जयपुर/ राजस्थान प्रदेश जो शांत और सुरक्षित माना जाता है ऐसे प्रदेश में अब आतंकवाद पनपने लगा हैं या इसे यूं कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह आतंकवादियों की शरण स्थली बनने के साथ ही आतंकवादियों का प्रशिक्षण केंद्र बनने लगा है और यहां मीडिया के माध्यम से आतंकवाद का प्रशिक्षण तक दिया जाने लगा है कई व्हाट्सएप ग्रुप ऐसे संचालित हो रहे हैं तथा करीब 4 से 5 ऐसे आतंकी संगठन राजस्थान में सक्रिय हैं जिनके बड़ी संख्या में सदस्य हैं और देश विरोधी गतिविधियों के लिए जाने माने वाला संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(PFI) दावते ए इस्लाम,पूरी तरह से प्रदेश में सक्रिय है। आइए जानते हैं इस संबंध में कुछ विस्तृत जानकारी।
राजस्थान की धरती पूरे देश और दुनिया में अपनी संस्कृति परंपरा यहां की बोलचाल रहन सहन के साथ ही शांतिप्रिय और सुरक्षित प्रदेश के रूप में जाना जाता है लेकिन पिछले कुछ लंबे समय से इस प्रदेश को आतंकवादी संगठनों से संबंध रखने वाले संगठनों ने जिनका मकसद देश विरोधी गतिविधियां करना और दंगे फैलाना, हिंसा फैलाना हैं वह सक्रिय हो गए हैं और इस प्रदेश को अपना परीक्षण केंद्र बना लिया है।
सूत्रों के अनुसार राजस्थान में 4 से 5 मजहबी संगठन सक्रिय हैं जिनके करीब 500 से अधिक आतंकी प्रोफेसर(ट्रेनर) 1500 से अधिक व्हाट्सएप ग्रुप तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए आतंकवाद की पाठशाला चला रहे हैं और स्लीपर सेल बना रहे हैं इनमें बेरोजगार से लेकर इंजीनियर तक की डिग्री हासिल किए युवाओं को शामिल किया जा रहा है।
पाक का यह सगंठन कर रहा यह…
पाक का दावत-ए-इस्लाम संगठन का राजस्थान में जाल फैलता जा रहा है पाकिस्तान की इस संगठन का उद्देश्य भारत में दहशत फैलाना दंगे फैलाना है इस संगठन के देश और प्रदेश में कई जगह मदरसे और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल संचालित हो रहे हैं।
कैसे करते संपर्क
दावते ए इस्लाम, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, सूफा आदि संगठन युवाओं को संगठन में शामिल करने के लिए एडवांस ऐप के जरिए संपर्क कर रहे हैं इस ऐप की ऑपरेटिंग के लिए महज अभी इंस्टिट्यूट का उपयोग किया जा रहा है इसमें सोशल मीडिया पर भड़काऊ भाषण भड़काऊ वीडियो और पोस्टर पोस्ट की जा रही है।
सूत्रों के अनुसार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(PFI) दावते ए इस्लाम, सूफा जिसका मुख्य उद्देश्य देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देना तथा दंगे फैलाना है संगठन के कार्यकर्ता राजस्थान में बड़ी संख्या में है मेवाड़ हाडोती मेवात में इनकी संख्या अधिक बताई जा रही हैं करौली दंगे में पी एफ आई का हाथ बताया जा रहा हैं । इन संगठनों के सरगना बड़े शहरों के बजाय छोटे शहर भीलवाड़ा करौली बूंदी चित्तौड़गढ़ ऐसे छोटे शहरों को लक्ष्य बनाकर हिंसा और दंगे भड़का कर दहशत और प्रदेश में अराजकता फैलाना है । राजस्थान में यह संगठन स्लीपर सेल्स तैयार कर रहे हैं और इसी स्लीपर सेल के जरिए ही आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है क्या है स्लीपर सेल आइए जाने।
क्या है स्लीपर सेल
आम आदमी की तरह होते हैं स्लीपर सेल
स्लीपर सेल यानी आतंकियों का वो दस्ता जो आम लोगों के बीच रहता है और आतंकियों के शीर्ष नेतृत्व से आदेश आने के बाद हरकत में आ जाते हैं । स्लीपर सेल में शामिल आतंकियों को पकड़ना काफी चुनौती भरा काम होता है । कारण कि ये आम लोगों के बीच आम आदमी की तरह रह रहे होते हैं और लंबे समय तक ये आम जिंदगी जी रहे होते हैं ।
हो सकता है कि ये आपके आसपास रह रहे हों ? किसी छात्र या जॉब वर्कर के रूप में, मजदूर या रेहड़ी-पटरी लगाने वाले के रूप में, किसी मॉल-दुकान में नौकरी करने वाले या फिर कोई बिजनेस करने वाले… ये किसी भी रूप में हो सकते हैं ।। स्लीपर सेल जज्बाती होते हैं।। कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें ये जान देने से भी नहीं चूकते।। आतंकवादी संगठन इन्हीं स्लीपर सेल को एक्टिव करके देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं ।
एक्टिवेट और डीएक्टिवेट मोड
स्लीपर सेल आतंकी ही होते हैं, फर्क बस ये होता है कि वे आम लोगों के बीच रहते हैं। इन्हें हमले या अन्य आतंकी वारदात की डेडलाइन तक नहीं दी जाती । ये स्लीपिंग मोड में आम जिंदगी जी रहे होते हैं । जासूसी कर सूचनाएं इकट्ठी कर रहे होते हैं और फिर अपने आकाओं को भेजते हैं तथा कभी कभी तो ये 6-8 महीने तक डीएक्टिवेट मोड पर होते हैं। इस दौरान उनसे कोई काम नहीं करवाया जाता है और काफी लंबे समय तक ये आदेश मिलने का इंतजार करते रहते हैं।
क्या कर रहे, किसके लिए कर रहे, पता नहीं होता ?
