Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the foxiz-core domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/dreports/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the fast-indexing-api domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/dreports/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the rank-math domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/dreports/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
महिला दिवस या सहानुभूति...

महिला दिवस या सहानुभूति…

Dr. CHETAN THATHERA
5 Min Read

अमन ठठेरा की कलम सें 

पुरूष प्रधान समाज में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (Women’s Day) मनाते हुए कई वर्षों बीत चुके हैं। लेकिन आज तक समाज ने महसूस नहीं होने दिया कि महिलाओं की प्रतिष्ठा इस समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आज भी यही सुनने को मिलता हैं कि तू एक नारी हैं मानो आज भी पुरूष प्रधान समाज में भी पुरूषों का रोब ऐसा दिखाई पड़ता जैसे आज भी नारी को कम आंका जा रहा हैं । यह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस नहीं हैं यह सिर्फ महिलाओं के प्रति सहानुभूति दिवस हैं। जो लोग कईं माध्यमों से प्रकट करते हैं।

[हरी मिर्ची ने कीमत में पेट्रोल को पछाड़ा, भाव 150 रु. किलो]

आज समाज की विचारधारा से प्रकट होता हैं कि महिला का होना ही उसके लिए एक अभिशाप बन गया हैं। महिला हो या लड़की उसका खुबसूरत होना भी अभिशाप हैं। जब उसके ऊपर सिर्फ किसी रिश्ते को नकारने पर तेजाब फेक दिया जाता हैं वही उसके द्वारा छोटे कपड़े पहनना भी अभिशाप हैं ।

[शिक्षिका निर्मला गिरफ्तार, जमानत खारिज ,जेल भेजा]

जब समाज द्वारा उस लड़की या महिला को बदचलन या वैश्या जैसे नामों से पुकारा जाता हैं । यहा तक महिला / लडकी का अच्छा होना भी एक बुराई बन ही जाती हैं जब उसके साथ बलात्कार कर दिया जाता हैं। क्या वाकई इस समाज में महिला दिवस का अस्तित्व है ? आज भारत जैसे सबसे बडे लोकतांत्रिक देश कि बात करें तो एनसीआरबी रिपोर्ट बताती हैं कि पिछले पाँच साल में 1500 महिलाओं पर एसिड हमले हुए हैं। वही बात करें बलात्कार कि तो 2018 कि एनसीआरबी रिपोर्ट बताती हैं औसतन एक दिन में 91 बलात्कार हुए हैं। आज गांवो की बात करें तो महिलाओं कि स्थिति ओर भी दयनीय हैं।

गांवो में तो महिलाओ के साथ मारपीट गाली गलोच तक की जाती हैं। यहा तो लड़की का पैदा एक अभिशाप बन जाता जब माँ के पेट में ही लड़की को मार दिया जाता या फिर जन्म देने के बाद उसे किसी नाले में फैक दिया जाता और कारण सिर्फ एक हैं कि वह लडकी है जो वंश आगे नही बढा सकती वंश को तो लड़का ही आगे बढाता हैं लड़कियाँ नहीं, अब इस समाज ने कौनसा ज्ञान प्राप्त किया जिसमें यह भी नहीं बताया कि अगर स्त्री नहीं होगी तो बच्चा जन्म कैसे लेगा । स्त्री ही तो है जो मां, बहन, पत्नी का दायित्व निभाती है ।

मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होगा कि यह महिला दिवस सिर्फ नाममात्र का और महिलाओ के प्रति केवल सहानुभूति का दिन हैं। अगर वाकई महिला दिवस मनाना हैं तो इस समाज को महिला के प्रति विचाधारा में परिवर्तन की सख्त आवश्कता हैं। समाज को यह समझना होगा कि कोई भी लड़की द्वारा छोटे कपडों पहनने पर वह बदचलन या वैश्या नहीं होती। एनएसएसओ (NSSO) की रिपोर्ट के मुताबिक आज केवल किसी भी सेक्टर में 4 प्रतिशत ही महिलाओं की हिस्सेदारी हैं।

क्या यह वाकई महिला दिवस हैं ? इस समाज में महिला को एक खाना बनाने के लिए गृहणी या फिर मुझे यह कहने में कोई अतिश्योति नहीं होगी महिला का स्थर (दर्जा) सिर्फ बच्चा पैदा करने की मशीन के अनुरूप हो गया। यहा तक लड़की के माता पिता द्वारा भी छोटे कपड़े पर रोक लगाना , बाहर अकेले नहीं भेजना, सहित कई बंदिशे लगाना मानो ऐसा लगता हैं लड़की को कमजोर बनाने का आधा काम तो माता पिता ही कर रहें।

अगर आज वाकई महिला दिवस को मनाना हैं तो समाज में महिला का स्थर ऊंचा उठाना होगा। किसी महिला या लड़की को उसके कपड़े के कारण उस लड़की का आकलन नहीं किया जा सकता हैं। इस समाज को महिला और लड़कियों के प्रति अपनी छोटी सोच को त्याग करना होगा । तभी वास्तव महिला दिवस का अस्तित्व हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी नारी को यह संकल्प लेना होगा कि वह अब इस समाज का अत्याचार नहीं सह सकती और पुरूषों को अपनी विचारधारा में परिवर्तन करना होगा । तभी इस दिवस को सही सार्थकता होगी और पुरूष प्रधान समाज को जबाव होगा ।

Share This Article
Follow:
चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम