टोंक रत्न बिस्मिल सईदी: जिन्हें शायरी का अंजुमन कहना मुनासिब होगा

Dr. CHETAN THATHERA
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Tonk /सुरेश बुन्देल । बेनज़ीर शायरी का मयार अलग होता है, जिसमें लफ़्ज़ों से दूर एक ऐसी दुनिया होती है कि यदि आप उस तक पहुंचने से नाकाम रहे तो शायरी के असल आनंद से वंचित रह जाएंगे। इल्मो- अदब और तहजीब के मामले में टोंक को शायराना तमीज का अजीम मरकज़ माना जाता है। नवाबों की इस नगरी मेें मख़मूर सईदी, अख़्तर शीरानी, सोलत टोंकी, इलियास मेहमूद फाखिर एजाजी, इब्ने हसन बज्मी, राशिद टोंकी आदि मशहूर शोअरा हुए।

टोंक के उर्दू शायरों ने हमेशा गालिब और मोमिन की शैली को पसंद किया है। तमाम शायरों में बिस्मिल सईदी ऐसा नाम रहा, जिनके अशआरों का मुरीद जमाना आज भी है। बिस्मिल सईदी की पैदाइश 6 जनवरी 1902 की है। असल में उनका असली नाम सैयद ईसा मियां था, ‘बिस्मिल’ उनका अदबी तखल्लुस रहा। ये फख्र की बात है कि बिस्मिल सईदी के मुरीदों में पुराने नामवर हाकिम प्रियदर्शी ठाकुर और महाकवि गोपालदास नीरज सरीखे आलिम और फाजिल शख्सियतों के नाम शुमार थे। यहां तक कि जोश मलीहाबादी और जिगर मुरादाबादी तक बिस्मिल की फनकारी की बेपनाह तारीफ किया करते थे। उनका ये शेर काबिल- ए- गौर है:-

“जमाना- साजियों से मैं हमेशा दूर रहता हूं!
मुझे हर शख्स के दिल में उतर जाना नहीं आता!!”

#उर्दू साहित्य अकादमी के पुरस्कार से नवाजे गए मख़मूर सईदी भी उस्ताद शायर बिस्मिल सईदी के ही शार्गिद थे। जाम टोंकी, जिया फ़तेहाबादी और सीमाब अकबराबादी को बिस्मिल अपना उस्ताद मानते थे। बिस्मिल साहब की शायरी के कई मजमून शाया हुए, जिनमें निशाते- गम, कैफे अलम, औराके जिंदगी, मुशायदात काफी बेमिसाल रहे।

सन 1939 में कुछ मुश्किलों की वजह से बिस्मिल साहब को टोंक छोडक़र दिल्ली जाना पड़ा, वहीं उनकी शायरी परवान चढ़ी। दिल्ली से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘बीसवीं सदी’ से वे बाकायदा जुड़े। बिस्मिल को गालिब और नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। 2007 में बिस्मिल की समस्त रचनाएं ‘कुल्लियात- ए- बिस्मिल सईदी’ उनवान से साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है। दिल्ली में रहते हुए बिस्मिल ने 26 सितम्बर 1977 को वफ़ात पाई। बक़ौल बिस्मिल:-

“खुशबू को फैलने का बहुत शौक है मगर!
मुमकिन नहीं हवाओं से रिश्ता किए बगैर!!”

#हालांकि मुशायरों व कवि सम्मेलनों के कारण टोंक से उनका अदबी राब्ता बना रहा। उनके वालिद मोहतरम मौलाना हाजी सैयद सईद अहमद बड़े इल्मी और माहिर यूनानी हकीम थे। सईदी की तालीम मुकम्मल तसव्वुफ़ी, इल्मी और अदबी माहौल में हुई। हालांकि सईदी शायरी के हर फन के उस्ताद थे मगर उन्हें गजलों से खास मोहब्बत थी। उनके अशआरों की गहराई को जानकार ही समझ सकते हैं। अक्सर उनकी बैठकें दिल्ली की जामा मस्जिद व चांदनी चौक इलाके में हुआ करती थीं। वे कई मर्तबा लाल किले के मुशायरों में हीरो भी रहे, मिसाल के तौर पर-

हुस्न भी कमबख्त कब खाली है सोज-ए-इश्क से!
शम्आ भी तो रात भर जलती है परवाने के साथ!!”

सुरेश बुन्देल- टोंक @कॉपीराइट

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम