जयपुर
राज्य सरकार का पहला बजट सत्र ही विवादों में घिर गया है । इस बार विवाद किसी राजनीतिक दल की तरफ से नहीं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष के तुगलकी आदेश के कारण पनपा है। विधानसभा अध्यक्ष ने मनमानी करते हुए विधानसभा में पत्रकारों की आजादी कई प्रतिबंध लगा दिए इसके विरोध में बजट सत्र शुरू होने से पहले ही पत्रकारों ने विधानसभा में धरना स्टार्ट कर दिया तथा विधान सभा की कार्रवाई का बहिष्कार किया। पत्रकार संगठन विधानसभा अध्यक्ष से आदेश वापस लेने की मांग कर रहे हैं , वहीं विधानसभा अध्यक्ष नए नियम राज्यसभा में होने की बात कहते हुए खुद का बचाव करने में जुटे हुए हैं।खबर लिखे जाने तक पत्रकारों का धरना जारी रहा।
पत्रकारों के धरने का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि विधानसभा में अध्यक्ष ने पत्रकारों पर अघोषित आपातकाल लगा दिया है. यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होगा. सभी संगठन इसका पुरजोर विरोध करेंगे राजस्थान के इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ. पहली बार बड़ी संख्या में छोटे अखबारों के पत्रकार साथियों के पास नहीं बनाए गए और जिनके पास बनाए गए उन पासेज पर विधान सभा सचिवालय की ओर से बकायदा मोहर लगाकर कई प्रतिबंध लगाने का हवाला दिया गया है. पत्रकार दीर्घा और पत्रकार कक्षा कहीं पर भी नहीं जा सकते पत्रकार. ऐसी स्थिति में पत्रकार खुद को बंधा हुआ महसूस कर रहे हैं. पत्रकारों को विधानसभा में पूरी तरह से बंद कर दिया गया है . विधान सभा सचिवालय की इस मनमानी के विरोध में सभी पत्रकार संगठन तथा बड़े अखबार भी एकजुट हो गए हैं।

आपको बता दें कि पिछली भाजपा सरकार के समय भी राज्य सरकार ऐसा ही एक काला कानून लेकर आना चाहती थी. जिसका मसौदा भी तैयार करवा दिया गया था किंतु ऐन मौके पर पत्रकार संगठनों के विरोध तथा प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने कदम पीछे खींचे. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर इस प्रकार के हमले राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बने हुए हैं.