Tonk News। राजकीय महाविद्यालय,टांेक में उर्दू विभाग की ओर से आयुक्तालय के ज्ञानदूत कार्यक्रम (Gyandoot Program) के तहत ऑनलाईन कक्षाओं में शनिवार को छठे दिन की रिसोर्स पर्सन पूर्व विभागाध्यक्ष एवं सह आचार्य राजकीय कला महाविद्यालय,कोटा डॉ. हुस्न आरा ने अपने मोजू ’’सर सैयद अहमद खाँ की अदबी खिदमात’’ पर अपना व्याख्यान दिया ।
डॉ. हुस्न आरा ने सर सैयद की परवरिश पर उनकी वालेदा की तरबियत का जिक्र करते हुए बताया कि बचपन में सर सैयद ने अपने मुलाज़िम के थप्पड मार दिया था तो उनकी वालेदा ने उन्हें घर से निकाल दिया और तब तक उन्हें घर में नहीं घुसने दिया जब तक कि उन्होंने अपने मुलाज़िम से माफी नहीं मांग ली ।
डॉ. आरा ने 1857 की क्रान्ति का हवाला दिया और रिसाला ‘‘असबाबे बगावते हिन्द‘‘ लिखकर बगावत की जिम्मेदारी अंग्रेजी हुकूमत पर डालने की जुर्रत की। उन्होंने आसार उस सनादीद, तारीखे फीरोजाशाही, आईने अकबरी जैसी गरांक़द्र ख़िदमात का जिक्र किया। रिसाला ’’तहजीबुल अखलाक़’’ निकाल कर समाज में फैली हुई कुरीतियों पर कुठाराघात किया तथा गाज़ीपुर में साइन्टिफिक सोसायटी क़ायम कर समाज का रूजहान साइन्टिफिक बनाने की कोशिश की।
हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए उन्होनंे हिन्दुस्तान को एक खूबसूरत दुल्हन बताया और हिन्दू और मुस्लिम को उसकी दो आँखें कहा। अगर दोनों सालिम रहीं तो यह दुल्हन बे एब होगी वरना एक को भी नुकसान पहुंचा तो दुल्हन भैंगी हो जाऐगी। इस तरह कई पुस्तकों का हवाला देते हुए उन्होंने सर सैयद की अदबी खिदमात पर रोशनी डाली।
कार्यक्रम संयोजक डॉ. सैयद सादिक अली ने डॉ. हुस्न आरा साहिबा का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर उर्दू विभाग के सहायक आचार्य डॉ. कजोड लाल बैरवा व डॉ0 राशिद मियां के अलावा तकनीकी सहायक महेन्द्र कुमार महावर ने सक्रिय रूप से भाग लिया।