शिवसेना ने मनाई महाराणा प्रताप जयंती

Sameer Ur Rehman
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टोंक।(रवि सैनी)सूरज झुका ,चाँद झुका, झुके गगन के तारे ,अखिल विश्व के शीश झुके,पर झुके नही प्रताप हमारे मेवाड़ रत्न,स्वाभिमान प्रेमी,भारत माँ के ऐसे महान वीर सपूत महाराणा प्रताप जिन्होंने धर्म, संस्कृति तथा मातृभूमि की रक्षा व स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले,महान योद्धा थे जिनकी जयंती आज शिवसेना द्वारा जिला मुख्यालय पर कृष्णा कॉलोनी आदर्श नगर में धूमधाम के साथ मनाई गई | महाराणा प्रताप जयंती के कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य अथितियों द्वारा महाराणा प्रताप की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलित कर माला व पुष्प अर्पित कर किया गया | कार्यक्रम में आये सभी शिव सेनिको व पदाधिकारियो ने महाराणा प्रताप को पुष्प अर्पित किये | कार्यक्रम में मुख्य अथिति शिवसेना प्रदेश नेता रमेश चन्द सैनी ने महाराणा प्रताप की जीवनी पर प्रकाश डालते हुये कहा की धन्य हुआ रे राजस्थान , जो जन्म लिया प्रताप ने धन्य हुआ रे सारा मेवाड़ , जहाँ कदम रखे थे प्रताप वीर शिरोमणी भारत माता के अमर सपूत महाराणा प्रताप का नाम कुँवर प्रताप था उनका जन्म 9 मई  1540 ई. को जन्म भूमी कुम्भलगढ़, राजस्थान में हुआ व उनकी मृत्यु तिथि 29 जनवरी 1597 ई. उनके पिता का नाम महाराणा उदयसिंह व माता का नाम राणी जीवत कँवर था उनका राज्य – मेवाड़ व शासन काल – 1568–1597 ई. रहा जो अवधि  29 वर्ष रही उनका वंश सुर्यवंश था व राजवंश सिसोदिया एवं राजघराना राजपूताना धार्मिक मान्यता हिंदू धर्म एवं उन्होंने युद्ध हल्दीघाटी का युद्ध राजधानी उदयपुर में लड़ा उनकेपूर्वाधिकारी  महाराणा उदयसिंह उत्तराधिकारी राणा अमर सिंह  रहे महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था,जिसका नाम चेतक था।राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह उदयपुर,मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़ मुकुटमणिराणा प्रताप का जन्म हुआ महाराणा का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है।महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डरके अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे। जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए | तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं  महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था| कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी| लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए | महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं| इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है| मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |
हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तर राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे| मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 प्रतिशत मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80किलो का भाला रखते थे हाथ में। कार्यक्रम में शिवसेना जिला प्रमुख पांचू लाल सैनी ने महाराणा प्रताप की बहादुरी व महानता के बारे में विचार व्यक्त करते हुये कहा की महाराणा प्रताप को राजपूत वीरता, शिष्टता और दृढ़ता की एक मिशाल माना जाता है। वह मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ने वाले अकेले योद्धा थे। उन्होंने स्वयं के लाभ के लिए भी कभी किसी के आगे हार नहीं मानी थी। वह अपने लोगों से बहुत प्यार करते थे वीरता और आजादी के लिए प्यार तो राणा के खून में समाया था क्योंकि वह राणा सांगा के पोते और उदय सिंह के पुत्र थे। एक ऐसा समय आया जब कई राज्यों के राजपूतों ने अकबर के साथ मित्रता कर ली थी, परन्तु मेवाड़ राज्य स्वतन्त्र ही बना रहा, जिससे अकबर बहुत अधिक क्रोधित हो गया था। उन्होंने राजस्थान के मेवाड़ राज्य पर हमला किया और चित्तौड़ के किले पर कब्जा कर लिया और उदय सिंह पहाड़ियों पर भाग गये लेकिन उन्होंने अपने राज्य के बिना भी स्वतंत्र रहने का फैसला किया। उदय सिंह की मृत्यु के बाद महराणा प्रताप ने इस जिम्मेदारी को संभाल कर लोगों के बीच एक सच्चे नेता के रूप में उभर कर सामने आये।प्रताप के पास मुगलों का विरोध करने का ठीक समय नहीं था क्योंकि उनके पास पूंजी (धन) का आभाव था और पड़ोसी राज्य भी अकबर के साथ मिल गये थे। अकबर ने प्रताप को अपने घर रात्रि भोज पर आमंत्रित करने के लिए मान सिंह को उनके पास अपना दूत बनाकर भेजा, जिसका मुख्य उद्देश्य उनके साथ बातचीत करके शांतिपूर्ण गठबंधन स्थापित करना था। परन्तु प्रताप स्वयं नहीं गये और अपने पुत्र अमर सिंह को अकबर के पास भेज दिया। इस घटना के बाद मुगल और मेवाड़ के बीच सबंधं अधिक बिगड़ गये तथा जल्द ही 1576 में हल्दीघाटी का युद्ध शुरू हो गया। प्रताप की सेना के मुकाबले मानसिंह के नेतृत्व वाली अकबर की सेना के पास अपार बल था, फिर भी प्रताप ने अपने विरोधियों का बड़ी वीरता के साथ मुकाबला किया। प्रताप की मदद के लिए आस-पास की पहाड़ियों से भील आदिवासी भी आये थे। प्रताप एक सिंह की तरह बड़ी वीरता के साथ युद्ध लड़ रहे थे परन्तु दुर्भाग्य यह था कि दूसरी तरफ मानसिंह था। अंत में, जब मुगल सेना की विजय सुनिश्चित हो गई, तो प्रताप के लोगों ने उन्हें युद्ध के मैदान से हट जाने की सलाह दी। मुगल सेना के प्रकोप से बचने के लिए महान पुरूष-झलासिंह ने प्रताप सिंह की युद्ध से भाग निकलने में काफी मदद की थी। गंभीर रूप से घायल प्रताप को कोई मार पाता, उससे पहले ही वह अपनी सुरक्षा के लिए अपने वफादार घोड़े चेतक पर सवार हो कर भाग गये।प्रताप को अपने भगोड़े जीवन में बहुत कठिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा किन्तु वह स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे। भामाशाह जैसे भरोसेमंद पुरुषों की मदद से उन्होंने दोबारा युद्ध लड़ा और प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया। यद्यपि वह चित्तौड़ राज्य को पूर्णरूप से स्वतंत्र नहीं करा सके थे परन्तु उनकी मृत्यु अपने अनुयायियों के बीच एक वीर योद्धा की तरह हुई।  इस अवसर  कार्यक्रम को शिवसेना टोंक शहर प्रमुख राजेन्द्र गुप्ता ,उप जिला प्रमुख बद्री लाल जाट , जिला महासचिव राजाराम गुर्जर , जिला संगठन मंत्री राधेश्याम शर्मा, निखिल गुप्ता , भरत अजमेरा , यूवा शहर प्रमूख लोकेश जैन आदि ने अपने विचार महाराणा प्रताप की जीवनी व उनके आदर्शो पर व्यक्त किये कार्यक्रम ने शिवसेना टोंक शहर संगठन मंत्री लोकेश नामा, टोंक शहर सचिव किशन खंडेलवाल, महेंद्र सैनी,अंकित गुप्ता, पवन सैनी,सुरेश जांगिड़, संदीप सैनी, वार्ड प्रमुख अजय सैनी ,जीतू सैनी, विजय सैनी राहुल सैनी, लोकेश सैनी, संदीप टिक्किवाल ,लड्डू लाल सैनी, रवि सैनी ,कमल सैनी, मोनू सैनी , सुनील सैनी , भगवन सैनी  सहित सेकड़ो शिव सैनिक मौजूद थे |

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Editor - Dainik Reporters http://www.dainikreporters.com/
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