Tonk (भावना बुन्देल) । जब- जब मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है, प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति पैदा हुई है। अतिशय दोहन के बाद विपदाओं का दौर शुरू होता है, वहीं मौसम का मिजाज भी बदलना शुरू हो जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) के प्रभाव से ग्लेशियर (glacier) घटते जा रहे हैं, जिसके कारण समुद्रों का जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है। पेड़ों का लगातार कटना निश्चित रूप से विनाश का कारण बनेगा। टोंक जिले मेंं भी प्रकृति के दुश्मनों ने जिस निर्ममता से कुदरत का चीर हरण किया है, उसके कारण प्राकृतिक आपदाओं ने दस्तक देना शुरू कर दी है।
बजरी और पत्थरों के बेरोकटोक खनन ने बनास नदी और पहाड़ों की अस्मत निर्दयतापूर्वक लूट ली है। इस मामले में आए- गए प्रशासनिक अफसरों और नेताओं ने कार्यवाही के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की है। इन हालातों में टोंक जिले में भूगर्भीय हलचल की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। कोई ताज्जुब नहीं कि भूकम्प के कारण जिले के तमाम घर, मकान, बंगले और आलीशान इमारतें किसी रात को मलबे में तब्दील हो जाएं।
पांच साल में आ चुके हैं तीन भूकम्प
जिले में 25 व 26 अप्रैल 2016 को दो बार भूकम्प (earthquake) के हल्के झटके महसूस किए जा चुके हैं। इससे पूर्व 24 फरवरी 2013 को भी टोंक में तगड़ा भूकम्प आ चुका है। इससे माना जा सकता है कि टोंक में आने वाले दिनों में भी भूकम्प आने की प्रबल संभावनाएं हैं। इस सन्दर्भ में पर्यावरण तथा भूगोलविदों का मानना है कि अत्यधिक खनन वाली जगह भूकम्प का केन्द्र होती है। जरूरत से ज्यादा बजरी, मिट्टी, पत्थर व पानी का दोहन भूकम्प का कारण बनता है। गौरतलब है कि जिले में बजरी तथा पत्थर का खनन भारी पैमाने पर होता है, जिससे टोंक में भयानक भूकम्प आने की आशंकाएं अधिक हैं।
जिले में जारी है बजरी और पत्थरों का अवैध खनन
प्रशासनिक अनदेखी के कारण जिले में कई सालों से बजरी और पत्थरों के अवैध खनन का कारोबार जारी है, नतीजन बनास नदी का सीना छलनी- छलनी हो चुका है और प्रकृति की शान दिखने वाली पर्वत श्रृंखलाएं आधे से ज्यादा समाप्त हो चुकी है। ट्रोलों, ट्रकों और ट्रैक्टर ट्रोलियों के माध्यम से दिन- दहाड़े परिवहन हो रहा है, जिसकी जानकारी प्रशासन को होते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं की जा रही। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर भी सरकारी पाबन्दी का ना होना पर्यावरण के अतिशय दोहन का कारण बन रहा है।
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पांच साल पहले जिले में काफी हरियाली थी, लोग बताते हैं कि अत्यधिक मात्रा में पेड़ काटने से पुरानी टोंक के करीब अंधेरा बाग वीरान हो चुका है। चतुर्भुज तालाब के पीछे अत्यधिक खनन ने भी यहां के आस- पास इलाके को उजाड़ दिया है। वन विभाग और जिला प्रशासन की लापरवाही ने टोंक जिले की जनता को मौत के मुंह में धकेल दिया है, जहां अत्यधिक खनन की वजह से प्राकृतिक आपदाएं दस्तक देने लगी हैं।
खनन माफिया नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) की गाईड लाइनों को बेरहमी से कुचलते बनास नदी की कोख छलनी करने में लगे हुए हैं। सच्चाई यह है कि बजरी और पत्थरों ने खनन माफियाओं की तिजोरियां अकूत दौलत से भर दी हैं, जिसमें कहीं ना कहीं जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की भी बड़ी हिस्सेदारी रही है।