Tonk / सुरेश बुंदेल ।टोंक की धरा ऐसे कई लोगों से भरी पड़ी है, जो सरकारी सेवा में रहने के बावजूद निरन्तर नि:स्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते रहे। निश्चित तौर पर नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा ही आत्मान्वेषण का आरंभ है। इस अन्वेषण का अंत भी सेवा में ही निहित होता है। मानव जीवन दीन- हीनों के प्रति करुणा व दया प्रकट करने के बाद ही सार्थक हो सकता है, कहा भी गया है ‘नर सेवा नारायण सेवा’। इस मर्म को समझने वाले सर्व शक्तिमान ईश्वर के भी प्रिय होते हैं।
इस सन्दर्भ में गढ़ माणक चौक के रहने वाले ईश्वर सिंह सोलंकी के घर भी 1 मई 1947 को एक शख़्स ऐसा भी पैदा हुआ, जो आज भी 73 साल की उम्र में तमाम पारिवारिक दायित्वों से मुक्त होकर सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं। उस व्यक्तित्व को टोंक जिले के लोग हनुमान सिंह सोलंकी के नाम से जानते ही नहीं बल्कि पहचानते भी हैं। एम. ए. और बी. एड. तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले हनुमान सिंह सोलंकी ने बतौर अध्यापक और प्रधानाध्यापक के रूप में 35 बरस तक शिक्षा विभाग में सेवाएं दी। जिला शिक्षाधिकारियों और निदेशक, माध्यमिक शिक्षा राजस्थान- बीकानेर द्वारा सोलंकी की शिक्षा सेवाओं का सम्मान इस बात की पुख़्ता तस्दीक है कि वे समर्पित भाव से एक सच्चे शिक्षक की भूमिका सदैव निभाते रहे।
इस पहलू को नज़रअंदाज़ कर भी दिया जाए तो सोलंकी के सेवा कार्यों की फेरहिस्त इतनी लम्बी- चौड़ी हो जाती है कि उनके प्रति बरबस ही सम्मान उमड़ आता है। *वाकिया 1981 की बाढ़* का है, निवाई कस्बे के हिंगोनियां गांव के हालात भी बाढ़ की वजह से बिगड़े हुए थे।
उस वक़्त सोलंकी ने जी- जान से बाढ़ पीडि़त ग्रामीणों की मदद की, लिहाजा उन्हें टोंक के तत्कालीन उप जिलाधीश ने बाकायदा सम्मानित भी किया। 1986 में लोक अदालत शिविरों के माध्यम से लोगों को इंसाफ दिलवाने में मदद की, जिसकी एवज़ में जिला न्यायाधीश ने उनको सम्मानित किया। 1990 में सोलंकी को स्काऊट गाईड के माध्यम से सेवा करने के कारण जिला प्रशासन ने 15 अगस्त को उन्हें सम्मानित किया। 1991 में सभी स्कूलों में प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण कार्यशाला में अतुल्य सहयोग करने की वजह से जिला प्रशासन ने पुन: स्वतन्त्रता दिवस पर सोलंकी का सम्मान किया।
जून 1992 में बस स्टेण्ड पर यात्रियों की जल सेवा करने की वजह से उन्हें जिला शिक्षाधिकारी और जिला कमिश्नर- स्काऊट गाईड ने भी सोलंकी का सम्मान किया। इसके अलावा सोलंकी 1993, 1994, 1995, 1996, 1998, 2002 और 2005 में अपने सामाजिक सरोकारों की वजह से लगातार सम्मानित होते रहे हैं।
जिला प्रशासन उनकी सेवाओं के प्रति
हमेशा कृतज्ञ रहा। अंधता निवारण समिति, सम्पूर्ण साक्षरता समिति, लॉयंस क्लब, रेडक्रॉस सोसायटी, टोंक महोत्सव समिति, चिकित्सा शिविरों, जल सेवा समूहों इत्यिादि से जुडक़र लगातार सक्रिय बने रहे और सेवा कार्यों में संलग्न रहे। उन्हें मिले स्वाभाविक सम्मान उनके द्वारा की गई सेवाओं का सशक्त प्रमाण हैं। जिस शख़्स का सम्मान जिला प्रशासन दर्ज़न भर बार कर दे, उसकी सहज सेवाओं का अंदाज़ आसानी से लगाया जा सकता है।
मृदुभाषिता, सहृदयता, सरलता, स्पष्टवादिता और व्यवहार कुशलता सोलंकी की हस्ती में आज भी चार चांद लगाते हैं। परिवार के लिए जीना और सरकार की नौकरी करना कोई अहम बात नहीं, किन्तु व्यस्तताओं के बावजूद समाज सेवा के लिए वक्त निकालना और सक्रिय रहना ही असली मनुष्यता है। आदतन वे आज भी प्रात: काल घर से निकल पड़ते हैं, किसी जरूरतमन्द की तलाश में ! उसकी बेगरज़ इमदाद के लिए।