Tonk /सुरेश बुन्देल । जिले की प्रतिभाओं ने तकरीबन हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है लेकिन दुनिया ने उन प्रतिभाओं को हमेशा कमतर आंकने का सितम किया। उन्हें वो तवज्जो नहीं मिली, जिसके वो हकदार थे। बहुत कम लोगों को पता है कि टोंक में पैदा हुआ एक शख्स मायावी नगरी मुम्बई तक अपनी कामयाबी के झण्डे बरसों पहले गाड़ चुका है, जिसे दुनिया आई. एम. कुन्नू के नाम से जानती है। साठ साल तक मुंबई में हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी फिल्मों का संपादन करना बहुत बड़ी बात है।
मुम्बई की फिल्म एडिटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके कुन्नू की ‘फिल्म एडिटिंग एचीवमेंट्स’ को लेकर उनके मुरीद कोशिश कर रहे हैं कि कुन्नू का नाम जल्दी ही गिनीज बुक ऑफ द वर्ल्ड में आ जाए। वास्तव में कुन्नू दादा बॉलीवुड के एकमात्र ऐसे फिल्म संपादक रहे, जिन्होंने बॉलीवुड की पाँच सौ से अधिक फिल्मों का सम्पादन किया। उनके द्वारा सम्पादित फिल्मों में आठ विदेशी मूवीज भी शामिल हैं। उनके बड़े भाई ए. करीम भी बॉलीवुड में फिल्म निर्देशक थे।
1943 में कुन्नू ने जब कुछ बनने की ख्वाहिश लेकर बम्बई का रुख किया तो करीम साहब ने उन्हें अपना सहायक बना लिया। उन्हीं के निर्देशन में में कुन्नू ने फिल्म निर्माण संबंधी तमाम बारीकियां सीखीं। संपादन बेहद मुश्किल काम होता है। पूरी फिल्म को रिदम और फ्लो देना एडिटर की जिम्मेदारी होती है, जिस पर पूरी फिल्म का दारोमदार होता है। स्क्रिप्ट राइटर, फोटोग्राफर और निर्देशक जो कुछ फिल्म में दिखाना चाहते हैं, उसका प्रभावी प्रस्तुतीकरण फिल्म एडिटर ही करता है। निर्देशक की जो कल्पना को साकार करने का काम संपादक ही करते हैं।
अपनी शर्तों पर काम करने के आदी थे कुन्नू दादा
करीबी लोगों में ‘दादा’ के नाम से मशहूर कुन्नू अपनी शर्तों पर ईमानदारी से काम करने के लिए लिए मशहूर थे।उनकी गरज हमेशा काम से रही, पैसों की उन्होंने कभी परवाह नहीं की। सुनते हैं कि नामी- गिरामी निर्देशक भी एडिटिंग बिगड़ने पर री- एडिटिंग के लिए कुन्नू की ही मदद लिया करते थे। उस वक्त एक फिल्म ‘सोने पे सुहागा’ बनी थी, जो रिलीज होने के बावजूद नहीं चली। दो साल बाद कन्नू ने उसे फिर से एडिट किया और इस मल्टी स्टारर फिल्म को ‘जोशीले’ के नाम से रिलीज किया, जो बेहद कामयाब रही। गौरतलब है कि इस फिल्म के निर्देशक शेखर कपूर और लेखक जावेद अख्तर थे। ऐसा ही एक किस्सा मशहूर संगीतकार नौशाद साहब का है, जिन्होंने एक फिल्म निर्माण के दौरान कुन्नू से सीन बढ़ाने के लिए कहा। जवाब में कुन्नू दादा ने बड़ी बेतल्लुफी से सीन बढ़ाने से इनकार कर दिया। कुन्नू अपने काम में टांग अड़ाना जरा भी बर्दाश्त नहीं करते थे।
सरल, सहज व परिश्रमी कुन्नू का जन्म टोंक के रजबन इलाके में 28 अगस्त 1929 को हुआ। उनका असली नाम उनका इनायतुल्लाह मजीदुल्लाह था। 7 नवम्बर 2008 को कुन्नू ने आखिरी सांस ली। टोंक में कुन्नू दादा के खास दोस्त वरिष्ठ पत्रकार मनोज तिवारी के पिता नंद कुमार तिवारी हुआ करते थें, जिनके साथ वे घण्टों बैठकर बतियाते और खूब शतरंज खेला करते थे। चारमीनार सिगरेट पीने और पान खाने के शौकिन कुन्नू शहर की यादों में आज भी जिन्दा है।
बेजोड़ महारथी का फिल्मी सफरनामा
बतौर फिल्म एडिटर कुन्नू ने चा चा चा, रूस्तम- ए- रोम (1964), महाराजा विक्रम, तीन सरदार (1965), इंसाफ (1966), मोहब्बत और जंग, बद्रीनाथ यात्रा (1967), स्पाई इन रोम, मेरा नाम जौहर (1968), अनजान है कोई (1969), अहसान (1970), मन तेरा तन मेरा, श्रीकृष्णार्जुन युद्ध (1971), अमिताभ- जया अभिनीत फिल्म एक नजर, जरूरत (1972), नया नशा (1973), देव आनन्द- जीनत अमान अभिनीत फिल्म प्रेम शास्त्र (1974), फिरोज खान अभिनीत आजा सनम (1975), धर्मेन्द्र अभिनीत फिल्म टिंकू (1977), विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म सरकारी मेहमान (1978), काला सूरज (1986), जागो हुआ सवेरा (1987), जोशीले (1989), नसीबवाला (1992), बॉय फ्रैण्ड (1993), अब तो आ जा साजन मेरे (1994), हम हैं खलनायक (1996), खून की प्यासी (1996), चुप (1997), मिथुन चक्रवर्ती अभिनीत फिल्म अग्नि पुत्र (2000), एक और विस्फोट (2002), फन…कैन बी डेंजरस समटाईम (2005), ये रात (2007) व मुम्बई कटिंग (2011) का सम्पादन किया। कुन्नू ने अपने बलबूते पर शत्रुघ्न सिन्हा- रेहाना सुल्तान अभिनीत फिल्म चेतना (1970), शत्रुघ्न सिन्हा- रीना रॉय को लेकर फिल्म मिलाप (1972) व कामना (1972) फिल्में भी प्रोड्यूस की। सरजमीने टोंक को कुन्नू की अजीम शख्सियत पर सदियों तक फख्र रहेगा।
सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट