सबसे बड़ा पाप दूसरों का अहित करना है और किसी जरूरतमंद व्यक्ति की बिना किसी स्वार्थ के मदद करना यानि परोपकार करना सबसे बड़ा पुण्य है ।

दान का महत्व

मुनि श्री ने कहा की श्रावक का प्रमुख धर्म दान पूजन है। पहला धर्म श्रमण धर्म तथा दूसरा धर्म श्रावक धर्म है। गृहस्थ का धर्म प्रवृत्ति प्रधान धर्म हैं। देने का नाम दान है, सर्वस्व दे देना त्याग है। मुनि श्री 108 सुधा सागर जी महाराज ने आहार दान के महत्व को बताते हुवे कहा की सप्त व्यसन के त्याग से शुद्धि श्रद्धा तुप्टि आदि सप्त गुणो से युक्त श्रावक के द्वारा प्रतिग्रहण उच्च स्थान आदि नवधा भक्ति पूर्वक चक्की चूल्हा आदि पांच सूनाओ से और कृषि आदि पट् आरंभो से रहित आर्यों का मुनि आर्यों का आदि सुपात्रो का यथा योग्य जो आहार दान औपध दान आदि के द्वारा आदर सत्कार किया जाता है वह दान है। सात्विक, राजस और तामस, इन भेदों से दान तीन प्रकार का कहा गया है। जो दान पवित्र स्थान में और उत्तम समय में ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जिसने दाता पर किसी प्रकार का उपकार न किया हो वह सात्विक दान है। अपने ऊपर किए हुए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से अथवा विवशतावश जो दान दिया जाता है वह राजस दान कहा जाता है। अपवित्र स्थान एवं अनुचित समय में बिना सत्कार के, अवज्ञतार्पूक एवं अयोग्य व्यक्ति को जो दान दिया जात है वह तामस दान कहा गया है।

जैन ग्रंथों में पात्र, सम और अन्वय के भेद से दान के चार प्रकार बताए गए हैं। पात्रों को दिया हुआ दान पात्र, दीनदुखियों को दिया हुआ दान करुणा, सहधार्मिकों को कराया हुआ प्रीतिभोज आदि सम, तथा अपनी धनसंपत्ति को किसी उत्तराधिकारी को सौंप देने को अन्वय दान कहा है। दोनों में आहार दान, औषधदान, मुनियों को धार्मिक उपकरणों का दान तथा उनके ठहरने के लिए वसतिदान को मुख्य बताया गया है। ज्ञानदान और अभयदान को भी श्रेष्ठ दानों में गिना गया है।

नकारात्मक भाव रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन का पतन कर लेते है

प्रवचन पाण्डाल में परम पूज्य मुनि पुंगव सुधा सागर महाराज ने धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि भगवान द्वारा प्राप्त सबसे मूल्यवान उपहार यह मानव शरीर ही तो है । अन्य जीवों की अपेक्षा भगवान ने मानव को एक ख़ास चीज़ प्रदान की है बुद्धि । बुद्धि(मस्तिष्क) के बल पर मानव असंभव कार्यों को भी संभव कर दिखाता है । एक अच्छा और सुविधाजनक जीवन जीने की कला भी इस बुद्धि की देन है । मानव मस्तिष्क में हर समय विचारों की उथल-पुथल चलती रहती है । मनुष्य का मस्तिष्क कभी भी सोचना बंद नहीं करता । अब यह पृथक-पृथक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसका मस्तिष्क सकारात्मक भाव रखता है या नकारात्मक भाव । नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति सुख से हमेशा-हमेशा के लिए वंचित हो जाते है और साथ ही बहुत सी मानसिक व्याधियों का भी शिकार होने लगते है । जिस प्रकार एक दीमक(कीड़ा) लकड़ी को धीरे-धीरे खोखला कर देती है ठीक वैसे ही नकारात्मक भाव रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन का पतन कर लेते है ।

आत्मविश्वास से शक्ति का संचार होता

सकारात्मक सोच सही मायने में एक अच्छा और कुशल जीवन जीने की कला है । सकारात्मक द्रष्टिकोण आनंद की अनुभूति देता है । कभी-कभी जीवन में हर तरफ से दुखों और तकलीफों से घिरने के बाद भी सकारात्मक भाव रखते हुए यह विश्वास बनाये रखना कि सब ठीक हो जायेगा हमें कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है । नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति थोड़े से दुःख और कठिनाई अनुभव करते ही खुद को असहाय महसूस करने लगते है । सकारात्मक सोच रखने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मविश्वास से शक्ति का संचार होता है सकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति मुश्किल से मुश्किल परिस्तिथियों में भी अपना आपा नहीं खोते व शांत रहकर समस्या का हल निकाल लेते है ।

आज के समय में दाम्पत्य जीवन और परिवार बिखरने का सबसे बड़ा कारण ही मन में नकारात्मक भाव का आना है । अपने जीवनसाथी और माता पिता भाई के प्रति नकारात्मक नजरियाँ आपसी रिश्तों में तनाव बढ़ाने के साथ-साथ हमेशा के लिए दूरियाँ बना देता है ।|जीवन में एक कामयाब इंसान बनने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सकारात्मक सोच का ही होता है । नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति तो विरासत में मिली धन-सम्पति और मान-सम्मान भी खो देते है ।

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