टोंक – एमएलए के दावेदारों का पार्षद बनने की राजनैतिक किस्मत ईवीएम में बन्द

liyaquat Ali
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Tonk News / Dainik reporter ( रोशन शर्मा ):  एक साल पूर्व विधानसभा चुनाव में विधायक बनने की चाहत के लिए टिकट मांगने वालों को न तो कांग्रेस(Congress) न ही भाजपा (BJP) ने टिकट दिया लेकिन इस नगर परिषद टोंक के चुनाव में दोंनो ही दलों ने एमएलए(MLA) के दावेदारों को पार्षद चुनाव में प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया।

Congress tonk

भाजपा ने पार्टी के जिलाध्यक्ष गणेश माहुर ,नगर परिषद टोंक की सभापति लक्ष्मी देवी जैन , भाजपा महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष बीना जैन छामुनिया ,भारतीय जनात युवा मोर्चा टोंक के जिलाध्यक्ष चन्द्रवीरसिंह चौहान सहित भाजपा शहर मण्डल टोंक के दोंनो अध्यक्ष विष्णु शर्मा एवं कालूराम बागडी को वार्ड चुनाव में टिकट दे दिया जब कि सभी विधानसभा चुनाव में पार्टी से टिकट की मांग कर रहें थे।

वहीं कांग्रेस से  जिला महामन्त्री सुनिल बंसल,अताउल्लाह खॉन,सलीमुददीन खॉन को भी पार्टी ने पार्षद चुनाव के लिए टिकट थमा दिया। इतना ही नही नगर परिषद टोंक के चुनाव में दोंनो ही दलों के पदाधिकारियों को  वार्ड चुनाव में कहीं निर्दलियों ने तो कहीं बागियों ने समीकरण ही बिगाड दिया । विधानसभा चुनाव में टिकट की मांग करने वाले दावेदारों को अपनी जीत के लिए तो दूर बल्कि प्रतिष्ठा बचाने के लिए काफी मशक्क्त करनी पडी ।

टोंक नगर परिषद चुनाव में राजधानी जयपुर की विधानसभा की दहलीज तक पहुंचने की ख्वाहिश चाहे पूरी नही हो पाई लेकिन नगर परिषद बोर्ड की दहलीज के लिए कामयाबी हासिल करने के लिए खुद के ही वार्ड में उलझे रहें ।

वहीं भाजपा की ओर से सांसद सुखबीरसिंह जौनापुरिया एवं पूर्व विधायक अजीतसिंह मेहता व भाजपा जिलाध्यक्ष गणेश माहुर ने तो कांग्रेस में अभाव अभियोंग के प्रदेश सहसंयोजक सऊद सईदी एवं हंसराज गाता ने पूरे चुनाव में पार्टी के चुनाव प्रचार की कामन संभाले रखी। शनिवार को वार्ड पार्षद के चुनाव में दोंनो ही दलों से विधानसभा चुनाव में अपनी दावेदारी जताने वालों की प्रतिष्ठा दावं पर हैं जिनका राजनैतिक भविष्य ईवीएम में बन्द हो गया ।

आखिर मतदाताओं ने विधायक बनने की ख्वाहिश वालों को कितनी अहमियत दी हैं यह अभी तो भविष्य के गर्भ में हैं जिसका नतीजा तो 19 नवम्बर को मतगणना के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन अब सवाल उठ रहा हैं कि विधायक के दावेदार वार्ड चुनाव में जीत पाते हैं या नही ?

इतना ही नही चुनाव समाप्ति के बाद सभापति की दौड़ में शामिल दोनंो ही दलो के प्रत्याशी अपनी जीत का दावा करते हुए कहता हैं कि अब भगवान के भरोसे हैं। लेकिन खुद से ज्यादा सभापति के लिए अपने प्रतिद्वंद्वि की हार एवं जीत के समीकरण आंकलन में लगा हैं।

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