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राजस्थान का अगला पायलट होंगे डाॅ जोशी ? सचिन नहीं, आलाकमान झुकेगा या 70 साल पहले का इतिहास दोहराया जा सकता, पढ़े खबर

राजस्थान का अगला पायलट होंगे डाॅ जोशी ? सचिन नहीं, आलाकमान झुकेगा या 70 साल पहले का इतिहास दोहराया जा सकता, पढ़े खबर

Dr. CHETAN THATHERA
8 Min Read

जयपुर/ राजस्थान में नए मुख्यमंत्री को लेकर चल रहे घमासान के बीच ऊंट किस करवट बैठेगा कौन होगा राजस्थान का नया पायलट इसको लेकर अभी तक पूरी तरह संशय से बना हुआ है लेकिन वर्तमान घटनाक्रम और कांग्रेस के इतिहास को देखते हुए सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनना अब पूरी तरह से नामुमकिन सा लग रहा है और आलाकमान की इच्छा के विरुद्ध राजस्थान की बागडोर गहलोत गुट के विश्वसनीय हाथों में जा सकती है ।

आलाकमान को गहलोत गुट के मंत्रियों और विधायकों के आगे झुकना पड़ सकता है ? यह सब कयास हैं लेकिन इसमें काफी हद तक वास्तविकता भी है परंतु अंतिम निर्णय नहीं हो जाता तब तक राजनीति में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद राजस्थान के नए मुख्यमंत्री इस लाइन को लेकर 2 दिन से मथुरा काम आसान और गहलोत खेमे के मंत्री और विधायकों द्वारा आलाकमान के आदेशों की अवहेलना करते हुए बगावत करने तथा गहलोत गुटके 102 विधायकों में से ही नया मुख्यमंत्री चुनने की शर्त ने कांग्रेस में घमासान मचा दिया है और आलाकमान के खिलाफ बगावत कर दी है ।

उधर दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने समर्थक मंत्रियों और विधायकों के बगावती सुर के आगे हथियार डालते हुए कहा कि मेरे बस की बात नहीं है अर्थात गहलोत का यह वक्तव्य का तात्पर्य है कि मंत्रियों और विधायकों को मनाना उनके बस की बात नहीं है?

गहलोत का यह वक्तव्य गले नही उतरता 

अब सवाल यह उठता है कि जब सचिन पायलट ने बगावत की थी तब मंत्रियों और विधायकों को गहलोत ने कैसे मनाया था और सरकार बचाई थी ? उसके बाद राज्यसभा के चुनाव में भी कैसे सभी विधायकों और मंत्रियों को एकजुट रखा यह सब ने देखा ? किसलिए गहलोत पायलट का यह वक्तव्य कि मेरे बस की बात नहीं गले नहीं उतरता।

70 साल पहले का इतिहास दोहराया जा सकता है ।

कांग्रेस की रीति नीति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को देखते हुए राजस्थान में एक बार फिर से 70 साल पहले का इतिहास दौरा है जहां सकता है । 

अप्रैल सन 1949 की बात है जब राजस्थान की 22 रियासतों के एकीकरण के बाद दिल्ली सरकार के रूप में मुख्यमंत्री है या लाल शास्त्री को बनाया गया था हीरालाल शास्त्री देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और रियासतों के एकीकरण के सरदार सरदार वल्लभभाई पटेल के पसंदीदा नेता थे।

शास्त्री के मुख्यमंत्री बनाए जाने के कुछ दिन बाद ही राजस्थान मैं कांग्रेस में बगावत शुरू हो गई और कांग्रेस दो गुटों में बैठ गई एक गुड मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोकुलभाई भट्ट का तथा दूसरा गुट जोधपुर के जय नारायण व्यास और मेवाड़ क्षेत्र के किसान नेता माणिक्य लाल वर्मा का था दोनों गुटों में चली खिंचा तान और मतभेद के बाद मुख्यमंत्री बनने के 21 दिन बाद या लाल शास्त्री को जनवरी 1951 में इस्तीफा देना पड़ा और वर्मा व व्यास ने कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र की दुआ है देते हुए।

बहुमत का सम्मान करने की दलील दी और विधायकों के बहुमत के बाद आखिर आलाकमान को झुकना पड़ा और 26 अप्रैल 1951 को जय नारायण व्यास बहुमत वाले दल से नेता होने के नाते व्यास को मुख्यमंत्री बनाया गया ।

फरवरी 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में एक बार फिर गुटबाजी सामने आई इस विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री जय नारायण व्यास 2 सीटों से चुनाव लड़े ।

लेकिन दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए तब विधायक दल किराए से टीकाराम पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया और उसके बाद उपचुनाव में जय नारायण व्यास खड़े हो गए और चुनाव जीत गए और जब जहां जीत कर आए तो टीकाराम पालीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जयनारायण व्यास एक बार फिर नवंबर 1952 में मुख्यमंत्री बन गए लेकिन इसके बाद भी राजस्थान प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हुई मेवाड़ क्षेत्र के नेता अपना वर्चस्व चाहते थे और खिंचा तान शुरू हो गई।

तब मेवाड़ के नेता माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में मोहनलाल सुखाड़िया ने बगावत का बिगुल बजा दिया बात आलाकमान तक पहुंची आलाकमान ने काफी कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं होने पर आलाकमान के निर्देश पर जय नारायण व्यास को बहुमत सिद्ध करने के निर्देश आलाकमान द्वारा दिए गए।

तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार फिर विधायक दल की बैठक बुलाने के निर्देश जय नारायण व्यास को दिए विधायक दल की बैठक में विधायकों ने मोहनलाल सुखाड़िया के पक्ष में बहुमत दिया और तब जय नारायण व्यास को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी और मोहनलाल सुखाड़िया राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।

अब 70 साल बाद एक बार फिर राजस्थान में इसी तरह के हालात पैदा हुए हैं आलाकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है ।

लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खेमे के मंत्री और विधायक जिनकी संख्या 90 से अधिक है वह सभी सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं है और उनका पक्ष है कि इन सभी 90 से अधिक जो विधायक है उनकी सहमति से उनमें से ही किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जाए ।

अब ऐसी स्थिति में आलाकमान को अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना है तो राजस्थान के गहलोत गुट के मंत्री और विधायकों में से ही किसी एक जिसे अशोक गहलोत चाहते हैं उसे मुख्यमंत्री बनाना होगा।

राजनीतिक सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहली पसंद डॉक्टर सीपी जोशी हैं और उसके बाद गोविंद सिंह डोटासरा और शांतिलाल धारीवाल।

राजस्थान मैं कांग्रेसमें फिर होगा घमासान, बिखर..

मंत्रियों और विधायकों के बगावत के चलते आलाकमान विधायकों की राय से अगर डॉक्टर जोशी धारीवाल या फिर डोडा शराब में से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाते हैं तब भी आगे चलकर राजस्थान में कांग्रेस में घमासान होने और कांग्रेस के भी खराब होने की संभावनाएं से इनकार नहीं किया जा सकता।

गहलोत चुनाव लडेगे या..

राजस्थान के वर्तमान घटनाक्रम को देखते हुए अभी तो संशय की स्थिति यह बनी हुई है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं क्योंकि आलाकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी वर्तमान घटनाक्रम को देखते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर एक बार फिर मंथन कर सकते हैं और .

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम