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टोंक रत्न कर्पूर चंद्र कुलिश: हिन्दी पत्रकारिता के कालजयी संस्थान, पत्रकारिता के शिखर पुरुष, वेद मर्मज्ञ और दार्शनिक - Dainik Reporters

टोंक रत्न कर्पूर चंद्र कुलिश: हिन्दी पत्रकारिता के कालजयी संस्थान, पत्रकारिता के शिखर पुरुष, वेद मर्मज्ञ और दार्शनिक

liyaquat Ali
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Tonk / सुरेश बुन्देल । लोकतन्त्र के निष्पक्ष और निर्भीक योद्धाओं ने पत्रकारिता को हमेशा धारदार और प्रखर बनाए रखा है। तमाम दबावों की परवाह किए बगैर पत्रकारिता धर्म का निर्वाह करना महत्वपूर्ण है। चुनौतियों में अदम्य जिजीविषा के वज्र पर्याय ‘कुलिश’ के रूप में भी धरा पर अवतरित होते हैं, जो नीति, सिद्धांत और मूल्य आधारित पत्रकारिता को नए सिरे से परिभाषित करते हैं।

ऐसी शख्सियत ने 64 साल पहले राजस्थान पत्रिका नामक पौधे को रोपा, जो वर्तमान में विशाल वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। ऐसी महान विभूति कर्पूर चन्द्र कुलिश प्रख्यात समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका के संस्थापक थे।

वे लब्धप्रतिष्ठित कवि, लेखक, वेद मर्मज्ञ और दार्शनिक भी थे। उनका प्रारम्भिक जीवन संघर्षों में बीता। हिन्दी भाषा के अतुल्य विकास में उनके योगदान को सदैव याद रखा जाएगा। कुलिश को राजस्थान में हिन्दी पत्रकारिता का जनक भी माना जाता है।

उन्होंने 7 मार्च 1956 को स्वयं के अखबार राजस्थान पत्रिका की स्थापना की, जो वर्तमान में बड़े समाचार पत्र का रूप धारण कर राजस्थान का अग्रणी समाचार पत्र बन चुका है। 20 मार्च 1926 में कुलिश का जन्म मालपुरा कस्बे के सोडा ग्राम में हुआ। पत्रिका की स्थापना से पूर्व उन्होंने संवाददाता के तौर पर अन्य समाचार पत्र से अपने पत्रकारिता कैरियर की शुरूआत की।

उनके परिवार में उनकी पत्नि, दो पुत्र और एक पुत्री हैं। कुलिश 20 मार्च 1986 को बाकायदा राजस्थान पत्रिका से सेवानिवृत्त हुए। 17 जनवरी 2006 को 79 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी

उनकी साहित्यिक कृतियां ‘अमेरिका: एक विहंगम दृष्टि’ और ‘मैं देवता चल गया’ काफी प्रसिद्ध हुईं। आज भी उनका आत्मकथ्य  ‘धाराप्रवाह’ शीर्षक के तहत कुलिश के साथ बातचीत के रूप में हिंदी पत्रकारिता की अमूल्य धरोहर है।

उनकी अन्य लोकप्रिय साहित्यिक रचना में ‘सायट सांकडा’ भी शामिल है। पत्रिका में कुलिश जी का सम सामयिक विषयों पर आधारित ‘पोलमपोल’ नामक नियमित खण्ड प्रकाशित हुआ, जिसे बाद में श्रृंखलाबद्ध तरीके से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जा चुका है।

राजस्थानी बोली के इस स्तम्भ को देश के सुधी पाठकों द्वारा काफी पसन्द किया गया। वेदों पर कुलिश जी द्वारा लिखित ‘वेद विद्या प्रवेशिका’ और ‘वेद विज्ञान’ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

पत्रकारिता में अविस्मरणीय योगदान के शीर्षस्थ पुरोधा

कुलिश जी को 1987 में गोयनका फाउण्डेशन ने भारतीय भाषा के समाचार पत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु ‘बी. डी. गोयनका’ अवार्ड दिया। 1991 में उन्हें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा स्वर्ण जयंती में उनके योगदान के माध्यम से राष्ट्रीय मुख्यधारा को प्रभावित करने के लिए सम्मानित किया गया था। उन्हें 2000 में ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ और ‘हिंदी साहित्य वाचस्पति’ का सर्वोच्च सम्मान भी दिया जा चुका है।

महर्षि संदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान- उज्जैन द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया। इंडिया पोस्ट ने 16 मई 2012 को कुलिश की स्मृति में एक डाक टिकट भी जारी किया है। आज भी उनकी स्मृति में प्रत्येक वर्ष ‘कुलिश इंटरनेशनल अवार्ड फॉर एक्सिलेंस इन जर्नलिज्म’ का आयोजन किया जाता है, जिसके अंतर्गत पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘केसीके अंतरराष्ट्रीय अवार्ड’ प्रदान किए जाते हैं।

सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट

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