Tonk News(भावना बुन्देल) प्रदेश में मौजूदा कांग्रेस सरकार का कार्यकाल पूर्ण होने में दो वर्ष से अधिक का समय शेष है। सियासी कायदों के मुताबिक चुनाव लडऩे वाले नेता अपने- अपने क्षेत्रों में साल- दो साल पूर्व से ही सक्रिय होने लगते हैं। सार्वजनिक आयोजनों में उपस्थिति, कार्यकर्ताओं से सम्पर्क- संवाद, प्रभावशाली लोगों के कार्यक्रमों में भागीदारी व सोशल मीडिया के माध्यम से चर्चा में बने रहने की कोशिश करते हैं।
स्थान विशेष पर पहुंच कर मौत- मय्यत पर संवेदना प्रकट करना और किसी ना किसी बहाने क्षेत्र के लोगों तक बधाई संदेश प्रेषित करना, उनकी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा बन जाता है।
इस मामले में टोंक जिले की निवाई- पीपलू (सुरक्षित), देवली- उनियारा, मालपुरा- टोडारायसिंह व टोंक विधानसभा सीटों की पड़ताल इस आलेख में प्रस्तुत है, जो भाजपाके नजरिए से काफी अहम है।
हार के बावजूद पूर्व विधायक राजेन्द्र गुर्जर देवली-उनियारा विधानसभा क्षेत्र में हमेशा रहे सक्रिय*
परिसीमन के बाद देवली- उनियारा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी गणित गुर्जर- मीणा के जातिगत समीकरणों पर टिका है, जहां सामान्य वर्ग की सीट होने के बावजूद एकमुश्त वोट बैंक प्रत्याशी चयन का आधार बनता है। तकरीबन एक दशक पूर्व हुए परिसीमन के बाद देवली- उनियारा विधानसभा का सियायी परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। सामान्य वर्ग की सीट होने के बावजूद भाजपा- कांगे्रस ने 2008, 2013 व 2018 के चुनावों में अपने प्रत्याशी गुर्जर- मीणा जाति से बनाए हंै।
जनरल वोटर्स में फूट की वजह से दोनों पार्टियां सामान्य वर्ग के प्रत्याशी को चुनावी रण में उतारने से कतराती है। उन्हें गुर्जर और मीणा जाति की थोक वोटिंग पर ही यकीन रहता है, जो विजयीश्री का प्रमुख अधार भी बनती है।
देवली, उनियारा तहसील और दूनी उप तहसील को मिलाकर बनाए गए इस विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल अभी 300 मतदान केन्द्र हैं, जिसमें वर्तमान में 2,76,305 मतदाता हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से लम्बे- चौड़े इस विधानसभा क्षेत्र के प्रत्येक गांव में पहुंचना प्रत्याशियों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण माना जाता है।
2013 के चुनाव में भाजपा के राजेन्द्र गुर्जर ने कांगेस के दिग्गज रामनारायण मीणा को 26,635 वोटों से हराया। गुर्जर को 82,228 वोट मिले, वहीं मीणा को 55,593 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि भाजपा के राजेन्द्र गुर्जर को 2018 के चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा, जहां उन्हें कांग्रेस के हरीश चन्द्र मीणा ने 21,476 वोटों से हराया। हरीश मीणा को 95540 वोट मिले, वहीं राजेन्द्र गुर्जर को महज 74064 वोट ही मिल पाए।
‘एक बार की जीत और एक बार की हार’ के बाद राजेन्द्र गुर्जर क्षेत्र में निरन्तर सक्रिय रहे हैं। शायद वे आश्वस्त हैं कि 2023 में भाजपाउन्हें ही प्रत्याशी घोषित करने वाली है।
स्थानीय उम्मीदवार के तौर पर निवाई- पीपलू विधानसभा क्षेत्र में राम सहाय वर्मा का दावा मजबूत
जिले की एकमात्र सुरक्षित विधानसभा सीट निवाई- पीपलू से भाजपा के पास हमेशा मजबूत प्रत्याशियों का अभाव रहा है। 286 मतदान केन्द्रों वाले अजा सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान मतदाताओं की तादाद 260126 है। इस क्षेत्र में स्थानीय चेहरा होने के नाते रामसहाय वर्मा की दावेदारी को चुनौतियां मिलना नामुमकिन सा नजर आता है। पंचायत व नगर पालिका चुनावों के बाद क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है, आने वाले दो सालों की सियासी उठापटक भी कई तरह की करवटें बदलने वाली साबित होंगी। क्षेत्र में भाजपा- कांगेस के अलावा अन्य किसी पार्टी या निर्दलियों का वजूद नहीं है। 2018 के चुनाव में भाजपा ने पहली बार रामसहाय वर्मा को टिकट देकर चुनावी दंगल में उतारा था, जहां कांग्रेस के प्रत्याशी प्रशांत बैरवा ने रामसहाय वर्मा को रिकार्ड 43889 वोटों से हराया था।
