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movie "Kashmir Files" and its discrepancies

“कश्मीर फाइल्स” फिल्म की खासियत और इसकी विसंगतियां

Sameer Ur Rehman
6 Min Read

जयपुर। आज “कश्मीर फाइल्स” (Kashmir Files) फिल्म देखी। इस फिल्म का बहुत प्रचार हो रहा है और जयपुर में रविवार को यह अधिकांश सिनेमाघरों में हाउसफुल थी। इस फिल्म में दिखाया गया है कि 1989-90 में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया था और वह मुसलमान आतंकी संगठनों ने किया था। यह फिल्म प्रतिभाशाली फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने बनाई है और उन्होंने बहुत ही कलाकारी से अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाते हुए पूरी फिल्म को एक ही विषय पर केंद्रित करते हुए हिंदू-मुस्लिम नफरत को बढ़ाने का काम किया है।

कश्मीर से पंडितों को खदेड़ा गया, उन पर अत्चाचार हुए, अत्यंत वीभत्स घटनाएं हुईं और इस तरह कश्मीर को भारत से अलग बताने का भी प्रयास हुआ। लेकिन उस समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल जगमोहन थे, जो कि भाजपा के लाड़ले नेता थे और उन्हें 1991 में पद्मश्री, 1997 में पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इस तथ्य को फिल्म में पूरी तरह गोल कर दिया गया।

जब पंडितों के खिलाफ अत्याचार हो रहे थे, तब केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृह मंत्री थे। उनकी बेटी रूबिया सईद को आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। भाजपा इस सरकार को समर्थन दे रही थी। जगमोहन को नियुक्त करने के कारण फारूख अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। फिल्म में यह तथ्य कहीं नजर नहीं आया।

कश्मीर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऐसा कुछ नहीं किया है, जिसका उल्लेख किया जा सके। फिर भी फिल्म में एक संवाद में आरएसएस को हाईलाइट करने की कोशिश की गई है, और एक संवाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस संवाद के साथ हाईलाइट किया गया है कि जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी मोहब्बत की बात करते थे, जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री चाहते हैं कि लोग उनसे डरें।

कश्मीर की समस्या अपनी जगह है। आतंकवाद भी अपनी जगह है। लेकिन इसके आधार पर सांप्रदायिक नफरत फैलाने के प्रयास करना गलत है। आतंकवादी सभी धर्मों में पाए जाते हैं। हिंदुओं में भी आतंकवादियों की कमी नहीं है। बहुओं को दहेज के लिए जला देने वाले, दलितों को घोड़ी पर बैठकर बारात नहीं निकालने देने वाले, समाज में तमाम तरह की कुरीतियां फैलाने वाले हिंदू ही हैं। वहां मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं है।

कश्मीरी पंडितों के साथ अन्याय हुआ है। मुस्लिम आतंकवादियों ने उन्होंने कश्मीर से भगाया है, यह एक तथ्य है। कांग्रेस की सरकार इस परिस्थिति को ठीक से समझ नहीं पाई और सांप्रदायिक मुद्दों पर राजनीति करने वाली भाजपा ने इसमें पूरे देश में मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने का रास्ता निकाला। “कश्मीर फाइल्स” फोकट में तो बनी नहीं होगी। कहीं न कहीं से तो फंड मिला ही होगा। जिन लोगों ने पैसा लगाया है, उन लोगों की मर्जी के मुताबिक फिल्म बनाना फिल्मकार की मजबूरी हो जाती है।

पूरी फिल्म में सिर्फ इसी बात को हाईलाइट किया गया है कि मुसलमानों ने कश्मीर में हिंदू पंडितों पर अमानवीय अत्याचार किए। न पाकिस्तान का जिक्र, न किसी आतंकी संगठन का जिक्र, न उस समय के प्रधानमंत्री या जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल का जिक्र। और दावा यह कि फिल्म सच्चाई पर आधारित है। इस फिल्म में बेवजह जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी को बदनाम करने का प्रयास किया गया है, जहां से अपने देश की वित्त मंत्री ने भी शिक्षा प्राप्त की है। यह साबित करने की घटिया कोशिश की गई है कि एक विश्वविद्यालय में भारत के खिलाफ अभियान चल रहा है।

कुल मिलाकर यह फिल्म चूंचूं का मुरब्बा है। इसमें फिल्मकार ने उन लोगों को प्रसन्न करने का पूरा प्रयास किया है, जो इस समय सरकार चला रहे हैं। विवेक अग्निहोत्री ने इससे पहले “ताशकंद फाइल्स” बनाई थी, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री के निधन की परिस्थितियों पर प्रकाश डाला गया था। “कश्मीर फाइल्स” में उन्होंने अपना फोकस सिर्फ हिंसक घटनाओं को दिखाने पर रखा है। किसी नेता का नाम नहीं। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल का जिक्र नहीं। राजनीतिक परिस्थितियों पर कोई टिप्पणी नहीं। सिर्फ एक पंडित परिवार और उसके साथ होने वाले अत्याचार।

यह एक खतरनाक ट्रेंड है, जो सिर्फ एक विचारधारा को पूरे देश पर थोपने के लिए शुरू किया गया है और केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद शुरू हुआ है। इससे देश का कुछ भी भला होने वाला नहीं है। “कश्मीर फाइल्स” फिल्म का आखिरी सीन यह है कि 20 से ज्यादा लोगों को एक एक करके उनके सिर में गोली मारकर गड्ढे में पटक दिया जाता है। इनमें महिलाएं भी हैं और आखिरी में जिसको गोली लगी है, वह एक बच्चा है।

इस तरह यह फिल्म “कश्मीर फाइल्स” क्या संदेश देती है? जो भी इस फिल्म को देखेगा, वह क्या समझेगा? क्या यह फिल्म देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए नहीं बनाई गई है? जिससे कि सिर्फ एक राजनीतिक विचारधारा को स्थापित किया जा सके?

 

 

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