टोंक रत्न दामोदर लाल व्यास: जिन्होंने राजमाता गायत्री देवी को 9020 वोटों से हराया था

Dr. CHETAN THATHERA
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Tonk /सुरेश बुंदेल।  मालपुरा कस्बा टोंक जिले में स्थित मालदेव पंवार की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है, जहां कभी महाराणा प्रताप की सेना ने पड़ाव डाला था। इसी ऐतिहासिक स्थान पर रहने वाले बृजलाल लाल व्यास और कस्तूरबा व्यास के घर 9 नवम्बर 1909 को दामोदर नाम का बालक पैदा हुआ, जिसने राजस्थान की राजनीति में अपना खास मुकाम बनाकर टोंक जिले के नाम को हमेशा के लिए रोशन कर दिया।

राजस्थान के इतिहास में लौह पुरुष के नाम से प्रसिद्ध दामोदर लाल व्यास का नाम आज भी सम्मान के साथ लिया जाता है। दामोदर लाल शुरू से ही प्रतिभा सम्पन्न थे, उनकी शिक्षा- दीक्षा बी. ए./ एल. एल. बी तक हुई। इसके बाद उन्होंने वकालत करने का निश्चय कर लिया। व्यास डिग्गी ठिकाने के लिए वकालत करने की वजह से उनके काफी नजदीक रहे।

बुलन्दियों तक पहुंचा व्यास का सियासी सफर

दामोदर लाल व्यास का राजनीतिक जीवन स्वतन्त्र भारत में हुए पहले चुनाव (1951) से ही आरम्भ हो गया था, जहां वे मालपुरा विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पहली बार जीतकर विधायक बने और राजस्थान के राजस्व मंत्री बनाए गए। 1957 के चुनाव में दुबारा भी उन्हें विजयश्री प्राप्त हुई, अबकी बार उन्हें चिकित्सा एवं स्वास्थ्य/ देवस्थान विभाग मंत्री का दायित्व सौंपा गया। हालांकि व्यास 1962 का चुनाव सी. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी जयसिंह से हार गए किन्तु 1967 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी को 9020 हजार वोटों से हराकर धमाकेदार वापसी की। बताया जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 में गायत्री देवी को कांग्रेस में शामिल होने का न्यौता दिया था लेकिन वे कांग्रेस की समाजवादी नीतियों से चिढ़ती थीं, लिहाजा राजमाता ने शास्त्री जी की पेशकश ठुकरा दी। हालांकि कांग्रेस ने उनके पति को स्पेन का राजदूत बना रखा था, फिर भी कांग्रेस से उनकी नाइत्तेफाकी बराबर बनी रही। दरअसल इंदिरा गांधी और गायत्री देवी में छत्तीस का आंकड़ा था। 1967 में स्वतंत्र पार्टी ने राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई वाली जनसंघ पार्टी के साथ चुनाव लड़कर बहुमत हासिल किया तो इंदिरा गांधी काफी गुस्सा हुई थीं। नतीजन इंदिरा गांधी ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगवा दिया, इस दरम्यान मजेदार किस्सा ये रहा कि गायत्री देवी लोकसभा का चुनाव तो जीत गईं लेकिन विधानसभा का चुनाव मालपुरा सीट से कांग्रेस के दामोदर लाल व्यास के हाथों हार गईं।
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प्रदेश का गृह मन्त्री भी बना मालपुरा का लाल

इसी तहलके की वजह से मोहन लाल सुखाडिय़ा मंत्रिमंडल में व्यास को गृह मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण महकमा सौंपा गया। एक सख्त और अनुशासनप्रिय प्रशासक के तौर पर व्यास ने गृह मंत्रालय बखूबी संभाला।

इसके बाद वे अस्वस्थ रहने लगे थे, 14 जनवरी 1976 को राजस्थान के इस लौह पुरुष को नियति के क्रूर हाथों से हारना पड़ा। दुनिया को अलविदा कहने से पहले ही वे अपना उत्तराधिकारी तैयार कर चुके थे, जिसे राजस्थान की राजनीति में सुरेन्द्र व्यास के नाम से जाना जाता है। सुरेंद्र व्यास ने भी अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए सुरेन्द्र व्यास ने 1972, 1980, 1990 और 1998 के मालपुरा विधानसभा के चुनाव जीतकर राजनीति में अपनी काबिलियत का लोहा मनवा दिया। मालपुरा की तरक्की में दामोदर लाल व्यास और सुरेंद्र व्यास के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। भले ही राजस्थान का राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका हो लेकिन व्यास परिवार आज भी मालपुरा की बेहतरी और वहां की जनता की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता है। आज भी मालपुरा शहर में व्यास सर्किल पर लगी दामोदर लाल व्यास की प्रतिमा उनकी उल्लेखनीय सेवाओं की याद दिलाती रहती है।

सुरेश बुंदेल- टोंक @कॉपीराइट

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम