जयपुर से अलवर जाएं तो रास्ते में भानगढ़ आता है जहां बनी आभानेरी बावड़ी के सुंदर शिल्प की दुनिया भर में चर्चा है। कुछ अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की वहां शूटिंग भी हुई है। दूर दूर से सैलानी वहां पहुंचते हैं और सेल्फियां लेते हैं, बावड़ी के सामने खड़े अपनों की तस्वीरें खींचते है। आभानेरी तो एक बावड़ी है। क्या आपको मालूम है जोधपुर में ऐसी अनेक कलात्मक बावड़ियां मौजूद हैं।
मारवाड़ का यह सिरमौर नगर “सूर्यनगरी” के नाम से विख्यात रहा है। इन दिनों इसे “नीली नगरी” भी कहा जाने लगा है क्योंकि यहां लोग अपने घरों की दीवारों की बाहर से नील डाल कर पुताई करते हैं। मगर जितनी बावड़ियां इस नगर में हैं उसे देखते हुए इसे “बावड़ियों की नगरी” कहा जाय तो गलत नहीं होगा।
यहां चित्रों में देखिए क्या ‘तूरजी का झालरा’ नाम की यह विशाल बावड़ी कहीं भी आभानेरी से कम पड़ती है? बावड़ी ही क्यों उसके इर्द गिर्द पत्थरों पर कमाल की नक्काशी वाली इमारतें भी यहां के बासिंदों ने संभाल और सहेज रखी है।
यह बावड़ी सन् 1740 में जोधपुर की महारानी तंवर जी ने बनवाई थी। कुल 200 फीट गहरी यह बावड़ी जोधपुर के प्रसिद्ध लाल घाटू पत्थरों को तराश कर बनाई गई। यह पत्थर कोमल होता है जिस पर नक्काशी आसान होती है।
नृत्य मुद्रा में हाथियों की प्रतिमाएं, अप्सराओं की नक्काशी वाले आले तथा दो स्तरों पर पानी ऊपर खींच कर एक टैंक में एकत्र करने की पर्शियन व्हील की मूल व्यवस्था आज भी देखी जा सकती है। यह झालरे ने लंबे समय तक इस नगर के लोगों की प्यास बुझाई। यह बावड़ी आज पर्यटन का जरिया बन कर सैकड़ों को रोज़गार देती है।
जोधपुर की बावड़ियों की बात चले और तापी बावड़ी का जिक्र हुए बिना नहीं रहता जिसके वैभव को नगर के युवाओं ने बचा रखा है।
दूसरी तरफ इतनी ही विशाल और सुंदर ‘क्रिया का झालरा’ नाम की बावड़ी इंतजार कर रही है कि कोई इसे संभाले। ‘जालप बावड़ी’ और ‘नाज़र जी की बावड़ी’ का तो समाजों ने ही गला घोंट दिया है।