वृद्द आश्रम का चलन मुस्लिम समुदाय मे अभी तक नही पनप पाया!

Sameer Ur Rehman
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जयपुर(अशफाक कायमखानी)भारत भर की तरह राजस्थान प्रदेश मे भी अनेक जगह वृद्दा आश्रम कायम है। एवं लगातार किसी ना किसी रुप मे इस तरह के आश्रम तेजी के साथ कायम हो रहे है। जबकि इस तरह के वृद्दा आश्रम कायम करने व उनमे रहने वाले वृद्दो मे मुस्लिम समुदाय का प्रतिशत निल बटा निल ही अभी तक बना हुवा है। इसके हर आदमी या संस्था अपने अपने हिसाब व अनुभव से अनेक कारण गीना सकते है। लेकिन मेरे जहन मे केवल ओर केवल एक कारण जो समझ मे आता है। वो यह है कि इस्लाम धर्म की मान्यतानुसार “मां के पैरो के निचे जन्नत व पिता जन्नत का दरवाजा” की भावना का हर मुस्लिम के दिल मे बचपन से इस तरह घर कर जाना कि उसको बाद मे निकाले से भी निकाला नही जा सकता है।
उक्त “मां के कदमो मे जन्नत व बाप जन्नत का दरवाजा” कथन के प्रभाव के कारण मुस्लिम समुदाय मे वालदेन का दर्जा काफी ऊंचा होने के कारण एक तरह से अनोखा व अच्छा सामाजिक सिस्टम शुरु से बन जाता है कि बुढापे की तरफ जाते माता-पिता की खास खिदमत का ख्याल उनके बेटे व बेटीया अपनी अति व्यस्था के बावजूद भी हर हाल मे खूशी से रखते है। वैसे तो आम रिवाज के चलते हर परीवार मे अक्सर वालदेन बुढापे मे मझले बेटे के साथ रहते है। लेकिन वालदेन होने के कारण उनके हर पुत्र-पुत्रिया उस मछले बेटे के घर पर जाकर भी रोजाना देखभाल करने मे कभी चूक नही करते है। समुदाय के साधारण परीवारो मे तो ऐसा चलन आम तौर पर कायम है कि वो चाहे तंगहाली मे जीवनयापन व निवास करे लेकिन अपने वालदेन को अपने साथ ही रखते है। लेकिन आला व व्यस्तम सरकारी सेवा करने वाले अधीकारी भी अपनी व्यस्ता के बावजूद वो वालदेन की खिदमत करने मे कंजूसी व कभी भूलते नही।
तत्कालीन राजस्थान हाई कोर्ट जस्टीस मोहम्मद असगर अली चोधरी को अपने सेवा काल मे बुढापो मे कमजोर हो चुकी अपनी माता कि खिदमत करते अगर कोई देख लेता तो दांतो तले ऊंगली दबाये नही रख पाते। रात भर माता को रुक रुक कर करवट बदलाना व पाऊडर लगाने के साथ फाइले पढकर अगली सुबह कोर्ट मे काम निपटाना काफी समय तक उनके जीवन का भाग रहा है। उनकी मां ने भी आखिरी सांस बेटे असगर अली चोधरी की गोद मे सर रखकर ही ली। जस्टीस असगर अली चोधरी जैसे एक अधीकारी नही है। राजस्थान मे इन जैसे काफी उच्च स्तर के अधीकारी आज भी मोजूद है। जो अपने वालदेन की खिदमत का पुरा का पुरा ख्याल व अहतराम वालदैन के आखिर सांस तक करते रहे है। जस्टिस भंवरु खा व आईजीपी लियाकत अली खा व उनके भाई आईएएस अशफाक हुसैन एव जाकीर हुसैन को अपनी माता की बुढापे मे खिदमत करते देख उनके हक मे दुआ करने से कोई रुक नही सकता। इसी तरह हैदर अली जैदी IPS को सरकारी सेवा के अलावा उनको मिलने वाला समय अपने वृद्द माता पिता की खिदमत मे खर्च करना बेहतर मानकर उनके मुताबीक रुटीन दिन चर्या बना रखी है।
उक्त अधीकारी केवल मात्र एक छोटे रुप मे उदाहरण के तौर पर लिखे गये है। जबकि ऐसे लोगो की एक बडी तादात गिनाई जा सकती है। इसी हफ्ते IGP सरवर खां के पिता कर्नल अलीम खां के करीब नब्बे साल के बुढापे मे जरा तबयत को झटका लगा तो उन्होने अपनी ईबादत मे लगने वाले समय के अलावा बाकी मिलने वाले समय को अल्लाह पाक के करम से केवल ओर केवल पिता की खिदमत मे खर्च करने का तय करने के अलावा सभी तरह के अन्य प्रोग्राम स्थगित कर रखे है। आम भारतीय के दिलो मे एक भावना घर कर चुकी है कि बडे सरकारी अधीकारी व उच्च श्रैणी की सेवा करनै वालो कै पास सब कुछ होता लेकिन उनके पास अपने वालदेन के पास दो मीनट बैठने का समय नही होता है। पर मुस्लिम समुदाय के अधीकारीयो मे ऐसा होना प्रतीत नही होता है। वो या तो वालदेन को पास रखते या फिर विकल्प के तौर पर कोई ना कोई उनके पास हरदम रहता है।
पिछले दिनो भारत मे अजीब हादसे सूनने को मिले कि फ्लेट मे मरे मां को महिनो हो गये पर पता तब चला जब बेटा अमेरीका से किसी कारण भारत आया ओर फ्लेट मे मां खा कंकाल देखा। अजमेर मे अधीकारी बेटो की पेंसन पाती मां को वृद्द आश्रम रहना पड़ा। उक्त तरह के अनेक हादसो की खबर अखबारात मे अक्सर पढनै को मिलती रहती है। जिनमे कुछ तो काफी भयानक होती है।
कुल मिलाकर यह है कि हर बूढे माता-पिता की अपनी खिदमत कराने के अलावा एक इच्छा रहती है कि वो अपना आखिर समय सकून के साथ अपने बच्चो के अलावा पोता-पोती व कभी कभी दोयता-दोयती के मध्य रहकर खुशी से निकाले। जबकि अनेक लोग इन सब के विपरीत अपने वालदेन को बोझ मानकर उनको ढलती व लाचारी की उम्र मे अजनबीयो के मध्य वृद्दा आश्रम के दर पर पटक आते है।

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Editor - Dainik Reporters http://www.dainikreporters.com/
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