Bikaner News । देश सहित प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण काल चल रहा है और इसकी चपेट में रोजाना हजारों की संख्या में लोग आ रहे हैं कोरोनावायरस शुगर कैसंर, हृदय रोग टीवी ब्लड प्रेशर और अस्थमा वाले रोगों पर एकदम से अटैक कर उनके लिए यमराज बन रहा है पर अभी तक इसकी वैक्सीन नहीं बन पाई है लेकिन ऊंटनी का दूध अस्थमा रोगी शुगर रोगी के लिए राम मनोज जी के रूप में काम कर सकता है यही नहीं उठने का दूध मंदबुद्धि बच्चों को ठीक करने में भी रामबाण इलाज है इसका अनुसंधान भी वैज्ञानिक कर चुके हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि ऊंटनी के दूध का महत्व राजस्थान में कहीं सेंटर है और नई सरकार द्वारा उसे प्रोत्साहित करने के लिए कहीं प्लांट संकलन किया जा रहा है यही कारण है कि उठने का दूध रामबाण औषधि होने के बाद भी उसका कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है ।
राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान संस्थान (एनआरसीसी) के पूर्व निदेशक डॉ. एन.वी.पाटिल का कहना है कि वर्तमान परिदृश्य में ऊंट जिस दौर से गुजर रहा है उससे लगता है कि आने वाली सदी में ऊंट चिडिय़ाघर में ही देखे जाएंगे। कागजों में बहुत सारी पॉलिसी बनती हैं लेकिन धरातल पर काम नहीं दिख रहा। एक जानी-मानी दूध की कंपनी ने ऊंटनी के दूध से चॉकलेट बनाई और प्रधानमंत्री से उसका शुभारंभ कराया लेकिन उसके बाद काम बंद हो गया। राजस्थान में राज्य पशु घोषित किया गया लेकिन उसके दूध के मार्केट को लेकर सरकार की ओर से अभी तक कोई कदम दिखाई नहीं दिया। उन्होंने बताया कि अकेले राजस्थान में ऊंटनी का दूध करीब चार लाख लीटर उत्पादन होता है लेकिन इसकी वैल्यू अभी तक न तो सरकार ने समझी और ना ही किसानों ने।
प्रदेश का एकमात्र जैसलमेर जिला है जहां एक संस्था प्रतिदिन 200 से 300 लीटर दूध बेचती है। यहां से कुछ दूध बाहर की कंपनियां भी ले जाती हैं लेकिन शेष 32 जिलों में ऊंटनी के दूध पर कहीं काम नहीं हो रहा है। प्रदेश में अब ऊंटों की संख्या करीब ढाई लाख बची है जिसमें से 50 प्रतिशत ऊंटनी है।