शाहपुरा में कुंडिया बंद करने से पहले घरों में पानी तो पहुंचाओ

liyaquat Ali
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शाहपुरा-(मूलचन्द पेसवानी)। नगर पालिका शाहपुरा में ईओ के पद पर जितेंद्र कुमार के कार्यभार संभालते ही उनको दबाव में लेकर इस प्रकार का तुगलगी फरमान जारी करा दिया गया जो अब स्थानीय प्रशासन के साथ शहरवासियों के गले की फांस बन गया है। ईओ के हस्ताक्षरों से जारी आदेश में शाहपुरा एसडीएम श्वेता चैहान के हवाले से कहा गया है कि शहर की विभिन्न गलियों में पीने के पानी को नलों से भरने व संग्रहण करने के लिए जो कुंडिया बनी हुई है उनको आगामी सात दिन बाद तोड़ दिया जायेगा। बेशक पालिका कुछ भी कर सकती है परंतु आम जनता को मूलभुत सुविधाएं मुहैया कराने का दायित्व भी प्रशासन का है।

इस आदेश में एसडीएम के कोरोना काल में नगर में किये गये भ्रमण का हवाला दिया गया है कि उस दौरान पाया गया कि कुंडिया कुछ ज्यादा है। मैं भी मानता हूं कुंडिया ज्यादा है। ज्यादा क्या प्रायः देखा जाए तो शाहपुरा का शायद ही कोई घर छुट रहा होगा जहां यह न हो। एसडीएम की गाड़ी संकरी गली में क्या नहीं पहुंची नगर पालिका ने कुंडिया तोड़ने का फरमान ही जारी कर दिया।

यही नगर पालिका वर्तमान बोर्ड को साढ़े चार साल हो गये है, शुरूआत से अब तक इस बोर्ड ने कुंडियों के निस्तारण के लिए क्या किया तोड़ने से पहले यह भी सार्वजनिक होना चाहिए। कुुंडिया तोड़ने के पीछे षड़यंत्र क्या है कि पालिका बोर्ड के पार्षद भी अच्छी तरह से जानते है। आखिर उनकी कौनसी मजबूरी है कि इन कुंडियों को लेकर कोई भी पार्षद चाहे पक्ष को या विपक्ष का खुलकर सामने नहीं आ रहा है। दबी जबान में सभी पार्षद कुंडियों को लेकर तुगलगी फरमान के खिलाफ है। फिर आखिर उन पर कौनसा दबाव है। खैर यह उनकी वो जाने।

हम बात करते है शाहपुरा की कुंडियों व उनकी उपयोगिता व शहर के वाशिंदों को पीएचईडी द्वारा नलों के माध्यम से मिलने वाले पानी का। अपने घर के बाहर खड्डा खुदवा कर उसे कुंडी की शक्ल देने का सामान्यता लोगों को शौक नहीं है। न यह कोई वास्तु शास्त्र का हिस्सा है। पीएचईडी व नगर पालिका द्वारा गलियों में पानी पहुंचाने के लिए डाली गयी लाइनों की गड़बड़ी से परेशान लोगों ने अपने घरों में पानी न पहुंचने पर यह रास्ता अख्तियार किया है कि शासन प्रशासन भी पानी ही पहुंचाने में सफल नहीं रहा तो मजबूरी में लोगों को कुंडी बनाकर तीन फिट गहरे खड्डे में उतर कर पानी भरने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

इस समस्या से नगर पालिका व पीएचईडी दोनो वाकिफ है। क्या नगर पालिका व पीएचईडी का प्रशासन जनता को बता सकता है कि उनके द्वारा किए गए पुख्ता इंतजाम व लाइनों को व्यवस्थित बिछाने के कारण वो प्रत्येक घर में पानी पहुंचा रहे है। मानाकि नगर पालिका का पानी पहुंचाने में प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना देना नहीं है पर गलियों में लाइन डालने के लिए स्वीकृति पालिका देती है। नगर पालिका ही रिकमंड करती है अमूक गलियों में पाइप लाइन डाली जाए।

खैर शाहपुरा में पिछले बीस सालों से यह व्यवस्था चल रही है। इसके पहले कुंडियों का नामोनिशान नहीं था क्यों कि पीएचईडी की नलों में सप्लाई इतनी आती थी कि घर के अंदर पानी आता था तो नागरिक अंदर ही पानी भर लेते थे। अब शहर में परिवार में बढ़े तो कनेक्शन भी बढ़े। इसके साथ ही यहां पीने के पानी की आपूर्ति भी बढ़ गयी है। फिर भी शहर में जल संकट को सभी ने नजर अंदाज किया है। आज तक किसी ने यह नहीं सोचा कि कुंडी में नल का कनेक्शन पीएचईडी की सहमति के बगैर कैसे हो गया। नगर पालिका ने भी यह भी नहीं देखा कि उसने तो रोड़ कटिंग की परमिशन नहीं दी फिर कुंडी कैसे बन गयी।

