- अंधेरो जाते भी आहे ज्योतिन वारो झूलेलालन सहित कई भजनों पर झूमें भक्तजन
Bhilwara News (मूलचन्द पेसवानी) – जीयवणईं तीय जप तू लाल… कूड़ा मनजा छद तू बहाना…, रामजी के आगे बजा के खड़ताल, छम-छम नाचे अंजनि को लाल…, श्झंडो झूले-झूले मुंहिजो लालण जो… जैसे भजनों की प्रस्तुति पर श्रद्धालु झूमने के लिए मजबूर हो गए। मौका था श्री झूलेलाल सेवा समिति की ओर से गुरूवार को भीलवाड़ा में सिंधी समाज के आराध्यदेव श्री झूलेलाल की स्तुति में चालिहे व्रत के समापन का।
इस मौके पर सिंधुनगर से बहराणा साहब की शोभायात्रा निकाली गई, जो तेजाजी चैक स्थित तालाब पर ज्योति विसर्जन के साथ संपन्न हुई। संत कंवरराम धर्मशाला में सुबह ही भजन-कीर्तन शुरू हो गए। भरूच, पाली, भीलवाड़ा, पुष्कर, पारसोली अजमेर से आए श्रद्धालुओं ने आनंद की अनुभूति कराई। साधकों द्वारा रखे गए चालिहे के व्रत पर उन्हें भगवान झूलेलाल जी के 25 वें वंशज सांई ठकुर मनीषलाल द्वारा प्रसाद स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। भरूच से आए सांई ठकुर मनीषलाल ने आशीर्वचन प्रदान किए। झूलेलाल की पूजा कर भक्तों ने सुख-समृद्धि की कामना की।
अजमेर के गायक कलाकार प्रभु लोंगानी की अगुआई में पंजड़े गाकर श्रद्धालुओं ने आयोलाल झूलेलाल आयोलाल झूलेलाल के जयकारे लगाए। कार्यक्रम में भगवान झूलेलाल की विधिवत पूजा कर भक्तों ने देश भर में सुख-समृद्धि की कामना की। इस दौरान भक्तों ने अखण्ड ज्योत का दर्शन किया।
इससे पूर्व भगवान झूलेलाल के वंशज ठकुर श्री मनीषलाल (बड़ौदा, भरूच वाले साई) ने अपने संबोधन में कहा कि झूलेलाल भगवान हमारे इष्टदेव है। सिंधी भाईयों को अपने धर्म में रहकर नियमित रूप से जोत प्रज्जवलित कर पूजा अर्चना करनी चाहिए। उन्होंने चालिहे के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए सनातन संस्कृति को अक्षुण्य बनाये रखने का आव्हान किया। उन्होंने इस पर चिंता जाहिर की कि आज सिंधी भाईयों के घरों व उनके आपस में सिंधी बोली को नहीं बोला जा रहा है। उन्हांेने कहा कि अपनी भाषा को नहीं बोलने से ही संस्कृति विलुप्त होती है। सिंधी सनातन संस्कृति को अक्षुण्य बनाये रखने के लिए आवश्यकता इस बात की है प्रत्येक परिवार में भगवान झुलेलाल के सम्मुख प्रतिदिन जोत प्रज्जवलित हो तथा घरों में सिंधी बोली को बोला जाए तथा घरो में नियमित झूलेलाल की स्तुति की जाय।
इस दौरान उन्होंने मुरादीं सब खणीं आया मां पहिंजी दिल खणी आयुस., अटल विश्वास आहे मुखे वसीलो पेचडो आहे, अंधेरो जाते भी आहे ज्योतिन वारो झूलेलालन आहे, करे तो अर्जु मौलाई संगत तुहंजी शरण आया.., कंदो मालामाल आयो ऐहडो झूलेलाल जय हो जय हो जय हो., मुहिंजो झूलणं जा साथी चओ झूलेलाल..गाए तो भगवान झूलेलाल के सिंधी गीतों पर सिंधी समाजजन श्रद्धा से झूम उठे।
इससे पूर्व सिंधी समाज के आराध्यदेव झूलेलाल भगवान का चालीहा साहिब उद्यापन सिंधुनगर स्थित झूलेलाल मंदिर में हुआ। सुबह ठकुर सांई मनीषलाल के दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यक्रम का आगाज किया गया। भगत रामचंद्र लालवानी ने झुलेलाल महिमा व स्तुति प्रस्तुत की। बाद में ब्रत रखने वाले सभी साधकों ने सांई मनीषलाल के निर्देशन में अराध्यदेव को अखा सेसा सर्मपण किया। दोपहर में महाआरती के आयोजन के साथ भंडारे का आयोजन भी हुआ। बाद में बहराणा साहिब की ज्योति व बहराणा साहिब की शोभायात्रा निकाली जो तेजाजी चैक पहुंचकर संपन्न हुई, यहां पवित्र ज्योत विसर्जित की गई।
इस मौके पर भगत रामचंद्र लालवानी, उधवदास माखीजा, मनोज लालवानी, राजेश माखीजा, मनीष सबदानी, ओम प्रकाश बाबानी, तुलसी दास निहलानी, चीजन दास फतनानी, भगवान दास नाथरानी, दौलत समतानी, हरीश मनवानी, पपु भगत, लक्ष्मण पेसवानी, मूलचंद पेसवानी, वीरुमल पुरसानी, पार्षद कैलाश कृपलानी व आसन दास लिमानी, ओम गुलाबानी, जितेंद्र रंगलानी, प. नवीन शर्मा सहित अन्य समाज के सदस्यों व युवा संघठनों ने सहयोग किया।
इसलिए मनाया जाता है-
सिंधी समाज के अराध्यदेव झूलेलाल महोत्सव मनाने के पीछे यह मान्यता है कि सिंधु प्रदेश के तत्कालीन शासक मिर्ख सुल्तान के अत्याचारों से मुक्ति के लिए सिंधी समाज ने सिंधु नदी के किनारे 40 दिन तक परिवार सहित व्रत रखकर लाल साईं की आराधना की थी। आराधना से प्रसन्न होकर झूलेलाल ने करसरपुर के रतनराय एवं माता देवकी के घर में अवतार लिया और सिंधी समाज को अत्याचारी बादशाह से मुक्ति दिलाई। तभी से झूलेलाल चालिहा महोत्सव सिंधी समाज द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।