राजस्थान मैं तीसरे मोर्च की बात बेकार का सपना है? Read More »
जयपुर। (सत्य पारीक)राजस्थान में अब 21वीं सदी में तीसरे दल का स्वपन देखना है बेकार लगता है , क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में इतनी जगह खाली रहती है कि किसी भी नए उभरते हुए नेता और पुराने नेता को जगह की किसी भी समय कमी नहीं रहती है । कांग्रेस से छोड़कर आने वाले नेता को भाजपा सर आंखों पर बैठाती है , ठीक उसी तरह भाजपा से नाता तोड़ने वाले नेता के लिए कांग्रेस पलक पावडे बिछाए रहती है , इस कारण तीसरी राजनीतिक शक्ति के लिए कोई मजबूत व जनाधार वाला नेता बचा हुआ नहीं रह सकता है जो अपने कंधों पर तीसरी राजनीतिक शक्ति को जन्म देकर सत्ता में भागीदार बना सकें।
एक जमाना था जब देश आजाद हुआ था तब राजस्थान में पूर्व राजा महाराजाओं ने एक दल का गठन किया था जो सत्ता में तो नहीं आ सका लेकिन उसने तीसरी राजनीतिक शक्ति की कमी पूर्ति करने की काफी कोशिश की । उसके बाद जनसंघ अस्तित्व में आ गया जो लंबे समय अपनी हिंदूवादी छवि को लेकर राजनीति में संघर्ष करता रहा इसी के साथ वामपंथी दल भी उदय हुए दोनों ने ही विधानसभा में मुठी भर विधायकों को पहुंचाने में सफलता भी हासिल की , लेकिन सत्ता में भागीदारी नहीं मिली । कांग्रेस से अलग हुए चौधरी चरण सिंह ने अपने नेतृत्व में दर्जनों राजनीतिक संगठनों को जन्म दिया जिनका राजस्थान में प्रतिनिधित्व दौलत राम सारण एवं कुंभाराम आर्य ने किया लेकिन वह भी सत्ता के लिए सफल नहीं हो सके ।
एक समय ऐसा आया जब राज्य में कांग्रेस ने अल्पमत की सरकार बनाकर चलाने की कोशिश की तब विपक्ष ने एकजुट होकर मुकाबला किया था , खूनी संघर्ष होने के बाद भी कांग्रेस को सत्ता विहीन नहीं कर सके । अंत में 1977 का काल ऐसा आया जिसमें सारे दल जनता पार्टी के झंडे के नीचे खड़े हो गए , हालांकि वह झंडा लोकदल का था इसी की टिकट पर सभी ने चुनाव लड़े और कांग्रेस को केंद्र और राज्यों से सत्ता से उखाड़ फेंका । लेकिन इंदिरा गांधी की राजनीतिक सूझबूझ से ढाई साल के अंतराल के बाद जनता पार्टी एक बार पुन जितने दलों को लेकर इकट्ठी हुई थी उन से कहीं ज्यादा दलों के रूप में बिखर गई और कांग्रेस ने नये रूप में सत्तारूढ़ हुई ।
उसके बाद राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी और जनता पार्टी वे लोकदल जैसे दलों का उदय हुआ जो कभी एक झंडे के नीचे नहीं आए इन्हें एक झंडे के नीचे पुनः एक बार कांग्रेस से निकले हुए वी पी सिंह ने एकत्रित किया और सत्ता का स्वाद चखाया , लेकिन ढाई साल के बाद फिर वही राम कहानी दोहराई गई और जनता दल खंड खंड होकर कहीं का नहीं रहा । आज उसका अस्तित्व राजस्थान में तो नहीं है लेकिन अन्य राज्यों में जरूर है ।
राज्य में जब भी विधानसभा चुनाव आते हैं तब कोई न कोई नेता कोशिश करता है कि वो तीसरी शक्ति के रूप में अपना अस्तित्व खड़ा करें लेकिन शिवाय असफल होने के उसके पास कोई रास्ता नहीं बचता , ऐसे नेताओं में चंद्र राज सिंघवी , देवी सिंह भाटी , किरोड़ी लाल मीणा , दिग्विजय सिंह आदि नेताओं के नाम शामिल किए जा सकते हैं , अभी नया नया नाम घनश्याम तिवाड़ी का उभरा है जो आगामी विधानसभा चुनाव में कितना बड़ा तीर मारेंगे इसके बारे में अभी से पुराना इतिहास देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजस्थान में कांग्रेस भाजपा के इलावा किसी भी दल के लिए भूमि उर्वरा नहीं है
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