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टोंक के मंज़ूर आलम ऐसे थे वकील - Dainik Reporters

टोंक के मंज़ूर आलम ऐसे थे वकील

liyaquat Ali
5 Min Read

मंज़ूर आलम  23 मार्च 1919 में टोंक के एक तालीम याफ्ता घराने में पैदा हुए । आप का खा़नदान सय्यद अहमद शहीद रह- के का़फले के साथ नव्वाब वज़ीरउद्दोला की दावत पर टोंक आया । आज जो मोहल्ला का़फला कहलाता है ये उन्ही की देन है आप ने हाई स्कूल की तालीम टोंक ही में हासिल की उसके बाद मेव कॉलेज अजमेर से ba पास किया और LLB की डिग्री अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से हासिल की अलीगढ़ में तालीम के दोरान आप को तहरीके आज़ादी को देखने का बहुत क़रीब से देखने का मौका़ मिला ।

वहीं से आप का ज़ेहन सियासत व क़ोम की बेहतरी की तरफ़ राग़िब हुआ । 1942 में वकालत पास करके टोंक आ गए । अपनी मेहनत व लगन की वजह से अवाम में बहुत जल्द मशहूर हो गए । आपने टोंक की नगरपालिका का इलेक्शन लड़ा ओर चेयरमेन के पद पर फ़ाइज़ हुए चेयरमेन का काम काज बड़ी मेहनत और लगन से किया ।

वकालत के साथ साथ आपने टोंक के मसाइल पर भी नज़र रखी और अवाम के काम मे दिलचस्पी ली । आप प्रोफेसर मेहमूद शीरानी के मकान में भी किराये से रहे उस दौर में आप के पास अख़्तर शीरानी टोंकी आकर उठने बैठने लगे । आपके ऑफिस में काफी देर तक शीरानी साहब के बैठने से मंजूर साहब का वकालत का काम अधूरा रहने लगा तो मंज़ूर साहब ने शीरानी साहब से कुछ अनदेखी करते हुए दूरी इख्त़ियार की शीरानी साहब इसको भांप गए और एक किताब पर ये शेर लिख कर किताब को मंज़ूर साहब के ऑफिस में आप की गै़र मौजूदगी में रख आए ।

वो शेर ये था ।

मुहब्बत के एवज़ रहने लगे वो क्यों ख़फ़ा हमसे ।
नसीमे सुबह कह देना ज़रा मंज़ूर आलम से ।।

आप की क़ानून पर अच्छी पकड़ थी आप ने पूरी ज़िंदगी मिल्लत को वक़्फ़ कर रखी थी आप मुस्लिम मुशावेरत तनज़ीम जो लखनऊ में 1964 में क़ायम हुई आप उसके खा़स रुक्न थे । राजस्थान मे जब मुशावेरत का क़याम अमल में आया तो आप उनके जनरल सेक्रेटरी बनाये गए ।

आप की कोशिश की वजह से टोंक में बच्चियों व बच्चों के लिए स्कूल खुले आपने लड़कियों की तालीम पर ज़ोर दिया । आप हिंदू मुस्लिम इत्तेहाद के अलम बरदार थे । 1992 मुम्बई में इत्तेहादे मिल्लत के नाम से एक कॉन्फ्रेंस हुई । जिसके नतीजे में आल इंडिया मिल्ली कॉसिंल बनी आप को उसका मेम्बर बनाया गया ।

आप राजस्थान मिल्ली काँसिल के जनरल सेक्रेटरी भी थे । जब टोंक की एक मोहतरमा तारीख़ पर रिसर्च के सिलसिले में लंदन गईं तो वहाँ हिन्दुसतानी सिफ़ारत खा़ने की लाइब्रेरी में टोंक से मुत्तालिक़ काफी दस्तावेज़ ओर ख़ुतूत मिले जिसमे मंज़ूर साहब के केई ख़ुतूत जो उन्होंने टोंक के लोगो की बिगड़ी मआशी हालात के सिलसिले में राजस्थान के अंग्रेज अफ़सर को लिखे थे ।

वहां महफूज़ मिले आप को तारीख़े इस्लाम की किताबें , इंग्लिश के तमाम अख़बारात व रिसाले ओर उर्दु के अख़बारात मंगाने व पढ़ने का बहुत शौक़ था । आपका क़ुतुब खा़ना शहर के क़ुतुब ख़ानों में से अहम था । आप के बाद आप का सारा क़ुतुब खा़ना अरबी फारसी इंस्टीट्यूट को अतिया कर दिया गया आप मदरसा फुरक़ानिया के सेक्रेटरी रहे ।

मंज़ूर साहब की शख़्सियत क़ोमी सतह पर रहबर व क़ाईद की थी । आपके दिल मे क़ोमो मिल्लत के लियें बहुत दर्द था अक्सर आप क़ोम के मसाइल के लियें मजालीसों का एहतेमाम करते शहर के आलिम. वकीलों. अदीब व अवाम को एक जगह जमा करते और मिल्लत के कामों व तालीम पर गो़रो खो़ज़ करते थे ।

आप की ज़बान से शगुफ्तगी, मिठास ओर सही व जामे अल्फ़ाज़ का ख़जा़ना निकलता था । आप अपनी तक़रीर में अंग्रेज़ी व उर्दु के लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते थे । आप सीरते पाक के जलसे का भी एहतेमाम करते जिसमे हिंदुस्तान के मशहूर आलिमों को बुलाकर तक़रीरें कराते ।

आप पूरी ज़िंदगी क़ोमो मिल्लत इत्तेहाद व भाईचारे में गुज़ार कर 22 अक्टूबर 2008 को इस दुनिया ए फ़ानी को अलविदा कहकर हमेशा आबाद रहने वाली दुनिया में जा बसे । अल्लाह तआला आपकी मग़फ़ेरत फ़रमाये ओर जन्नत में आला मक़ाम अता फ़रमाये ओर हमे आप की बताई हुई क़ोमो मिल्लत की बातों पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाये ।

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