टोंक रत्न डॉ. जिया टोंकी: उर्दू अदब के बाकमाल मेहबूब शायर ,सुख़नवर तो हुए कई, मगर जिया जैसा कोई नहीं

Dr. CHETAN THATHERA
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Tonk / सुरेश बुन्देल । हिन्दी और उर्दू साहित्य में बड़े- बड़े कवियों और शायरों ने इश्क, ज़िन्दगी, दुनिया, दोस्ती, असबाब, गम, बेवफाई, रुसवाई समेत कई पहलुओं पर अपनी नज़रें इनायत की हैं। टोंक में 15 मई 1969 को पैदा हुआ शख़्स जियाउर्रहमान खान आज अपनी तालीमात, अदबी ख़िदमात और शेर-ओ-शायरी की बदौलत हिन्दुस्तान का मक़बूल और मुमताज़ शायर बन चुका है, जिसे उर्दू अदब में डॉ. जिया टोंकी के नाम से जाना जाता है। अदबी माहौल में परवरिश होने के कारण शुरू से ही जिया को उर्दू अदब में दिलचस्पी रही। ‘टोंकी’ तख़ल्लुस के जरिए अपने शहर का नाम दुनिया भर में रोशन करने वाले जिया बेहिसाब खूबियों से लबरेज़ शायर हैं। मिसरों, मतलों, मक़तों, बैतत, फ़र्द, क़सीदों के जरिए अपने लफ्ज़ों को शायरी की शक्ल देने वाले जिया निजी तौर पर काफी विनम्र, मिलनसार, हमदर्द, दानिशमंद, संजीदा और सच्चे इंसान हैं। बकौल जिया के:

हिमाकत पर हिमाकत कर रहा हूं, मैं फिर अपनों से उल्फत कर रहा हूं
सफे आखिर में मुझको मत खड़ा कर, मैं सदियों से इमामत कर रहा हूं

उर्दू अदब के सशक्त हस्ताक्षर बन चुके जिया को बचपन से ही पढ़ने का शौक रहा। जिया अपनी तालीम उर्दू साहित्य/ अरबी- फ़ारसी में मास्टर डिग्री, वैद्य  विशारद और बीयूएमएस की डिग्रियां हासिल कर मुकम्मल कर चुके हैं। जिया टोंकी की ग़ज़लों, नज़्मों, हम्दो-नात, मिसरों और शेरो- शायरी की हर गूंज पर श्रोताओं की बेपनाह दाद मिलती है। मुशायरों में उनके कलाम पर मुक़र्रर की आवाजें बेसाख्ता सुनने को मिलती हैं। शायरी का वजन महसूस कीजिए:-

मुझे या रब ऐसी अदा बख्श दे, जिसे देखकर तू खता बख्श दे
सजा और जज़ा उसके कब्जे में हैं, न जाने वो किस वक्त क्या बख्श दे

जिया की शायरी ने जमाने के हर पहलू को समेटने की कोशिश की, जिसमें वे काफी हद तक कामयाब भी रहे। उनकी शायरी में रोमांस, दर्द, तड़प आदि तमाम जज़्बात शामिल हैं। वहीं हर ग़ज़ल और नज़्म में फलसफे, सबक, जज़्बे और जिन्दगानी का मर्म होता है। दुबई, रियाद, जेद्दाह, लंदन, न्यूयार्क, करांची, बैंकॉक समेत कई देशों में मुशायरा पढ़ चुके जिया मुकम्मल तौर पर अंतर्राष्ट्रीय शायर हैं। उनके अल्फ़ाज़ों का कमाल देखिए:-

कहीं शोहरत, कहीं दौलत, कहीं दुकान रख देना, मेरे हिस्से में एक मजबूर की मुस्कान रख देना
बहुत पावन, बहुत शीतल, बहुत निर्मल है ये धरती, मेरी हर आस्था का नाम हिंदुस्तान रख देना

राजस्थान उर्दू अकादमी के सदस्य रह चुके जिया टोंकी अंजुमने मुहिब्बाने उर्दू समेत कई अदबी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। उर्दू, अरबी एवं फारसी के आलिम- फ़ाज़िल जिया टोंकी ने हिंदी भाषा की ‘तुम कौन हो’ नामक पुस्तक का तर्ज़ुमा उर्दू जुबान में भी किया। वे मुशायरों के बेहतरीन संचालकों में गिने जाते हैं, को सामईन को तमाम रात बांधे रखता है। वहीं देश की कई साहित्यिक पत्र- पत्रिकाओं में जिया के लेख और रचनाएं प्रकाशित होती रहती है, जो उनकी जानिब से उर्दू जुबान के फ़रोग की तगड़ी सनद है। अपने शानदार लहजे और तरन्नुम की वजह से जिया को कई प्रमुख चैनलों, मुशायरों एवं कवि सम्मेलनों में प्रशंसकों की जबरदस्त दाद मिली है। जिया टोंकी को नासिख अवार्ड (बुरहानपुर-मध्यप्रदेश), मियासी उर्दू अकादमी (चेन्नई), बज्मे- अदब (बिजनौर- उत्तर प्रदेश), मिर्जा गालिब सोसायटी (जयपुर), कविवर स्मृति संस्थान, गालिब अवार्ड (देवास-मध्यप्रदेश), खिरमने उर्दू अवार्ड-2015 (पुणे महाराष्ट्र) द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा जिला प्रशासन और अन्य कई संस्थाओं ने भी जिया को समय- समय पर पुरस्कृत किया है। शायरी और उर्दू अदब का मयार कायम रखने में जिया के ख़ास योगदान का ज़िक्र तारीख में हमेशा किया जाएगा।

सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम