सही ढंग से लागू नहीं हो पाया है जिले में शिक्षा का अधिकार

liyaquat Ali
5 Min Read

आरटीई में भी बना ली प्राईवेट स्कूलों ने घोटालों की सुरंग, संचालकों की बल्ले- बल्ले

✍🏻 भावना बुंदेल
टोंक। राईट टू एज्युकेशन की आड़ में प्रदेश के प्राईवेट स्कूलों ने जमकर चांदी काटने का काम शुरू कर दिया है। टोंक जिले की निजी शिक्षण संस्थाओं में भी फर्जी नामांकन दिखाकर अनुचित रूप से अधिक पुर्नभरण राशि उठाई जा रही है और घोटाले किए जा रहे हैं। इसके अलावा भी आरटीई के तहत मिलने वाले बच्चों के नि:शुल्क प्रवेश के मामलों में कोताही बरतने की शिकायतें सामने आ रही हैं। जानकारी के मुताबिक ‘शिक्षा के अधिकार’ के अंतर्गत प्रवेश देने वाले प्राईवेट स्कूलों ने इस कानून को भी अपनी कमाई का बड़ा जरिया बना लिया है। जानकारी होने के बावजूद जिले के शिक्षाधिकारी दबाव में आकर प्राईवेट स्कूलों के दस्तावेज खंगालने की जहमत ही नहीं उठाते। कई स्कूलों की फाइलों में गड़बड़ होने के बाद भी जांच नहीं की जाती। सूत्रों ने बताया कि प्रारम्भिक शिक्षा विभाग कार्यालय में आज भी कई प्राईवेट स्कूलों की आरटीई फाइलें गायब हैं और सांठ- गांठ करके स्कूल संचालकों को अनुचित रूप से भुगतान किया जा रहा है। कई स्कूल ऐसे भी हैं, जो आरटीई के तहत कागजों में बच्चों को प्रवेश देकर फर्जी भुगतान उठा लेते हैं। विभागीय निर्देशों के अनुसार आरटीई के तहत प्रवेश देने वाले सभी स्कूलों का रिकॉर्ड खंगालने की जरूरत है ताकि बच्चों की फर्जी पुनर्भरण राशि के सनसनीखेज मामलों का पर्दाफाश हो सके। जानकारों का कहना है कि सभी स्कूलों में आरटीई के तहत हुए दाखिले और पुनर्भरण के नाम पर उठाई गई राशि का मिलान एसीबी से कराया जाना चाहिए। जांच के मामले में शिक्षा विभाग के अफसरों पर यकीन नहीं किया जा सकता क्योंकि वे बहुत जल्दी दबाव में आ जाते हैं।

डेमो फ़ोटो

#सरकार को करोड़ों की चपत@
गरीब बच्चों को मिलने वाले शिक्षा का अधिकार में भी शिक्षा माफियाओं ने घोटालों की नई सुरंग बना ली है। फर्जी छात्रवृत्तियों से अपनी जेबें भरने वाले निजी स्कूल संचालक फर्जीवाड़ा करके सरकार को सालाना करोड़ों रूपए की चपत लगा रहे हैं। सरकार द्वारा आरटीई के तहत प्रवेश देने वाले स्कूलों को प्रति बालक/ बालिका के हिसाब से फीस का भुगतान करती है। प्रत्येक विद्यालय को औसतन एक लाख रूपए की सालाना पुर्नभरण राशि सरकार से मिल जाती है, इस हिसाब से सरकार को प्रति वर्ष करोड़ों रूपए का नुकसान हो रहा है। सरकार की आंखों में धूल झौंकने के लिए निजी स्कूल संचालक अधिक फीस दिखाकर भुगतान उठा लेते हैं। सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लागू किया गया शिक्षा का अधिकार अपेक्षित परिणाम देने में नाकाम रहा है। इस कानून के तहत निजी स्कूलों में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े बच्चों को 25 फीसदी आरक्षण देना अनिवार्य है, जिसका पालन प्राईवेट स्कूल नहीं कर पा रहे। शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए सरकार व शिक्षा विभाग द्वारा लगातार कवायद की जा रही है, वहीं मिलीभगत की वजह से प्राईवेट स्कूल आरटीई कानून को अपने पैरों तले कुचल रहे हैं।
#गड़बड़झाला, मूलभूत सुविधाएं नदारद और फर्ज़ी भौतिक सत्यापन@
फर्जी मान्यताएं हासिल करके एक ही बिल्डिंग में कई स्कूल कॉलेज चलाने वाले स्कूल संचालकों के पास ना तो मापदण्डों के अनुसार भौतिक संसाधन है और ना ही शिक्षकों की पर्याप्त व्यवस्था। आरटीई के तहत सामान्य बच्चों के साथ गरीब बच्चों को भी सभी वांछित सुविधाएं उपलब्ध कराने के स्पष्ट निर्देश हैं। कई बच्चों से तो अन्य प्रकार के शुल्क भी वसूल लिए जाते हैं। कई स्कूलों में पर्याप्त फर्नीचर व इंफ्रास्ट्रक्चर तक नहीं है, जहां मासूम बच्चों को उपयुक्त वातावरण में शिक्षा प्रदान की जा सके। शिक्षाधिकारी भी पर्यवेक्षण के नाम पर खानापूर्ति करत हुए नजर आते हैं और चाय- नाश्ते से संतुष्ट होकर लौट जाते हैं। सामान्य बच्चों की तरह ही गरीब बच्चों पर भी सेटिंग वाली दुकानों से कॉपी, किताब, ड्रेस, स्वेटर, जाकिट, टाई- बेल्ट, जूते- मौजे, स्टेशनरी, बस्ते आदि सामग्री खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता है। गरीब बच्चों के आर्थिक शोषण की जानकारी होते हुए भी शिक्षा विभाग और सरकार कोई कार्यवाही नहीं करती। फीस के भुगतान से पूर्व भौतिक सत्यापन दल भी लीपापोती कर रिपोर्ट विभाग को प्रस्तुत कर देते हैं!

Share This Article
Follow:
Sub Editor @dainikreporters.com, Provide you real and authentic fact news at Dainik Reporter.
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *