जयपुर। पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर बागी होकर चुनाव लड़ने की परंपरा राजस्थान में काफी पुरानी रही है। चुनावों में भाजपा-कांग्रेस के दोनों ही प्रत्याशियों का चुनावी समीकरण बिगाड़ने के साथ ही जीत हासिल करने में सफल होने वाले ऐसे निर्दलीय दावेदारों की भी महत्ती भूमिका होती है।
गत 2013 के विधानसभा चुनावों में कुल दो हजार 194 प्रत्याशी थे, जिसमें निर्दलीयों की संख्या 758 थी। इन्होंने कई सीटों पर तो भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को सीधी टक्कर दी थी। इनमें से सात प्रत्याशी चुनाव जीते, लेकिन कई सीटों पर निर्दलीय पहले और दूसरे स्थान पर रहे।
इसी तरह वर्ष 2008 के चुनाव में 14 और 2003 में 15 निर्दलीय विधानसभा सीटों पर चुनाव जीते थे।
मौटे तौर पर पिछले चुनाव में जयपुर शहर की किशनपोल सीट पर 21 और आदर्शनगर सीट पर बीस निर्दलीय चुनावी मैदान में थे। इन दोनों सीटों पर कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट दिया। किशनपोल में 21 में से 15 निर्दलीय मुस्लिम थे, वहीं आदर्शनगर में 20 निर्दलीयों में से 16 मुस्लिम प्रत्याशी थे।
दोनों ही जगह कांग्रेस का खेल बिगाड़ने में इन निर्दलियों ने अहम रोल निभाया, जिसके कारण दोनों जगह भाजपा के उम्मीदवार चुनाव जीते।
इसी तरह जयपुर जिले की कोटपूतली विधानसभा सीट पर कुल 26 में से 15 निर्दलीय उम्मीदवार थे। इस सीट पर पड़े कुल एक लाख 37 हजार मतों में से निर्दलीय के खाते में 60 हजार मत गए थे। जयपुर जिले की ही विराटनगर सीट पर 20 उम्मीदवारों में से 13 निर्दलीय ही थे। पाली जिले की जैतारण सीट पर चुनाव लड़ने वाले 19 प्रत्याशियों में से 13 निर्दलीय थे, तो जालौर जिले की आहोर सीट पर 23 में से 12 प्रत्याशी निर्दलीय थे।
वैसे तो हर चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है, लेकिन एक ऐसा भी विधानसभा का चुनाव था, जिसमें निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों की संख्या अब तक का रिकॉर्ड कायम किए हुए है अर्थात 1990 के चुनाव में सबसे अधिक दो हजार 136 निर्दलियों ने चुनाव लड़ा। इसी तरह राजस्थान विधानसभा के सबसे पहले चुनाव में जीतने वालों की संख्या 35 थी। इसी तरह वर्ष 2013 के चुनाव में सात निर्दलीय ने चुनाव जीते थे।