प्रशान्त को 105784 वोट मिले, जबकि भाजपा के रामसहाय को 61895 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। परास्त होने के बावजूद रामसहाय वर्मा की हिम्मत नहीं टूटी और तीन साल से लगातार क्षेत्र की जनता के सम्पर्क में है।
उन्हें यकीन है कि ‘एंटी-इनकम्बेंसी फैक्टर’, मौजूदा विधायक प्रशान्त बैरवा के विरोधियों की बढ़ती तादाद व कार्यकर्ताओं से सतत सम्पर्क, 2023 में उनकी किस्मत चमकाने वाला साबित होगा। यदि सब कुछ ठीक- ठाक रहा तो पार्टी उन्हें दोबारा टिकट देकर मैदान में उतार सकती है।
हालांकि आजादी के बाद से ही इस सीट पर पैराशूटर प्रत्याशियों की पैनी निगाह रही है। लिहाजा इस बारे में ज्यादा कुछ लिखना जल्दबाजी होगी।
दो बार बड़े मार्जिन से जीत चुके विधायक कन्हैया लाल चौधरी को 2023 में हैट्रिक की उम्मीद
परिसीमन के बाद बदले हुए समीकरणों वाला मालपुरा- टोडा विधानसभा क्षेत्र अपने सियासी मिजाज की वजह से सुर्खियों मेंं रहता है। परिसीमन से पूर्व यह टोडारायसिंंह विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। जाट बैल्ट होने के कारण इस क्षेत्र में हमेशा जाट राजनीति हावी रहती है। दूसरे शब्दों में यहां के चुनाव नतीजे जाट वोटों की करवट पर निर्भर करते हैं। एक वक्त था, जब मालपुरा सियासत की धुरी व्यास परिवार के इर्द- गिर्द घूमा करती थी। 1951 से लेकर 2013 तक सम्पन्न विधानसभा चुनावों में क्षेत्र के वोटरों का मिजाज परिवर्तनशील रहा है। उन्होंने हमेशा बदलाव को महत्व देते हुए नए प्रत्याशी का चुनाव किया है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कन्हैया लाल चौधरी ने लगातार दूसरी बार विजय हासिल करते हुए राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी रणवीर पहलवान को बड़े मार्जिन से हराया।
कन्हैया लाल को 93237 वोट मिले, वहीं पहलवान को 63451 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। 2013 के चुनाव में बीजेपी के कन्हैयालाल चौधरी ने पहली बार रिकार्ड मतों से जीत हासिल की। कन्हैया लाल को 76799 को वोट मिले, वहीं कांग्रेस के रामबिलास चौधरी को महज 36578 वोट ही मिले। विपरित हवा में भाजपा को जीत दिलाने वाले कन्हैया लाल चौधरी को 2023 में जीत की हैट्रिक का पूरा भरोसा है। रिकार्ड वोटों से जीतने के आदी हो चुके चौधरी का टिकट पहली सूची में ही कन्फर्म होने की प्रबल संभावना है।
2013 की जीत, राजे और शाह का वरदहस्त, पार्टी की सहानुभूति बनेगी अजीत सिंह मेहता के टिकट का आधार
2013 के विधानसभा चुनाव में 189707 मतदाताओं वाला टोंक विधानसभा क्षेत्र भाजपा प्रत्याशी अजीत सिंह मेहता को रिकार्ड 30343 मतों से जिताकर कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। जिन उम्मीदों से टोंक की जनता ने मेहता को विधायक बनाया था, उन अपेक्षाओं पर खरा उतरने में युवा विधायक एक हद तक कामयाब भी रहे। मिलनसार, मृदुभाषी, सरल व समर्पित स्वभाव के लिए मशहूर अजीत मेहता को 2018 के चुनाव में भाजपा अपना प्रत्याशी बना चुकी थी किन्तु एन वक्त पर उनका टिकट काटकर यूनुस खान को चुनाव लड़वाया गया।
हालांकि भाजपा का ये प्रयोग पूरी तरह विफल रहा, लिहाजा उन्हें सीट गंवानी पड़ी। जानकारी के मुताबिक लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी ने मेहता की नाराजगी दूर करते हुए ये आश्वासन दिया कि 2023 के चुनाव में उन्हें ही टिकट दिया जाएगा। वर्तमान में मौजूदा हालात को भांपकर वे इन दिनों लगातार सक्रिय हैं और अपने राजनीतिक कैरियर की दूसरी पारी खेलने के लिए बेताब हैं। हालांकि टिकट के मामले में मेहता को छोटी- मोटी चुनौती का सामना भी करना पड़ेगा।
प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे और गृहमंत्री का वरदहस्त भी मेहता को हासिल है। सूत्रों के अनुसार गृहमन्त्री अमित शाह से भी मेहता के नजदीकी सम्बन्ध बताए जाते हैं इस क्षेत्र में जीत का सर्वाधिक अन्तर 2018 के चुनाव में रहा, जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट ने भाजपा के यूनुस खान को 54179 वोटों से हराया। सचिन पायलट को 109040 वोट मिले, वहीं यूनुस खान को महज 54861 वोट ही मिले।
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