कई बार स्लीपर सेल में भर्ती आतंकियों को ये तक नहीं पता होता है कि वे क्या काम करने जा रहे हैं. महीनों तक वे जासूसी कर सूचनाएं इकट्ठा करते रहते हैं । कई बार उन्हें यह भी मालूम नहीं होता कि वो किसके लिए काम कर रहे हैं । इन्हें डीप कवर एजेंट भी कहा जाता है। आतंकी संगठन इसके लिए टेक्नोसेवी और साफ छवि वाले युवाओं की तलाश करते हैं, जिनका पुलिस में कोई रिकॉर्ड न हो । ऐसा इसलिए ताकि उनपर संदेह न जाए।
किस तरह काम करते हैं स्लीपर सेल ?
स्लीपर सेल का इस्तेमाल कई तरह के काम के लिए लिया जाता है । प्राथमिक स्तर पर तो ये जासूसी कर सूचनाएं इकट्ठी करते हैं । आतंकी संगठन के लोगों को शहर में सिर छिपाने के लिए सुरक्षित ठिकानों की तलाश करना भी इनका एक अहम काम होता है. आतंकी बैठकों के लिए जगह की व्यवस्था करना, आतंकी हमलों में मदद करना, हमले के लिए शहरों में बम प्लेस ( स्थान का चयन करना) और संगठन के लिए नई भर्तियों में सहायता करना इनका काम होता है।
NIA स्लीपर सेल पर क्या कर रही कार्रवाई
स्लीपर सेल को धर दबोचने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने में एनआईए यानी नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी की बड़ी भूमिका होती है। एनआईए ने देश के कई शहरों में विभिन्न आतंकी संगठनों की गतिविधियों का का पर्दाफाश किया है और उनसे जुड़े स्लीपर सेल को धर दबोचा है । NIA ने बड़ी संख्या में आतंकी फंडिंग, साजिश और हमले से जुड़े मामलों की जांच करती रहती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, ऐसे 37 मामलों में आरोपित आतंकी संगठन ISIS से प्रेरित थे. जून 2021 में भी ऐसा एक मामला दर्ज किया गया था । NIA ने कुल 168 आरोपितों की गिरफ्तारी की थी, जिनमें से 31 मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है और 27 आरोपियों को NIA की विशेष अदालत ने दोषी करार दिया है।
विदित है की साल 2014 का लोकसभा चुनाव तो आपको याद ही होगा. तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की अगुवाई में एनडीए ने चुनाव लड़ा था । चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ताबड़तोड़ सभाएं कर रहे थे. । 27 अक्टूबर 2013 को पटना के गांधी मैदान मे नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी । लाखों लोगों की भीड़ और आतंकवादियों ने सीरियल ब्लास्ट कर डाला। कई लोग मारे गए. इस घटना को स्लीपर सेल के जरिये अंजाम दिया गया था।
स्लीपर सेल ऐसी कई आतंकी घटनाओं को स्लीपर सेल के जरिये ही अंजाम दिया जाता रहा है। जैश-ए-मुहम्मद, इंडियन मुजाहिद्दीन, सिमी, लश्कर-ए-तैयबा जैसे कई आतंकी संगठन स्लीपर सेल की भर्ती करते हैं और फिर उन्हें आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल करते हैं. NIA, RAW जैसी भारतीय सुरक्षा एजेंसियां बड़ी मेहनत के बाद इन्हें धर दबोचती हैं और फिर कार्रवाई करती हैं. लेकिन इन्हें पकड़ना बहुत ही मुश्किल काम होता है।