गहलोत के सामने खडी है मुश्किलों भरी चुनौतियां

liyaquat Ali
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photoashok gehlot

जयपुर

विधानसभा चुनावों में जीत और उसके बाद भले ही अशोक गहलोत ने सीएम पद की दौड जीत ली हो लेकिन प्रदेश में सरकार संभालते ही अनेक चुनौतियां उनके सामने मुंह उठाए खडी है। इन चुनौतियों से पार पाना गहलोत के लिए सीएम पद की दौड से भी मुश्किल भरा हो सकता है।

इसमें सबसे बडी चुनौती तो कुछ माह बाद ही होने वाले लोकसभा चुनाव है। विधानसभा चुनावों की तर्ज पर लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन दोहराने की पूरी जिम्मेदारी गहलोत के कंधों पर ही रहेगी। पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन उपचुनावों में कांग्रेस ने वापसी करते हुए अलवर और अजमेर सीट जीतकर जबर्दस्त वापसी की थी।

अब अगले लोकसभा चुनावों में उपचुनावों जैसा जलवा बरकरार रखना गहलोत के बहुत बडी चुनौती है। कार्यग्रहण के तीन माह में ही आचार संहिता लग जाएगी ऐसे में गहलोत को बडे निर्णय जल्द से जल्द लेने होंगे।

इसके अलावा कांग्रेस में इस बार सभी दिग्गज नेता जीतकर विधानसभा में आए हैं। ऐसेे में प्रदेश कांग्रेस में सचिन पायलट के अलावा सीपी जोशी गुट भी मुखर हो जाएगा। इसके साथ ही जाट लॉबी भी उनके विरोध में हैं, इसके चलते  गहलोत को पार्टी के सभी गुटों को साधने के लिए कडी मशक्कत करनी पड सकती है। भले ही पार्टी आलाकमान ने सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री पद देकर खुश करने की कोशिश की हो लेकिन अपने कार्यकाल में पायलट गहलोत के लिए परेशानी बन सकते हैं।

सीएम बनने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी भी गहलोत के कंधो पर आई है। ऐसे में अगले सभी चुनावों में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन का दारोमदार भी गहलोत के ऊपर ही रहेगा।

इन चुनौतियों के साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वादे भी सरकार के गले की घंटी बन सकते हैं। किसानों को दस दिनों में कर्ज माफी का वादा सरकार को परेशानी में डालेगा। राज्य के सभी किसानों का पूरा कर्ज माफ करना किसी भी सरकार के लिए मुमकिन नहीं है लेकिन राज्य में सरकार को यह करना ही पडेगा। इस वादे को पूरा करने में भी सीएम बनते ही गहलोत को परेशानी हो सकती है।

किसान कर्ज माफी के साथ ही प्रदेश की वित्तीय व्यवस्था को संभालना और आगे लेकर जाना बडी चुनौती है। राज्य सरकार पर करीब तीन लाख करोड रुपए का कर्ज है और वित्तीय संसाधन भी सीमित है, इन संसाधनों के साथ ही आय के नए स्त्रोत तलाशना और खर्च पर लगाम लगाने की चुनौती भी अगले मुख्यमंत्री को विरासत में ही मिलने वाली है।

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