अतीत से लेकर आज तक कम से कम पिछले 20 सालों में शासन प्रशासन के स्तर पर हुई नाकामियों, लापरवाही, मिलीभगत की उच्च स्तरीय न केवल जांच होनी चाहिए वरन जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। ताकि कार्यवाही प्रस्तावित हो सके।
जिले में सबसे पहले शहर में चंबल परियोजना का पानी पहुंच चुका है। दो वर्षो से तो पानी की आपूर्ति इतनी अधिक है कि क्या कहने।

राज्य सरकार से निर्धारित मानंदडों से दुगुना पानी अभी शाहपुरा में आ रहा है फिर भी आज सैकड़ों ऐसे घर मिल जायेगें कि उनके घरों के अंदर पानी पहुंचना तो दूर घर के बाहर मुंहाने सड़क के स्तर पर भी पानी नहीं पहुंच रहा है। ऐसे में पाइप लाइन के लेवल में भी कुंडी खोद कर पीने के लिए पानी लेना उनकी मजबूरी बन गया है। नगर पालिका ने इस दिशा में क्यों नहीं सोचा कि कोन ऐसा आदमी होगा कि उसके घर में पानी आये और वह कुंडी खोद कर खड्डे में उतरकर पीने के लिए पानी भरे।

यह समस्या गत पालिका चुनाव में भी संपर्क के दौरान सभी पार्षद व पार्षद प्रत्याशियों ने देखी थी तब आश्वासन भी दिया गया कि समाधान करायेंगें, समधान के लिए शहर में पाइप लाइन विस्तार भी किया गया, भले ही यह विस्तार चंबल परियोजना के तहत किया गया पर पूरा हस्तक्षेप इसमें पालिका व पार्षदों का ही रहा। हर प्रभावशाली ने लाइन को अपने हिसाब से घुमा दिया।

शाहपुरा नगर में पीने के पानी की उपलब्धता में वर्तमान में कस्बे के दो फाड़ है। कहने की कोई हिम्मत नहीं कर पा रहा है कि शहर के एक हिस्से में आज भी पानी घर के अंदर तो क्या उस घर की तीसरे मंजिल तक पहुंच रहा हे, वहां कौनसी तकनीकी काम कर रही है किसी को पता नहीं है। वहीं दूसरा हिस्सा है जहां घर के अंदर क्या उसके घर के मुहांने तक नहीं पहुंच पा रहा है। इस हिस्से में निर्मित पानी की टंकी के 100 मीटर की परिधी क्षेत्र में घरों में पानी नहीं पहुंच रहा है।

यह तकनीकी खामी है। इसके लिए शहरवासियों को जिम्मेदार ठहराया जाना, उनकी जीवनदायिनी बन चुकी कुंडियों को बेरहमी से तोड़ने का तुगलगी फरमान बेमानी ही लगता है। आदेश की क्रियान्विति करते समय शहर में कानून व्यवस्था की स्थिति भंग हो सकती है। आखिर पानी के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। उसके संयम की प्रशासन परीक्षा न लेवें क्यों कि दो माह बाद ही नगर पालिका के चुनाव फिर से आने वाले है। जनता कहीं नहीं जाने वाली है पर आज चुप्पी साधने वाले पार्षदों के साथ शहर में कांग्रेस व भाजपा नेताओं को जनता माफ करने वाली नहीं है। प्रशासन को गंभीरता दिखाते हुए जनता के गुस्से को भांपने का कार्य अपने स्तर पर करना होगा।

जनप्रतिनिधियों से इस समस्या का समाधान होता तो शायद साढ़े चार साल में नगर पालिका शाहपुरा का बोर्ड घर घर में निर्मल जल पहुंचाने में रास्य स्तर पर अवार्ड प्राप्त कर चुका होता पर उसके द्वारा ऐसा कभी नहीं किया गया। ऐसे तुगलगी फरमान पहले भी कई बार जारी हुए है आखिर में यक्ष प्रश्न यह भी है उनका क्या हुआ।
एक बात यह भी सामने आयी है कि पालिका को अपने पास जमा धन को खर्च करने के लिए कुछ गलियों में सीसी निर्माण सड़क बनानी है।

उसकी चैड़ाई में यह कुंडिया बाधक बन रही है, पालिका को केवल वहां पर कुंडियों को एक बार तुडवा कर सड़क बनाकर धन को खर्च करना है। उसके बाद कुंडियों का वापस बनना स्वभाविक है। पर मेरा मानना है कि कुंडियों की समस्या के स्थानीय समाधान की सख्त जरूरत है। इसके लिए बिना राजनीतिक प्रभाव में आये शासन प्रशासन, नगर पालिका, पीएचईडी व चंबल परियोजना को कार्य योजना बनाकर शाहपुरा में ऐतिहासिक कार्य करना चाहिए।

कुछ ऐसे सुझाव व सवाल जिन पर अमल हो तो व्यवस्था सुधर सकती है-
शहर में प्रत्येक घर का सर्वे कर जानकारी ली जाए कि कहां कितना पानी कैसे किस स्थिति में आ रहा है।

कुंडी बनाने की आवश्कता क्यों पड़ी।

क्या घरों में पानी न पहुंचने से परेशान लोगों को अब कोई राहत देकर घरों में पानी पहुंचाया जा सकता है। क्या चंबल परियोजना द्वारा संचालित शहर की तीन टंकियों व पीएचईडी द्वारा संचालित तीन टंकियों क ेजल वितरण व्यवस्था में कोई अंतर है।
शहर के एक भाग में तीसरी मंजिल तक पानी पहुंच रहा है दूसरे भाग में ऐसा क्यों नहीं हो रहा है। क्या शहर में जल वितरण पर निगरानी रखने के लिए स्थानीय स्तर पर स्थायी समिति होनी चाहिए।

पेयजल आपूर्ति पर्याप्त होने के बाद भी शहर में टेंकरों से जल विक्रय का गौरखधधा करने वाला कोई गिरोह तो सक्रिय नहीं, जिसने अपने प्रभाव से पानी का कृत्रिम अभाव करा रखा है। शहर गी गलियों में क्या उचित मानंदड के अनुरूप पाइप लाइन है तथा उनसे मानदंडों के अनुरूप कनेक्शन जारी हुए है।
क्या प्रभावशाली लोगों के यहां मानदंड को ताक में रखकर डबल साइज के पाइप लाइन से कनेक्शन दे रखे है।

जिन लोगों ने पानी की आपूर्ति न आने पर एकाधिक कनेक्शन करा लिये है, उनके कनेक्शन का अनुमोदन कर उनसे मौके पर ही कनेक्शन शुल्क लिया जाए।
नगर पालिका के शहर में जो भी सार्वजनिक नल कनेक्शन है, उनका भौतिक सत्यापन कराया जाए कि वो अभी कहां है।

एक चैथाई परिवार ऐसे है जो नल कनेक्शन नहीं ले सकते है, उसके पीछे उनकी गरीबी भी कारण हो सकता है, उनको पानी वर्तमान में कहां से मिल रहा है ओर नगर पालिका ने उनके लिए सार्वजनिक स्तर पर क्या किया है।

क्या शहर में जल वितरण व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए चंबल परियोजना व पीएचईडी को समन्वित रूप् से जिम्मेदार बनाया जा सकता है। पीएचईडी का रोना रहता है कि चंबल परियोजना आने से उनका बजट तो समाप्त हो गया है, अगर बजट समाप्त हो गया तो जल वितरण को भी उनके हाथ से समाप्त कर चंबल परियोजना को दिया जाए। शाहपुरा के प्रत्येक घर में एक समान मात्रा में पानी पहुंचे ऐसी तकनीक को विकसित कर उसे क्रियान्वित किया जाए ताकि कुंडिया खोदने की जलालत ही न हो।

और अंत में-

विषय लंबा है समस्या विकराल है। यह शाहपुरा वो है जिसके बारे में पहले कहा जाता था कि यहां परकोटे की खाई व तालाब होने के कारण यहां किसी भी कुएं से हाथ में बाल्टी लेकर पानी को निकाल लिया जाता था, अब उसी शाहपुरा में पानी के लिए लोगों को दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर होना पड़ रहा है।

शहर में एसडीएम श्वेता चौहान जन समस्या के समाधान में जागरूक रही है। उनको ही इस दिशा में पहल कर कुछ ठोस नीति तैयार करनी चाहिए ताकि आने वाला कल उनको याद रखे। नगर पालिका के ईओ जितेंद्र कुमार भी युवा व नये है, उनको भी किसी राजनितिक परिदृश्य का हिस्सा बने बगैर जनता का भला कैसे किया जा सकता है, इस थीम को अंगीकार करना चाहिए।

शहर की बेजुबान जनता की आवाज को शब्दों में पिरो कर यहां रखा है, अब देखते है कौन कौन इस पर खरा उतरते है नही ंतो आखिर में पिसना तो जनता को है फिर जनता है कि लोकतंत्र का तकाजा समय पर करेगी।

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