टोंक (भावना बुन्देल) जिले की एकमात्र सुरक्षित विधानसभा सीट के रूप में निवाई- पीपलू विधानसभा क्षेत्र का वर्तमान राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल चुका है। इस वर्ष के प्रारंभ में सम्पन्न नगर पालिका चुनाव परिणामों के बाद निवाई के शहरी क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी की काफी फजीहत हो चुकी है। टिकट वितरण को लेकर नाराज पुराने कांग्रेसियों ने जिस तरह से पार्टी छोडक़र भाजपा का बोर्ड बनवाया, उससे तो यही लगता है कि 2023 के विधानसभा चुनाव मेें कांग्रेस प्रत्याशी को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी।
सूत्रों के अनुसार नपा चुनाव से पूर्व मौजूदा विधायक प्रशान्त बैरवा और शहर के दिग्गज कांग्रेसियों के बीच तालमेल का अभाव देखा गया। टिकट वितरण के मामले में भी असन्तोष फूटा, जिसका भारी खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा। कहा जाता है कि विधायक बैरवा के अहम के कारण भी नाइत्तेफाकी बढ़ती गई।
सारे असंतुष्ट कांग्रेसी वाया एनसीपी होते हुए भाजपा में चले गए और नाटकीय घटनाक्रमों के बाद बड़ी आसानी के साथ भाजपा का बोर्ड बना। दलबदली का यह घटनाक्रम आगामी विधानसभा में गहरा असर दिखाने वाला साबित होगा, जहां कांग्रेस प्रत्याशी की राह बिल्कुल आसान नहीं होगी।
निवाई विधानसभा का राजनीतिक अतीत
1962 से लेकर 2018 तक सम्पन्न हुए 14 विधानसभा चुनावों में स्वतन्त्र पार्टी ने दो बार (1962 व 1967), जनता पार्टी ने एक बार (1977), कांग्रेस ने छह बार (1972, 1980, 1993, 1998, 2008 एवं 2018) तथा भाजपा ने भी पांच बार (1985, 1990, 1991, 2003 व 2013) चुनाव जीता था।
इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेेता बनवारी लाल बैरवा और स्वतन्त्र पार्टी के जय नारायण सालोदिया तीन- तीन बार विधायक बने, वहीं भाजपा केे हीरालाल रैगर दो बार विधायक बने हैं।
इसके अलावा कांग्रेस के द्वारका प्रसाद बैरवा, कमल बैरवा, प्रशान्त बैरवा और भाजपा के ग्यारसी लाल तथा कैलाश मेघवाल एक- एक बार ही जीतकर विधानसभा में पहुंचे। 2013 के चुनाव में भाजपा के दिवंगत विधायक हीरालाल रैगर ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रशांत बैरवा को महज 5936 वोटों से हराया, जो उस वक्त जिले की चारों विधानसभा क्षेत्र के नतीजों में वोटों का सबसे कम मार्जिन था। वहीं 2018 के चुनाव में कांग्रेस के प्रशान्त बैरवा ने भाजपा प्रत्याशी राम सहाय वर्मा को 43889 के रिकार्ड मतों से हराया।
असंतुष्ट दिलीप इसरानी, राजकुमार करणानी समेत 17 पार्षदों की जीत से बना भाजपा का बोर्ड तकरीबन सात माह पूर्व सम्पन्न नगर पालिका चुनाव के बाद निवाई के राजनीतिक हालात काफी बदल चुके हैं। कांग्रेस पार्टी में नपा चुनावों से पूर्व टिकट वितरण को लेकर असंतोष के स्वर काफी मुखर हुए और हंगामेदार घटनाक्रमों के बाद जिस तरह से कांग्रेस क्षत्रपों दिलीप इसरानी, राजकुमार करणानी एंड कम्पनी ने कांग्रेस को अलविदा कहकर राकांपा का दामन थामा, उसकी परिणीति भाजपा ज्वाइन कर भाजपा का बोर्ड बनाने के साथ सम्पन्न हुई। नपा वुनाव परिणामों के बाद मौजूदा विधायक प्रशांत बैरवा की किरकिरी हुई और रणनीतिक तौर पर उन्हें राजनीतिक हलकों में पूरी तरह से फेल माना गया। पार्टी लेवल पर भी उनकी छवि को नुकसान पहुंचा। क्षेत्र में उनके घटते प्रभाव को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा।
2023 में भुगतना पड़ेगा कांग्रेस को खामियाजा, भाजपा रहेगी फायदे में
गौरतलब है कि विधायक प्रशान्त बैरवा को अपने क्षेत्र के पंचायत राज चुनावों में पार्टीगत करारी हार झेलनी पड़ी और उसके बाद नगर पालिका चुनावों में भी उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। सूत्र बताते हैं उस दौरान कि 35 वार्ड वाले नगर पालिका क्षेत्र के दिग्गज कांग्रेसी नेता पूरी तरह से नाराज रहे, तवज्जो ना मिलने कारण उन्हें पाला बदलने को मजबूर होना पड़ा। विधायक बैरवा ने भी नाराज हुए कांग्रेसियों को मनाने की कोशिश नहीं की। पांच बार कांग्रेस से पार्षद रहे दिलीप इसरानी और पालिका अध्यक्ष रहीं उनकी पत्नी हीना इसरानी सहित दो दर्जन कांग्रेसी पार्षद नाराज थे।
नतीजन इन्होंने पहले एनसीपी से टिकट लिया, 35 में 29 सीटों पर चुनाव लड़ा। परिणामस्वरूप असंतुष्टों को 17 सीटों पर जीत हासिल हुई, कांग्रेस 8 सीटों पर सिमटी और भाजपा के 9 पार्षद जीते। हालांकि एक निर्दलीय की जीत ने अध्यक्ष के मुकाबले को दिलचस्प भी बनाया।
इसी दरम्यान दिलीप इसरानी ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए अपने समर्थकों के साथ भाजपा के प्रदेश कार्यालय पहुंचकर पार्टी का दामन थाम लिया। अंततोगत्वा अध्यक्ष के मतदान में दिलीप इसरानी को 35 में से 27 वोट मिले और भाजपा का बोर्ड बना।
कुल मिलाकर निवाई विधानसभा क्षेत्र का आगामी सियासी घमासान काफी दिलचस्प रहने वाला है। माहौल यही रहा तो कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनावी राह कांटों भरी रहेगी, वहीं भाजपा को फायदा मिलना तय माना जा रहा है।