Tonk News(फ़िरोज़ उस्मानी। टोंक का एक हज़ार 75 वां स्थापना दिवस आज परंपरागत रुप से पुरानी टोंक स्थित गढ़ में मनाया गया। टोंक स्थापना समिति द्वारा ये कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कलेक्टर गौरव अग्रवाल व अध्यक्षता जिला प्रमुख सरोज बंसल ने की। इस समारोह में हनुमान सिंघल स्मृति संस्थान की और से शहर की चौदह विभूतियों को टोंक रत्न से सम्मानित किया गया। टोंक के जाने माने पत्रकार स्व.मुश्ताक उस्मानी को भी टोंक रत्न की उपाधि से नवाजा। इस सम्मान को उनके पुत्र फ़िरोज़ उस्मानी ने ग्रहण किया। इस मौके पर कलक्टर गौरव अग्रवाल ने टोंक को गंगा जमुनी तहजीब का शहर बताया। उन्होंने कहा कि यहाँ पर्यटन का काफी आयाम है। इतिहासिक धरोहरों को संभालने की कोशिश की जाएगी।
ऐसा रहा है टोंक का इतिहास
टोंक के इतिहास पर नज़र डालें तो टोंक देश का ऐतिहासिक शहर रहा है, जिस पर कभी रज़िया सुल्तान की हुकूमत थी, तो कभी अकबर का कब्ज़ा रहा। कभी यह पृथ्वीराज चौहान के अधीन रहा, कभी होलकर वंश की प्रसिद्ध वीरांगना अहिल्याबाई का शासन रहा। कभी यहां मालवा की सत्ता रही, जो अंग्रेजों के आने तक संपूर्ण देश में चर्चित रही। लेकिन इनसे भी ज़्यादा टोंक के बहादुर नवाबों की धाक बेमिसाल रही। टोंक के पहले नवाब अमीरुद्दौला ने अकेले अपने दम पर तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया था। इतिहासकार हनुमान सिंहल साहब की पुस्तक ‘टोंक का इतिहास’ के अनुसार वर्ष 946 ई. के दिसंबर माह में दिल्ली के राजा तंवर तुंगपाल के सरदार ख्वाजा रामसिंह को देवयोग से यहां पड़ाव करना पड़ गया। यहां की सरसब्ज भूमि, पानी की प्रचुरता और रमणीकता ने ख्वाजा रामसिंह को मोह लिया। उन्हें यह जगह किसी आबादी स्थल के रूप में विकसित किए जाने के लिए सर्वथा उपयुक्त लगी। इसी निमित्त 24 दिसंबर 946 ई. को उन्होंने टोंक की आधारशिला रख दी। ख्वाजा रामसिंह ने यहां अपने रहने के लिए महल आदि बनवाए जिसके खंडहर आज भी पुरानी टोंक में देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त एक बावड़ी भी उन्होंने यहां खुदवाई जो आज भी बमोर गेट पर मौजूद है।