टोंक पुलिस की कार्यशैली ,सरकार पर बड़ा सवालिया निशान ?
टोंक(फिरोज़ उस्मानी)। प्रदेश पुलिस की कार्यशैली के चलते अभी राजस्थान सरकार अलवर मामले के पेंच से भी नही निकल पाई थी कि टोंक पुलिस के भ्रष्टाचार मामले ने एक बार फिर से सरकार पर सवालियां निशान खड़ा कर दिया है। क्योंकि ये पूरा मामला प्रदेश के डिप्टी सीएम सचिन पायलट के गढ़ टोंक जिले से जुड़ा है । टोंक एसीबी भ्रष्टाचार मामले में पीपलू थाना कास्टेंबल के खिलाफ कार्रवाई के बाद यंहा की पूरी जिला पुलिस भ्रष्टाचार के घेरे में आ गई है। पूरे मामले में पीपलू थाना प्रभारी विजेन्द्र सिंह गिल भी शामिल है। डिप्टी सीएम के निर्वाचित क्षेत्र में ही पुलिस भ्रष्ठाचार के आरोपों से घिरी हो तो सरकार पर उगूंली उठना वाजिब है।
पीपलू थाना प्रभारी विजेन्द्र सिंह गिल द्वारा कांस्टेंबल कैलाश चौधरी से ही चौथ वसूली का कार्य करवाया जा रहा था। बजरी माफियाओं से चौथ वसूली की करोड़ो रूपयां की रकम का बंदरबाट हो रहा था। काफी समय से टोंक पुलिस पर बजरी माफियों से साठगांठ के आरोप लगते आ रहे थे। इसके तहत टोंक एसीबी ने पुलिस के इस नेटवर्क की पोल खोल खोलते हुए कांस्टेंबल कैलाश चौधरी सहित दलाल राकेश चौधरी व शंकर चौधरी को रगें हाथ गिरफ्तार कर 1लाख 46 हजार 500 रूपयां की रकम बरामद की है। हांलाकि थाना प्रभारी विजेन्द्र सिंह गिल फरार होने में कामयाब हो गया।
इसके लिए एसीबी कई स्थानों पर दबिश दे रही है। पुलिस की इस काली कमाई का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि कांस्टेंबल कैलाश चौधरी एक दिन में बजरी वाहनों से 2 लाख रूपयां से ज्यादा की रकम जमा करता था। कैलाश चौधरी ने पिछले दो माह में अपने थाना प्रभारी विजेन्द्र सिंह गिल को 40 लाख रूपयां राशि दे चुका है।
आखिर कौन कौन से आला अधिकरियों तक ये भ्रष्ठाचार की ये करोड़ो की राशि पहुचाई जा रही थी। पूरे मामले में अगर निष्पर्ष रूप से जांच हो पाई तो टोंक के कई आला पुलिस अधिकारियों पर गाज गिर सकती है। अब सवाल ये खड़ा होता है, कि डिप्टी सीएम सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्र की ही पुलिस भ्रष्ठाचार के आरोपों में घिरी हो तो प्रदेश का हाल तो आप समझ ही सकते है।