राधेश्याम माली भी रखता है, माहे रमज़ान में रोजा
पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, रमजान में रोजा रखने की परम्परा
टोंक (फिरोज़ उस्मानी)। टोंक का देशभर में मज़हबी हिसाब से एक अहम मुकाम रहा है। रियासतकाल से ही हिन्दु व मुस्लिम सभी बड़े पर्व बढ़े सद्भाव से मनाते आ रहे है। इनमे से एक माहे रमजान का पवित्र महिना भी है। आज भी कुछ ऐसे हिन्दु परिवार है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी रमजान माह में मुस्लिम रिति -रिवाज अनुसार रोजे रखते चले आ रहे है। जो यहंा की हिन्दु मुस्लिम एकता की अहम मिसाल है। अरबी फारसी शौध संस्थान में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी राधेश्याम माली पिछले 50 वर्ष से रमजान माह के पूरे रोज़े रखते आ रहे है। बरसों सें राधेश्याम माली की पीढ़ी मौलवी इरफान साहब की दरगाह की सेवा करता आ रहा है। राधेश्याम माली ने बताया कि वो 15 वर्ष की आयु से रोज़े रखते आ रहे है। मुस्लिम रिति-रिवाज अनुसार वो सहरी करते है, तथा रोजा इफ्तार भी करते है। सहरी में वो केवल हलवें का ही सेवन करते है। रोजा खोलने वो मौलवी इरफान की दरगाह पर ही जाते है। जहां कई मुस्लिम रोज़दार इफ्तार करने पहुचंते है। राधेश्याम ने बताया कि उसके दादा व उसके पिता से ये सिलसिला चला आ रहा है। उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मौलवी इरफान की दरगाह की खिदमत करता आ रहा है। वो भी पूरे रमजान के रोज़े रखा करते थे। वो भी इसी परम्परा को निभा रहा है।
राधेश्याम माली ने बताया कि रियासतकाल से ही टोंक में रोज़े का काफी एहतराम किया जाता है। हालांकि समय के साथ कुछ बदलाव जरूर आए है। पहले रोजे का समय बताने हेतू सकेंत के लिए तोपों से गोले दागे जाते थे। अब उनके स्थान पर मस्जिदों में साईरन बजाए जाते है। बाजार में सन्नाटा पसरा रहता था।