मध्य प्रदेश मे 27 साल बाद फिर राष्ट्रपति शासन के आसार

liyaquat Ali
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भोपाल/चेतन ठठेरा। मध्य प्रदेश मे महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा कांग्रेस से बगावत कर अपने 22 विधायकों सहित कांग्रेस छोड भाजपा मे शामिल होने के बाद कमलनाथ सरकार की चूंले हिला देने के बाद से एक सप्ताह से चल रहा राजनैतिक घटनाक्रम का आज पटाक्षेप होगा ।

कांग्रेस अब राज्यपाल द्वारा आज फ्लोर टेस्ट ( कमलनाथ सरकार) को बहुमत सिद्ध करने का अल्टीमेटम देने के बाद पहले बहुमत सिद्ध करने के तैयार है का दम भरने वाली कांग्रेस अब फ्लोर टेस्ट से डर रही है और इसके लिए विधानसभा अध्यक्ष के क्षेत्राधिकार पर डाल दिया है और चूंकी विधानसभा अध्यक्ष कांग्रेस का है तो वह भी फ्लोर टेस्ट टाल सकता है ऐसे मे मध्य प्रदेश मे राष्ट्रपति शासन के आसार बन सकते है ।


राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष मे हो सकता टकराव
राज्यपाल लाल जी टडंन ने अपनी सवैधानिक शक्तियो का उपयोग करते हुए आज हर हाल मे कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट ( बहुमत सिद्ध) करने को कहा और विधानसभा अध्यक्ष प्रजापति जो की कांग्रेस के है और वह अपनी शक्तियों के तहत फ्लोर टेस्ट को टाल सकते है थाकी कांग्रेस को अपने बागी विधायको को मनाने का समय मिल जाए उधर भाजपा भी आज ही फ्लोर टेस्ट पर अडी है ऐसे मे राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के बीच टकराव हो सकता है ऐसे मे राज्यपाल संवैधानिक शक्तियों के तहत राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते है । राज्यपाल की सिफारिश पर केन्द्र सरकार राष्ट्रपति शासन लगा सकती है

कब लगता है कि राष्ट्रपति शासन ? 

भारत में यह शासन के संदर्भ में उस समय प्रयोग किया जाने वाला एक पारिभाषिक शब्द है, जब किसी राज्य सरकार को  भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्य शासन राष्ट्रपति शासन के अधीन आ जाता है। भारत के संविधान का अनुच्छेद -356, केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है। राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो।


     नियंत्रण की इस अवस्था को राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की जगह  भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता  है। लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किए जाते हैं। प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर रिटायर्ड   सिविल सेवक होते हैं। 

आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है।
 राष्ट्रपति शासन के दौरान यदि कोई भी पार्टी का नेता  गवर्नर के पास जाता है और उन्हें विश्वास दिलाने में कामयाब रहता है कि उनके पास बहुमत के लिए पर्याप्त संख्या है। ऐसे में राज्यपाल को यकीन हो जाता है कि सरकार का गठन हो सकता है, तो ऐसी स्थिति में वे राष्ट्रपति शासन को खत्म करने की सिफारिश कर सरकार बनाने का निमंत्रण दे सकते हैं। राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 में दिए गए हैं। 

मध्य प्रदेश में कब -कब लगा राष्ट्रपति शासन


पहली बार 29 अप्रैल 1977 से 25 जून 1977 तक, दूसरी बार 18 फरवरी 1980 से 8 जून 1980 तक, तीसरी बार 15 दिसंबर 1992 से 7 दिसंबर 1993 तक लगाई गई है।

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