प्रशासनिक उदासीनता के कारण सड़ रहे हैं शहर के ऐतिहासिक तालाब,डस्टविन बन चुके हैं प्राचीन कुएं-बावड़ियां

Dr. CHETAN THATHERA
5 Min Read

Tonk news (भावना बुन्देल) ऐतिहासिक धरोहरों और प्राचीन जल स्रोतों के प्रति उदासीन रहना स्थानीय नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों की आदत बन चुकी है। तकरीरों में भले ही जल स्वालम्बन के विषय पर लम्बे- चौड़े तर्क दिए जाते हों किन्तु उन्हें अमली जामा पहनाने में हमेशा कोताही बरती जाती है। मुख्यालय पर चतुर्भुज तालाब, तेलियों का तालाब, मोती बाग तालाब, अस्तल का तालाब, धन्ना तलाई, महादेवाली का तालाब, रेडि़वास का तालाब, अन्नपूर्णा डूंगरी तालाब, तालकटोरा तालाब और खलील सागर नामक पुराने तालाब रख रखाव व प्रशासनिक अनदेखी के कारण अस्तित्व समाप्ति की तरफ अग्रसर हैं।

जो तालाब किसी जमाने में पेयजल का महत्वपूर्ण स्रोत हुआ करते थे, वे आज भीषण गन्दगी की वजह से बीमारी का सबब बने हुए हैं। शहर की अवाम भी इन तालाबों की दुर्दशा देखकर गाहे ब गाहे अफसोस जताकर रह जाती है। हकीकत यह है कि शहर के किसी तालाब का पानी पीने योग्य नहीं रहा, जबकि इनकी नियमित ढंग से सार संभाल की जाती तो ये भूजल स्तर को बढ़ाने में मददगार हो सकते थे। पानी की किल्लत को भी समाप्त किया जा सकता था। विशेषज्ञों के अनुसार जिस शहर के तीन तरफ बनास नदी, समृद्ध कुएं, प्राचीन बावड़ियां और आबाद एक दर्जन तालाब हों, उस शहर में पानी की कमी कभी हो ही नहीं सकती।


अतिक्रमण का शिकार है प्राचीनतम चतुर्भुज तालाब


सन 1441 में राव सातलदेव द्वारा निर्मित चतुर्भुज का ऐतिहासिक तालाब आज भी आध्यात्मिक दृष्टि से लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। इसके चारों तरफ स्थापित मन्दिरों, मस्जिद व जैन नसिया की वजह से भी लोगों की आवाजाही लगातार बनी रहती है। नगर परिषद व वन विभाग की लापरवाही के कारण वर्तमान में इस तालाब के तटवर्ती इलाकों में लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है।

अवैध खनन के कारण भी इस तालाब में पानी की आवक बहुत कम हो गई है। देख- रेख के अभाव में ये तालाब अपनी बदनसीबी पर आंसू बहा रहा है। जबकि सार्वजनिक जलाशयों का संरक्षण और सौन्दर्यीकरण करना प्रशासन की अहम जिम्मेदारी है।


सडांध मार रहा है शहर के बीचों- बीच तेलियों का तालाब


खुले शौचालय, डम्पिंग यार्ड और मृत पशुओं का केन्द्र बन चुका तेलियों के तालाब का पानी वर्तमान में जहरीला हो चुका है। इस तालाब के इर्द- गिर्द रहने वाले लोग आए दिन तालाब की सड़ांध से परेशान रहते हैं। ये तालाब वास्तव में बीमारियों और प्रदूषण का महत्वपूर्ण केन्द्र बन चुका है, जिसकी सफाई का काम नगर परिषद कभी मुकम्मल तौर पर नहीं करा पाई।


विलुप्त होने के कगार पर हैं खलील सागर, रेडि़वास व तालकटोरा तालाब


नवाबी शासन के दौरान निर्मित खलील सागर, रेडि़वास व तालकटोरा तालाब का वजूद खत्म होता नजर आ रहा है। तालकटोरा तालाब का अस्तित्व नगर परिषद ने सामुदायिक भवन बनाकर समाप्त दिया है। शेष बची जमीनों पर भी कई लोगों ने अतिक्रमण कर पक्के मकान बना लिए हैं। इस तालाब में पानी की आवक के रास्ते भी पूरी तरह से बन्द किए जा चुके हें। खलील सागर की हालत भी काफी खराब है, जिस पर नगर परिषद, जनप्रतिनिधियों और अतिक्रमियों की पैनी नजर है। इस तालाब में अब केवल पानी के नाम पर कीचड़ बचा है। रेडि़वास के तालाब में शहर के ज्यादातर गन्दे व बरसाती नाले आकर गिरते हैं, जो इसके पानी को विषैला बना चुके हैं। किसी जमाने में साढ़े छह बीघा का रेडि़वास तालाब लोगों द्वारा अतिक्रमण किए जाने के कारण मात्र दो बीघा के तालाब में तब्दील हो चुका है।

इस तालाब के पानी निकासी का रास्ता भी अवरूद्ध है, जिसकी वजह से बारिश के मौसम में आस- पास की कॉलोनियां जल मग्न हो जाती हैं। कमोबेश ऐसे ही हालात मोतीबाग तालाब, धन्ना तलाई, अन्नपूर्णा डूंगरी तालाब और अस्तल के तालाब के हैं, जिन पर जिला प्रशासन व नगर परिषद की नजरें इनायत नहीं हुई है। काश! इन तालाबों के सौन्दर्यीकरण का काम प्रशासनिक तौर पर गंभीरता से किया जाता तो जल स्वावलम्बन कार्यक्रम की सफलता को चार चांद लग सकते थे। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने अब्दुल रहमान की जनहित याचिका पर फैसला देते हुए जल स्रोतों के संरक्षण के संबंध में 15 अगस्त 1947 की स्थिति बहाल रखने के निर्देश दिए हैं, जिसकी पालना जिला प्रशासन आज तक नहीं करा सका है।

Share This Article
Follow:
चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा,सी ई ओ, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम