
टोंक। ख़ास कर राजस्थान के सभी हकीमों को खुशी और गर्व हुआ है कि 26 फरवरी रविवार को हकीमों के शहर में पहली बार यूनानी पेथी के भविष्य पर यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ यूनानी टोंक एक दिन का नेशनल सेमिनार करने जा रहा हैं । हमें सभी को बहुत खुशी होनी भी चाहिए कि अब यूनानी के भविष्य के बारे में चर्चा होने लगेगी , होगी या अब चर्चा करना शुरू किया ।
मगर दुःख भी इस बात का हैं कि जिस जमीन से ये चर्चा की जा रही हैं उसी ज़मीन के हकीमों को निमंत्रण की आस में इंतेजार करना पड़ा ।
कहते है ना की _” घर के पूत कुंवारे डोरे , और पड़ौसी के फेरे ” जिस शहर को हकीमों का शहर कहा जाता हैं वहीं के सरकारी व गैर सरकारी हकीमों को नकार कर उनको ख़बर तक नहीं दी गई है।
जबकि यह नेशनल सेमिनार का प्रोग्राम किया जा रहा हैं यानि पूरे भारत देश से हकीम साहबानों को बुलाएं जा रहा हैं ऐसे में कम से कम राजस्थान के प्रत्येक ज़िले से एक _एक नोडल अधिकारियों को बुलाया जाना चाहिए।
अगर इतना भी नहीं तो कम से कम टोंक ज़िले के अधिकारियों और हकीमों को बुलाया जाना चाहिए था अगर इतना भी नहीं तो टोंक की नाक बचाने के लिए कम से कम टोंक के एक नोडल अधिकारी को ही निमंत्रण करना चाहिए ।
अफ़सोस हो रहा हैं कि ज़िला टोंक में यूनानी पैथी की नैशनल सेमिनार होने जा रही है और राजस्थान के हकीमों को निमंत्रण तो छोड़िए बल्कि किसी तरह का कोई मैसेज भी नहीं दिया गया हैं । ऐसी स्थिति में यूनानी पैथी का भविष्य राजस्थान में कैसे संवरेगा ?
यूनानी मेडीकल कॉलेज के आला अधिकारी व ज़िम्मेदार लोग राजस्थान में किस तरह से ” future prospects of unani medicine ” का भला करने वाले हैं ?
राजस्थान में यूनानी मेडिकल कॉलेज का यह कार्यक्रम राजस्थान के हकीमों को अपने साथ लेकर नहीं चल सकने में इस कॉलेज का और यूनानी का कैसे भला कर सकेंगे ?
साथ ही मैं उन हकीमों के लिए भी कहना चाहूंगा जो राजस्थान में सरकार द्वारा शिविरों या अन्य गतिविधियों में जा कर यूनानी के लिए उत्कर्ष कार्य कर रहे हैं उनके दिलों पर क्या कार गुजारी होगी यह कॉलेज के ज़िम्मेदार लोगों के लिए सोचनीय बात है । ऐसे में यह मुहावरा सच साबित होता हैं कि ” घर के पूत कुंवारे डोले, और पड़ौसी के फेरे ” ।