जयपुर। 12 फरवरी 1968 को भारतीय जनसंघ संसदीय दल की बैठक नई दिल्ली में आयोजित हुई थी। इससे पहले 10 फरवरी को सुबह 8 बजे उन्होंने दीनदयाल से फोन पर
बैठक में आने का आग्रह किया गया कि वे बिहार की बैठक में शामिल हों।
‘एकांत मानववाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय’ के अनुसार,
उपाध्याय लखनऊ में लता खन्ना के घर थे। उन्होंने कहा कि दिल्ली संसदीय
महामंत्री सुंदर सिंह भंडारी ने उनसे बात नहीं की है ऐसे में वे पटना
अवश्य आएंगे और उन्होंने स्वीकृति दे दी।
उसके बाद उन्होंने पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस में प्रथम श्रेणी की टिकट
करवा ली और गाड़ी का समय शाम 7 बजे था और पंडित जी सही वक्त पर स्टेशन पर
पहुंच गए। उस दौरान उनके पास एक सूटकेस, बिस्तर, टिफिन और पुस्तकों का
थैला था। उस दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री रामप्रकाश
गु्प्त और उत्तर प्रदेश के एमएलसी पीतांबर दास भी थे।
इस ट्रेन में ही भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण के असिस्टेंट डायरेक्टर एमपी
सिंह, कांग्रेस एमएलसी सदस्य गौरीशंकर राय भी थे। वहीं दीनदयाल उपाध्याय
की सीट फर्स्ट कैटेगरी में सी कंपार्टमेंट में थी। लखनऊ से चलकर
बारांबकी, फैजाबाद, अकबरपुर शाहगंड होते हुए ट्रेन आधी रात जौनपुर
पहुंची। जौनपुर के महाराजा दीनदयाल के दोस्त थे, तो उन्होंने अपने सेवक
कन्हैया के हाथों एक पत्र दीनदयाल उपाध्याय को भिजवाया और रात को 12 बजे
उन्हें यह पत्र मिला।
उसके बाद रात 2.15 बजे गाड़ी मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची और
पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस पटना नहीं जाती थी, इसलिए बोगी काटकर
दिल्ली-हावड़ा ट्रेन से जोड़ दी गई। इसमें करीब आधे घंटे का वक्त लगा और
2 बजकर 50 मिनट पर ट्रेन फिर से पटना के लिए चल पड़ी और उसके बाद 3 बजे
उनका शव ट्रेन की पटरियों पर मिला।
वहीं दूसरी ओर ट्रेन 6 बजे ट्रेन पटना स्टेशन पर पहुंची, जहां बिहार
जनसंघ के नेता उनका इंतजार कर रहे थे। उन्होंने लखनऊ वाली बोगी भी देखी,
लेकिन दीनदयाल उपाध्याय नहीं मिले और साढ़े 9 बजे गाड़ी मुकामा स्टेशन पर
पहुंची। वहीं किसी की नजर बी कंपार्टमेंट में सीट के नीटे रखे हुए सूटकेस
पर पड़ी। उसने रेलवे अधिकारियों को यह सूट जमा करवाया और यह सूटकेस पं
दीनदयाल का था.