संतुलित जीवन ही सुखी जीवन है
दूनी (हरि शंकर माली) । देवली उपखण्ड के श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ‘सुदर्शनोदय’ तीर्थ आँवा मे चल रहे चातुर्मास मे महाराज ससंग मे मुनि श्री सुधा सागर जी ने अपने मंगल प्रवचनों मे कहा की कमजोर व्यक्ति से दुश्मनी ज़्यादा खतरनाक होती है क्योंकि वह उस समय वार करता है जब हम कल्पना ही नहीं कर सकते हैं ।
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वो छोटा होने के कारण आप की बराबरी तो नहीं कर पायगा परन्तु आपकी दुश्मनी प्रताड़णा से उसके मन के भीतर जो ज्वाला उत्पन्न होगी वो किसी ना किसी रूप मे आपको जला देगी । वही अपनी माता से भी कभी बेर नहीं रखना चाहिए जब वो माँ के रूप मे स्त्रि प्रकट होगी तो वो भी आपका विनाश का कारण बन जाएगी ।
मुनि श्री ने अपने प्रवचनों मे कहा की जो व्यक्ति शक्ति न होने पर मन में हार नहीं मानता उसे संसार की कोई भी ताकत परास्त नहीं कर सकती । यह एक कड़वी सच्चाई है कि प्रत्येक मित्रता के पीछे स्वार्थ छुपा होता है। ज्ञान सबसे उत्तम मित्र है। शिक्षित व्यक्ति को प्रत्येक जगह सम्मान मिलता है।
ज्ञान ही एक ऐसा शस्त्र है जो सुंदरता ओर यौवन को पराजित कर देता है। कोई भी व्यक्ति शक्तिहीन नही होता है लेकिन उसे अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नही करना चाहिए वरना लोग अक्सर झुकाने का सोचते है । नकारात्मकता जीवन को नाकारा बना देती हैं। इसलिए हमेशा अपने आचार-विचार को सकारात्मक रखो, व्यवहार में नर्मी रखो और सहयोगी बनो। यह ही सफल जीवन की मूल मंत्र है।
भगवान महावीर जैसे संयमी बनकर खुद को पहचानो
मन की शक्ति को जो समझ लेते हैं वह एक दिन मानव से महामानव बनकर भगवान जैसे बन जाते हैं। यदि आप कर्मों की बेड़ियों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो भगवान महावीर जैसे संयमी बनकर स्वयं को पहचानना होगा। मन और इन्द्रियों को वश में करने की साधना जो साधक करना प्रारंभ कर देते हैं वह भोगी नहीं योगी कहलाते हैं। संतुलित जीवन ही सुखी जीवन है। असंतुलित जीवन दुःखी जीवन है। खानपान वाणी का संयम, चलने फिरने का संयम अपने जीवन में जो लोग करते हैं वह एक दिन इंसान से भगवान बन जाते हैं।
संतुलित जीवन ही सुखी जीवन है।
मन और इन्द्रियों को वश में करने की साधना जो साधक करना प्रारंभ कर देते हैं वह भोगी नहीं योगी कहलाते हैं। संतुलित जीवन ही सुखी जीवन है। असंतुलित जीवन दुःखी जीवन है। खानपान वाणी का संयम, चलने फिरने का संयम अपने जीवन में जो लोग करते हैं वह एक दिन इंसान से भगवान बन जाते हैं। मुनिश्री ने कहा की जीवन पत्थर की तरह है इस से मूर्ति भी बनाई जा सकती है तो सिर भी फोड़ा जा सकता है | जो दूसरों को खिलाता है वो कभी भूका नहीं रहता ओर जो दूसरों को सताता है वो कभी सुखी नहीं रहता | जीव से जीवन, जीवन से धर्म और धर्म से मनुष्य को मनुष्यता का बोध होता है. साथ ही प्राणियों को सद्गति मिलती है.
जानकारी देते हुए समिति अध्यक्ष नेमिचन्द जैन पवन जैन आशीष जैन श्रवण कोठारी ने बताया कि मंगलवार को प्रात: 7:30 बजे से अभिषेक एवं शांतिधारा तत्पष्चात् परम पूज्य पुगंव सुधा सागर जी महाराज के प्रवचन प्रात: 9:00 बजे ‘सुदर्शनोदय’ तीर्थ क्षेत्र आँवा स्थित प्रवचन पण्डाल में होगें, इसके पश्चात् 10:30 बजे मुनि श्री की आहारचर्या, 12:00 बजे सामायिक व सांय 5:30 बजे महाआरती एवं जिज्ञासा समाधान का कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा।