Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the foxiz-core domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/dreports/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the fast-indexing-api domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/dreports/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the rank-math domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/dreports/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
टोंक रत्न डॉ. शाहिद मीर खां: सूफियाना तर्ज का मकबूल शायर - Dainik Reporters

टोंक रत्न डॉ. शाहिद मीर खां: सूफियाना तर्ज का मकबूल शायर

liyaquat Ali
4 Min Read

Tonk /सुरेश बुन्देल। रियासतकालीन टोंक के कदीमी परगने सिरोंज में पैदा हुए डॉ. शाहिद मीर खां का उर्दू अदब में तआरूफ ‘शाहिद’ मीर के नाम से जाना जाता है। हालांकि आजाद भारत में सिरोंज अब जिला विदिशा- मध्यप्रदेश में है, मगर यौमे- पैदाइश के लिहाज से उनका ताल्लुक टोंक से ही माना जाता है। अहमद मीर खां ‘मीर इरफानी’ के घर 10 फरवरी 1949 को जन्मे शाहिद मीर को हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और राजस्थानी जुबान का माहिरे- फन शायर माना जाता है।

एमएससी और वनस्पति शास्त्र में पीएचडी करने वाले शाहिद मीर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बांसवाड़ा में सन 1972 से फरवरी 1993 तक विभागाध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरोंज में फरवरी 1993 से अक्टूबर 2003 तक वनस्पति शास्त्र शाखा निदेशक और राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बाड़मेर में अक्टूबर 2003 से सेवानिवृत्ति तक उप प्राचार्य रहे। शुरूआत से ही नज्म, गजल, रुबाई, दोहा, पद, गीत और कत्आत जैसी विधाओं में शाहिद का अदबी रूझान रहा। ये बड़ी अहम बात है कि उनकी कई रचनाओं का तर्जुमा अंग्रेजी जुबान में भी हुआ। मरहूम हो चुके प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह जी ने भी उनकी गजलों को तरन्नुम दिया।

मुकम्मल तौर पर शाहिद का लहजा सूफियाना और सादा है। उन्होंने 1972 में संगीत की तालीम बाकायदा हासिल की। पंडित नारदानन्द, उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद इनायतुल्लाखां की सोहबत में रहकर शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखीं। शाहिद को हारमोनियम, तबला व सितार बजाने का सलीका भी है। शायद इसी वजह से उनके कलाम को पसंद करने वालों की तादाद काफी ज्यादा है, जो हर किसी को अपना बना लेने की कुव्वत रखता है।

आलातरीन गजलगोई के मशहूर फनकार हैं शाहिद

उनकी शायराना खिदमात को ‘मौसम जर्द गुलाबों का’, कल्पवृक्ष’, ‘सुखन- ए- मोअतबर’, ‘दोहे राजस्थान के’, हफ्त- ओ- रंग’, ‘इन्तिसाब’ और ‘साजीना’ की शक्ल में बहुत पसंद किया जाता है। उन्हें अपनी गजलों की वजह से बेहतरीन संगीतकार भी माना जाता है।

उनकी गजलों के कई वीडियो एलबम भी बने हैं और उनकी ई- पुस्तकें आज भी दिलचस्पी के साथ पढ़ी जाती हैं। उन्हें बिहार और राजस्थान की उर्दू अकादमियां सम्मानित कर चुकी हैं। मोअतबर तन्जीम के तौर पर बैंगलुरु की गालिब अकादमी भी उन्हें अवार्ड दे चुकी है।

ऑल इंडिया रेडियो जयपुर, जोधपुर, रामपुर, अहमदाबाद, भोपाल, बांसवाड़ा और उर्दू सर्विस दिल्ली द्वारा आयोजित कई काव्य प्रसारणों एवं काव्य गोष्ठियों में शाहिद सक्रिय रहे। रिकार्ड और कैसेट्स बनाने वाली प्रख्यात कम्पनी एच. एम. वी. ने ‘ए साउंड अफेयर’ में जगजीत सिंह की आवाज एवं प्रेम भंडारी की आवाज में ‘द शेडोज’ में गजलें भी रिकार्ड की गईं, जिनमें गजलों की कम्पोजिशन भी खुद शाहिद ने ही तैयार कीं।

उनकी मशहूर गजलगोई का नायाब नमूना देखिए-

ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को समुंदर कर दे
या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे,
तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैंने,
आ किसी दिन मिरे एहसास को पैकर कर दे,
कैद होने से रहीं नींद की चंचल परियाँ,
चाहे जितना भी गिलाफों को मोअत्तर कर दे,
दिल लुभाते हुए ख्वाबों से कहीं बेहतर है,
एक आँसू कि जो आँखों को मुनव्वर कर दे,
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन,
मेरी चादर मिरे पैरों के बराबर कर दे।

सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट

Share This Article
Follow:
Sub Editor @dainikreporters.com, Provide you real and authentic fact news at Dainik Reporter. Mobile +917014653770