टोंक जिले की निवाई में आज़ादी के 72 वर्षा बाद भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गुजार रहे है सकटमय जीवन
निवाई (विनोद सांखला) । समाज की सेवा करके अपना गुजर बसर कर रहे घुमंतू प्रजाति के लोगों का आज भी कोई अपना ठिकाना नहीं है। शहर कस्बों व गांवों के कोने-कोने में घुमंतू लौहपिटवा प्रजाति के लोग सडक किनारे अपना आशियाना बनाकर रहते हैं। कहा जाता है कि ये महाराणा प्रताप के वंशज हैं, जोकि तोमर क्षत्रिय कुल की संताने हैं।
मान्यता है कि इनके वंशज रात्रि के अंधेरे में दीपक नहीं जलाते हैं। सड़क पर जल रही लाइट की रोशनी में ही जीवन व्यतीत करते हैं। धीरे धीरे समय बदलता गया, अब कुछ लोग दीपक जलाकर काम चलाते हैं। टोंक जिले की पंचायत समिति निवाई से झिलाय, बोली बड़ागाँव जाने वाले मुख्य मार्ग के किनारे लौहपिटवा समुदाय के दर्जनों परिवार बसे हुये हैं, जो कबाड की दुकानों से पुराना लोहा खरीदकर अपने आशियाने के नीचे भीषण गर्मी या कडाके की ठंड में उस लोहे को पीटकर उनसे घरेलू उपकरण बनाते हैं। खुरपी, फावडा, करछल, चिमटा, कुल्हाडी आदि अन्य उपकरण तैयार कर परिवार के बडे बुजुर्ग से लेकर बच्चे व महिलाये गांव-गांव घूमकर इन उपकरणों की बिक्री कर दो जून की रोटी जुटाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
इन गरीबों को कोई लाभ क्यों नहीं मिलता है
समय-समय पर ये लोग अन्य कस्बों में जाकर कुछ समय वहाँ व्यतीत करते हैं। फिर वापस पुराने स्थान पर बस जाते हैं। समाज व देश के जिम्मेदारों ने तमाम योजनाएं गरीबों के लिये चलाई फिर भी इन गरीबों को कोई लाभ क्यों नहीं मिलता है। राजनीति की मझधार में पतवार चला रहे राजनेताओं द्वारा गांवों में आवास, राशन कार्ड से मिलने वाला अनाज, कपडे, वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, प्रधानमंत्री आवास , परिवार कल्याण योजना आदि करीब सैकडों योजनाओं से ये घुमंतू परिवार के लोग अछूते क्यों है।
आज भी ये लोग गुमनाम जीवन व्यतीत कर रहे हैं
न्यायालय द्वारा विद्यालयों में 25 प्रतिशत गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का आदेश दिया गया था, लेकिन शासन व प्रशासन की लापरवाही के चलते शायद वह योजना इनके बच्चों पर लागू नहीं होती है। एक तरफ सरकार सर्व शिक्षा अभियान चला रही, दूसरी तरफ इस समुदाय के बच्चे शिक्षा से आज भी वंचित हैं। आलम ये है कि अभी तक निवाई तहसील की ग्राम पंचायत बड़ागाँव में बसे लौहपिटवा परिवार के लोगों की अपनी कोई कागजी पहचान तक नहीं है। पहचान पत्र, निवास प्रमाण पत्र आदि कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई गई है, जिससे आज भी ये लोग गुमनाम जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
गौरवशाली है गाड़ियां लोहार का इतिहास
ऐसी कोम जिसका नाम जुबान पर आते ही हमारा सिर स्वाभिमान से उच्चा उठ जाता है। गाड़ियां लोहार को कोन नही जानता, जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर से अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए अपने शासक महाराणा प्रताप के लिए अपना बलिदान कर दिया इस समाज ने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक मेवाड़ भूमि आजाद नही हो जाती तब तक वह वन में उनके राजा प्रताप के साथ रहेगे। अपने राजा महाराणा प्रताप के सहयोग के लिए मातृभूमि पर मर मिटने का भाव रखने वाले ये गाड़ियां लोहार चितोड़गढ़ छोड़कर निकले थे । यह महाराणा प्रताप की सेना के वीर सिपाही थे। जो मातृभूमि की आन के लिए प्रताप के साथ वनों में भटकते रहे। हल्दीघाटी का युद्व तो खत्म हो गया पर यह गाड़िया लोहार कभी भी अपने घरों को वापस नही लोटे । वीरता की नई गौरवगाथा लिख़ने वाले वीर सेनिको के परिवार आज गाड़िया लोहार लोहपिटवा बन चुके है। जो सदियों बीत जाने के वावजूद भी अपनी मातृभूमि की आंचल में कभी वापस नही लौटे ।
यहाँ पीढ़ियां गुजरने के बाद भी पहचान को भटक रहे हैं
अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे गाड़िया लोहार लौहपिटवा सुखपाल लोहार, बीरबल का कहना है कि उनकी करीब दो पीढी निवाई उपखंड क्षेत्र की सेवा करते हुये गुजर गयी है। यह अपने परिवारों के साथ पूर्वजों के रास्तों का अनुसरण करके गुजारा कर रहे हैं। सुखपाल लोहार ने बताया कि आज समय कहाँ से कहाँ पहुंच गया, लेकिन हम लोग गर्त में जा रहे हैं। कहते हैं लोग विदेशों में जाकर नागरिकता हासिल कर लेते हैं, यहाँ पीढ़ियां गुजरने के बाद भी अपनी पहचान के लिये भटक रहे हैं।
बदाम देवी पत्नी सुखपाल का कहना है कि निवाई क्षेत्र में बसे उनके परिवारिक लोगों को वहाँ के राजनीतिक जिम्मेदारों ने कालोनी मुहैया तक नही कराई है, लेकिन हमारी समाज को आज तक कुछ नसीब नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री की योजना के तहत आधार कार्ड बनवाया गया है, जो अब यह साबित करता है कि हम भी भारत के नागरिक हैं, लेकिन सुख सुविधाओ के लिये आज भी दर-दर भटक रहे हैं।
https://youtu.be/ZVt6r6DjkI8
निवाई तहसील के गाड़ियां लोहार ने टोंक जिलाकलेक्टर को पत्र लिखकर आवास उपलब्ध कराने की मांग की है