रणथंभौर के सन्नाटे में लिपटे, हरियाली से ढके जंगलों में आज की कुछ अजब मंज़र देखने को मिले, जो एक ओर दिल को रोमांच से भर देता है, तो दूसरी ओर आंखों को नम कर देता है और ज़ेहन में कई सवाल छोड़ जाता है। किले की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर, गोमुखी द्वार के पास स्थित एक गुफा से बाघिन सुल्ताना अपने नन्हे शावकों के साथ जलवा अफरोज हुई। यही वो मुकाम है जहाँ उसने हाल ही में अपने शावकों को जन्म दिया
जिन रास्तों पर आमतौर पर काफी ज्यादा चलकदमी और इंसानी हलचल बनी रहती है, वहाँ किसी बाघिन का यूँ शावकों को जन्म देना कोई मामूली बात नहीं है बल्कि काफी काबिल ए फ़िक्र मसला है, लेकिन माँ का दिल खौफ़ नहीं देखता—वो बस महफूज़ जगह ढूंढता है। आज सुल्ताना को अपने मासूम शावकों को मुँह में दबाकर उन्हें दूसरी जगह ले जाते देखा गया।
—नज़ारा इतना पुरअसर था कि उस पर सिर्फ़ हैरत नहीं, बल्कि एक अजीब सी मोहब्बत भी महसूस हुई। उन खूँखार दांतों में जब वो मासूम सी जान सहेजी हुई थी, तो ये जंगल नहीं, एक माँ की गोद लगता था।
यह मंज़र एक सवाल भी छोड़ जाता है—आख़िर ऐसा क्या हो रहा है बाघों की दुनिया में कि सुल्ताना जैसी बाघिन को भी इतनी भीड़भाड़ वाली जगह को चुना पड़ा?
लेकिन अफ़सोस कि इसी जंगल की गोद से आज एक बेहद दर्दनाक ख़बर भी सामने आई।
रणथंभौर के जाँबाज़, मेहनती और फर्ज़नशीं रेंजर देवेंद्र सिनसिनवार पर एक बाघ ने हमला कर दिया, और इस हादसे में उनकी शहादत हो गई। देवेंद्र सिर्फ़ एक अफ़सर नहीं थे—वो जंगल की रूह थे, एक ज़िम्मेदार पिता, एक बेटे, एक शौहर, और एक सच्चे रक्षक। उनका एक नन्हा बेटा है और पूरे घर की ज़िम्मेदारी उन्हीं के कांधों पर थी। सालों तक उन्होंने रणथंभौर के जंगलों को अपना कर्मक्षेत्र बनाया और अपने फ़र्ज़ को इबादत की तरह निभाया।
सिर्फ़ आठ दिन पहले मेरी उनसे मुलाक़ात हुई थी, बड़ी गर्मजोशी और अपनापन लिए। उसी मुलाक़ात में उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें हाल ही में तरक्की मिली है और वो फॉरेस्टर से रेंजर के इस नए ओहदे को लेकर बेहद पुरजोश थे। उनकी आंखों में चमक थी, बातचीत में गर्व और दिल में रणथंभौर के लिए एक अलग ही मुहब्बत थी। अब वो मुलाक़ात एक ख़ूबसूरत लेकिन दर्दभरी याद बनकर रह गई है।
एक ही इलाके में बाघों की लगातार बढ़ती तादाद, और उनके बदलते रवैये ने रणथंभौर को अब एक सीधा टकराव का मैदान बना दिया है। हाल ही में एक मासूम बच्चे की मौत भी इसी तरह हुई जब दादी के सामने टाइगर महज 7 साल के पोते को ले गया थाऔर अब रेंजर देवेंद्र की शहादत—ये महज़ इत्तिफाक नहीं, बल्कि बिगड़ते तवाज़ुन की अलामत है। देवेंद्र के मामले दो अब एडल्ट टाइगर एक साथ सब के साथ नजर आए।
रणथंभौर किले के तीनों तरफ़—ऐरोहेड, रिद्धि और सुल्ताना—ने अपने अपने शावकों को जन्म दिया है। इनके साथ सबएडल्ट बाघ भी इलाके में सरगर्म हैं, और पुराने वयस्क बाघ पहले से ही मौजूद हैं। बरसात आते ही इनकी हलचल और बढ़ेगी, और इंसानों के इलाकों में इनकी आमद और आम होगी।
वन विभाग ने हालात की नज़ाकत को समझते हुए किले तक इलेक्ट्रिक बस लाने और गैर-पर्यटक गाड़ियों की आवाजाही पर लगाम लगाने जैसे क़दम उठाए हैं। लेकिन अब मसला और भी संगीन हो गया है—
क्या वक़्त नहीं आ गया कि रणथंभौर ज्यादा बाघों का दबाव खेल रहे इलाक़ों से कुछ बाघों को दूसरे टाइगर रिज़र्व्स के कुदरती जंगलों में शिफ्ट किया जाए?
जब एक माँ अपने बच्चों को लेकर खुले रास्तों पर निकलती है, और एक सिपाही अपने फ़र्ज़ की राह में जान क़ुर्बान कर देता है—तो ये बस वाक़या नहीं, एक पैग़ाम होता है कि अब क़ुदरत का तवाज़ुन डगमगाने लगा है।
देवेंद्र की शहादत हमें ये यक़ीन दिलाती है कि संरक्षण सिर्फ़ तादाद बढ़ाने का नाम नहीं, बल्कि इंसान, जानवर और जंगल के दरमियान मोहब्बत और अदब का रिश्ता बनाए रखने की कोशिश है।