टोंक रत्न मख़मूर सईदी: उर्दू साहित्य अकादमी के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजे गए जिले के इकलौते शायर

Dr. CHETAN THATHERA
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Tonk News / सुरेश बुन्देल । जिन्दगी के पेचोखम सुलझाने का सबक है मख़मूर की शायरी उर्दू अदब में मखमूर सईदी की गिनती आधुनिक शायरी के आलमी शायरों मे शुमार है। उनकी तुलना अक्सर अली सरदार जाफरी, कैफी आजमी, बशीर बद्र और अहमद फराज के साथ की जाती है। देश के गिने- चुने मुशायरों में उनकी शायरी को जबरदस्त दाद मिली। यही वजह रही कि आज भी देश में उनके प्रशंसकों की कमी नहीं।

राजस्थान उर्दू अकादमी एवं मशहूर शायर शीन काफ ‘निजाम’ ने मखमूर के सम्मान में ‘भीड़ में अकेला’ नामक पुस्तक प्रकाशित की थी, जिसमें कई नामवर शायरों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालने वाले उम्दा आलेख शाया हुए हैं।

मखमूर सईदी ना केवल उर्दू शायरी के उस्ताद थे बल्कि ऐसे बेमिसाल इंसान भी थे, जिन्होंने उर्दू अदब को नई बुलंदियों पर पहुंचाया। बतौर शायर मखमूर तमाम उम्र शेर उधेड़ते- बुनते रहे और शायरी के समन्दर की गहराईयों में उतरकर कुछ ना कुछ खोजते रहे। उन्होंने अपनी जिन्दगी में नए और पुराने दौर की शायरी को नजदीक से देखा और वक्त के मुताबिक खुद को ढालने में कामयाब भी रहे।

अपना अलग रास्ता इख्तियार करते हुए मखमूर ने रिवायत की बुनियाद पर जदीद शायरी की खूबसूरत इबारत लिखी। जिस कदर पुरानी और नई शराब मिलकर नशे में इजाफा कर देती हैं, उसी तरह मखमूर के अशआर एक नए लहजे की पैरवी करते नजर आते हैं, जहां गहराई भी है और जिन्दगी के पेचोखम को सुलझाने की नसीहत भी। मिसाल के तौर पर-

“रेत का ढेर थे हम, सोच लिया था हमने।
जब हवा तेज चलेगी तो बिखरना होगा।।”

#टोंक में 31 दिसम्बर 1938 को पैदा हुए सुल्तान मुहम्मद खां को उर्दू अदब में मखमूर सईदी के नाम से जाना जाता है। बेनुलअकवामी शख्सियत की तरह उनका नाम आज भी उर्दू साहित्य जगत में बड़े एहतराम से लिया जाता है।

अंग्रेजी, कन्नड़, हिन्दी और फारसी रचनाओं से उर्दू पाठकों का राब्ता कराने वाले मख़्मूर सईदी के ‘सियाह बर सफेद’, ‘सबरंग’, ‘आवाज़ का जिस्म’, ‘गुफ्तनी’, ‘पेड़ गिरता हुआ’ आदि नौ शायरी के संकलन शाया हो चुके हैं। उनके द्वारा कई किताबों का सम्पादन भी किया गया, उन्होंने अपने लम्बे अदबी कैरियर में तकरीबन 20 किताबें भी लिखीं। उर्दू के साहित्यिक पत्र ‘तहरीक’ का सम्पादन भी मख्मूर के द्वारा 1956 से 1979 तक किया गया।

उन्होंने गुल फिशां, निगार, एवान- ए- उर्दू, उमंग और नखसलिस्तान नामक रिसालों का संपादन भी किया। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और राजस्थान की उर्दू साहित्य अकादमियां कई मर्तबा उनकी साहित्यिक सेवाओं का सम्मान कर चुकी हैं। मख़मूर टोंक अदब के पहले वाहिद शख्स थे, जिन्हें भारत सरकार ने उर्दू साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा है।

#आज भले ही वे इस दुनिया को अलविदा कह चुके हों किन्तु उनकी यादों का जिक्र हमेशा उर्दू अदब को फख्र का अहसास दिलाता रहेगा। तकरीबन नौ साल पहले टोंक के अरबी फारसी शोध संस्थान में ‘यौमे- मख्मूर’ के नाम से एक अजीमुलशान मुशायरे का आयोजन भी हुआ, जिसमें डॉ. राहत इन्दौरी समेत देश के नामवर शायरों ने शिरकत फरमा कर मख़मूर को अपने- अपने अंदाज़ में याद किया।

पिछले साल टोंक में अंजुमन तरक्की- उदयपुर ने भी ‘मख़मूर सईदी’ की याद में एक दिवसीय सेमीनार का आयोजन किया। आज भी नायब साहब की नाल नामक मुहल्ले में उनके पैतृक निवास पर गाहे- ब- गाहे लोगों की आवाजाही सईदी के प्रति दिली एहतराम का वाइज़ बनती है। किताबों में ही मख़मूर की रूह बसती है, जो सदियों तक इंसानियत को भाईचारे, मोहब्बत, खुलूस, नेकनीयति का पैगाम देती रहेगी। उनका इंतकाल 76 साल की उम्र में 2 मार्च 2010 को जयपुर में हुआ।

भले ही समाज के प्रति संवेदनशील मखमूर सईदी इस दुनिया में मौजूद नहीं है लेकिन उनके कलाम उर्दू अदब का बेशकीमती सरमाया है। दुनिया को अलविदा कहने से पहले भी वे अपना मार्मिक कलाम लिख गए-

“कितनी दीवारें उठी हैं, एक घर के दरम्यान।
घर कहीं गुम हो गया दीवारो- दर के दरम्यान।।”

सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम