Tonk News (फिरोज़ उस्मानी)- जिले के दूनी क्षेत्र के आवां गांव में मकर संक्रांति के अवसर पर ऐतिहासिक रियासतकालीन दड़ा महोत्सव मकर संक्राति पर्व पर गढ चौक में खेला जाएगा। जिसके तहत इस वर्ष अकाल व सुकाल का फैसला होगा।
परंमपरागत खेला जाने वाला 12 परों के लोगो द्वारा दड़े का विधिवत पूजा अर्चना करने के बाद गढ चौक में लाया जाएगा। खेल में 12 परो के लोगो की हिम्मत और मर्दानगी जागृत करने के लिए महिलाऐं हूटिग करती हुई दिखाई देंगी।
परंमपरागत खेला जाता हे,ये खेल
यह खेल आवां ग्राम मे हर वर्ष मकर सक्रांती को आज के दिन खेला जाता है। एक माह पूर्व 80 किलो वजनी दडे को बावडी के पानी मे डालकर रखा जाता है, सक्रान्ती से पहले दडे को बाहर निकालकर पुन: टाट लपेट कर मोटी रस्सी से सिलाई कर तैयार किया जाता है, इसे मकर-सक्रान्ती को गोपाल चौक मे रखा जाता है। दडे को खेलने आवां के आस-पास बसे बारह पुरा (बारह गांव) के ग्रामिण आते है, जो स्वत: ही क्षेत्र के हिसाब से छह-छह गांवो मे विभाजित होकर अपनी टीम बना लेते है, इस खेल की खास बात आज भी यही है उनके दादा-परदादा के जमानें से चले आ रहे इस खेल से लोगो की मान्यता जुड़ी हुई है। यदि दड़ा अखनिंया दरवाजें की तरफ चला जाये तो समझो अकाल ओर भुखमरी से क्षैत्र के लोगों को रूबरू होना पड़ेगा। यदि दड़ा दूनी दरवाजें की तरफ चला जाये तो समझो पौ बारह यानी खेत लहलाएगें ओर अमन चैन रहेगा।
मकानों की छतों पर हजारों दर्शकों लेते है लुत्फ – गढ चौक के आसपास बने मंदिरो व बहुमजिला मकानों में महिलाऐ रंग-बिरंगे परिधानों में सजधजकर खेलाडिय़ो को फब्तियां कसने के बाद ही खिलाडियों में जोश व उमंग जगाती है। जिस वक्त दो मण वजनी दड़े पर छोटे-मोटे बड़े बूढे सभी अपनी जोर आजमाई में लग जाते है इस खेल में कई लोगो की पगडिय़ा गिर जाती है लेकिन सामाजिक सौहार्द के खेल में भाईचारा पूर्णतया कायम रहता है इस खेल में आसपास के हजारों लोग भाग लेते है। जिस पर दड़े के ठोकरो पर ठोकरे मारते रहते है और बिना गोल के खेल में पसीने से लथपथ होने के बाद भी लगे रहते है। चार घण्टे तक चलने वाले अनोखे व ऐतिहासिक दड़ा खेल में अखनिया दरवाजा व दूनी दरवाजा किधर भी खेलना शुरू कर देता है ।
ये है मान्यता
लोगों के दादा पड़दादाओं के ज़मानें से ही ये माना जाता है कि दड़ा अखनिंया दरवाजें की तरफ चला जाये तो समझो अकाल ओर भुखमरी से क्षैत्र के लोगों को रूबरू होना पड़ेगा। यदि दड़ा दूनी दरवाजें की तरफ चला जाये तो समझो पौ बारह यानी खेत लहलाएगें ओर अमन चैन रहेगा। रियासतकाल में सैनिको की आवश्यकता पडऩे से पूर्व भर्ती में शामिल होने के लिए लोगो को साल में एक दिन मकर संकाति के दिन ही दड़ा खेल के आधार पर उनकी जोर आजमाई के बाद ही सिपाही में भर्ती करते थे। इसी तरह बुजुगो का दावा है कि रियासतकालीन से चले आ रहे दडा खेल की शुरूआत आवां से ही मानते है लोगो का दावा है कि दड़ा खेल से ही फुटबाल खेल की शुरूआत हुई। उसके बाद से ही फुटबाल का खेल शुरू हुआ होगा ।
बिना खर्चे का दड़ा – खास बात यह है कि आवां में पारम्परागत चले आ रहे 14 जनवरी को दड़ा खेल बिना खर्चे के ही तैयार किया जाता है । टाट व बारदाने से तैयार अस्सी किलो वजनी दड़े को तैयार होने के बाद गढ के कुऐं मे डाल दिया जाता है और खेल शुरू होने के करीबन एक घण्टे पहले बाहर निकालकर दड़ा खेल की विधिवत शुरूआत की जाती है ।