
जयपुर। राष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव में बीजेपी ने आदिवासी महिला दौपद्री मुर्मू को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर उड़ीसा, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासी मतदाताओं को साधने का प्रयास किया है। गुजरात में जहां इसी साल चुनाव होने हैं तो वहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी ने राष्ट्रपति पद पर आदिवासी महिला को उतारकर कांग्रेस की बेचैनी बढ़ा दी है।
इसकी एक वजह यह भी है कि अकेले राजस्थान में तकरीबन 40 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। राजस्थान में अधिकांशतः आदिवासियों को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है, ऐसे में संभावना यही है कि क्या देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के जरिए बीजेपी कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा पाएगी। हालांकि यूपीए ने भी देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया है राजस्थान कांग्रेस के तकरीबन 50 विधायकों ने प्रस्तावक के रूप में हस्ताक्षर किए हैं। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार दौपद्री मुर्मू पूर्व में झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं।
असमंजस में कांग्रेस के आदिवासी विधायक
राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की आदिवासी उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस के आदिवासी विधायक असमंजस की स्थिति में हैं। कांग्रेस विधायकों के सामने परेशानी यह है कि वह आदिवासी कैंडिडेट का समर्थन करें या फिर पार्टी व्हिप का, हालांकि अभी तक कांग्रेस के विधायक पार्टी व्हिप की पालना की ही बात कर रहे हैं।
बीटीपी और निर्दलीय आदिवासी विधायकों के रुख पर नजर
इधर राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी और कांग्रेस को समर्थन दे रहे निर्दलीय आदिवासी विधायकों के रुख पर सभी की नजर रहेगी। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ देने वाले बीटीपी विधायकों ने तो अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि वो एनडीए की आदिवासी कैंडिडेट के साथ जाएंगे लेकिन सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय आदिवासी विधायकों ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। हालांकि निर्दलीय विधायकों पर पार्टी व्हिप लागू नहीं होता है। ऐसे में वो किसी को भी अपना वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं निर्दलीय विधायक रमिला खड़िया, लक्ष्मण मीणा, कांति मीणा और ओम प्रकाश को हुडला को लेकर सस्पेंस बना हुआ है।
राजस्थान की 25 सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित
इधर राजस्थान विधानसभा चुनाव में 200 में से 25 सीटें ऐसी हैं जो एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से अकेले आदिवासी बहुल वांगड़ अंचल के चार जिलों डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर और प्रतापगढ़ जिले की 16 सीटें एसटी वर्ग के लिए रिजर्व हैं जबकि जयपुर जिले की दो , करौली की दो, दौसा की एक, अलवर जिले की एक, सिरोही की एक, बारां की एक और सवाई माधोपुर जिले की 1 सीट भी आरक्षित वर्ग के लिए रिजर्व है। इन 25 सीटों में से 13 सीटों पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा है तो 8 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है, 2 सीटों पर बीटीपी और 2 सीटों पर निर्दलीय विधायकों का कब्जा है।
6 सामान्य सीटों पर एसटी विधायकों का कब्जा
प्रदेश में 6 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां सामान्य होने के बावजूद एसटी विधायकों का इन सीटों पर कब्जा है। इनमें थानागाजी, देवली उनियारा, पीपल्दा, दौसा, करौली और महवा है। थानागाजी और महवा में निर्दलीय विधायकों का कब्जा है। 6 सीटों में से 4 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं और 2 सीटों पर निर्दलीय विधायक है।
इन 13 सीटों पर है कांग्रेस का कब्जा
वहीं रिजर्व जिन 13 सीटों पर कांग्रेस पार्टी का कब्जा है उनमें बांसवाड़ा, बागीदौरा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, धरियावद, खैरवाड़ा, लालसोट, बामनवास, सपोटरा, टोडाभीम, जमवारामगढ़, किशनगंज, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ है।
इन 8 एसटी सीटों पर है बीजेपी का कब्जा
वहीं जिन रिजर्व आठ सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। उनमें गढ़ी, घाटोल, आसपुर, सलूंबर, गोगूंदा, झाड़ोल, उदयपुर ग्रामीण और पिंडवाड़ा है। इसके अलावा दो सीटों सागवाड़ा और चौरासी पर बीटीपी का कब्जा है। इसके अलावा दो रिजर्व सीटों पर निर्दलीयों का कब्जा है इनमें कुशलगढ़ और बस्सी शामिल हैं।