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राजस्थान की सरकार गिरते-गिरते बची ? - Dainik Reporters

राजस्थान की सरकार गिरते-गिरते बची ?

Dr. CHETAN THATHERA
7 Min Read

Jaipur News /ऋषिकेश राजोरिया। राजस्थान की सरकार गिरते-गिरते बची। जानकारों का कहना है कि कुछ टेके लगे हुए हैं, नहीं तो मध्य प्रदेश की तरह भरभराने में देर नहीं लगती। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत Ashok Gehlot की रणनीति की प्रशंसा हो रही है और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट Sachin Pilot आरोपों के घेरे में आ गए हैं। राजस्थान विधानसभा में 200 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 101 विधायकों का समर्थन चाहिए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे का दावा है कि उनके पास 109 विधायकों का समर्थन है। दूसरी तरफ सचिन पायलट का दावा है कि करीब 30 विधायक उनके साथ हैं।

जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकारें हैं, उन्हें नेस्तनाबूद करने के लिए भाजपा की तरफ से भरसक प्रयास हो रहे हैं। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया 19 विधायकों के साथ भाजपा में आ गए। इसी तरह राजस्थान में रणनीति बताई जाती है। राजस्थान की राजनीति मध्य प्रदेश से अलग है। मध्य प्रदेश में कमलनाथ मुख्यमंत्री थे। उनकी जुगलबंदी दिग्विजय सिंह के साथ है, जो सिंधिया को पसंद नहीं थी। इसके अलावा सरकार अत्यंत न्यूनतम बहुमत से चल रही थी। भाजपा की तरकीब काम कर गई। कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का वन-मैन शो है। सचिन पायलट के साथ उनकी जुगलबंदी होनी चाहिए थी, लेकिन क्यों नहीं हो सकी, इसके कई कारण होंगे। दोनों के बीच शुरू से ही तनातनी है। बताया जाता है कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। उप मुख्यमंत्री के रूप में जो विभाग उन्हें मिले हैं, वे भी संतोषजनक नहीं हैं। उप मुख्यमंत्री होने के अलावा वह राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं। फिर भी असंतुष्ट हैं। वह बहुत दिनों से मौके की ताक में थे। भाजपा को मध्य प्रदेश की तर्ज पर राजस्थान में भी कांग्रेस को निबटाने के लिए एक सक्षम असंतुष्ट की जरूरत है, जो कांग्रेस की सरकार को डांवाडोल करने की क्षमता रखता हो। पायलट भाजपा के मोहजाल में फंस चुके हैं।

सचिन पायलट ने पहली बार सरकार गिराने की क्षमता दिखाने का प्रयास किया, लेकिन विफल रहे, क्योंकि अशोक गहलोत भी कम नहीं हैं। वह इस तरह कैसे सरकार गिरने दे सकते हैं? पायलट भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिशों में जुटे थे, यह स्पष्ट हो चुका है। राजस्थान से जुड़े कई पूंजीपति मुंबई में बैठकर गणित लगा रहे हैं कि सरकार कैसे बदली जा सकती है। राज्यसभा चुनाव के दौरान इसके संकेत मिल गए थे। अगर कोरोना वायरस नहीं आ धमकता, तो अब तक बहुत कुछ हो जाता। लेकिन अब लगता है कि पायलट का धैर्य जवाब दे चुका है और वह कोई अन्य एयरपोर्ट तलाश रहे हैं। फिलहाल उनकी हालत लौट के बुद्धू घर को आए जैसी हो गई है।

सचिन पायलट के खिलाफ सख्ती इसलिए नहीं हो सकती कि वह एक राजनीतिक परिवार के सदस्य हैं। उनके पिता स्व.राजेश पायलट केंद्रीय मंत्री थे, मां रमा पायलट सांसद थीं और वह खुद सांसद और केंद्रीय मंत्री रहने के बाद अब राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री हैं। वह फारूक अब्दुल्ला के दामाद हैं। गहलोत उनकी तरह हाईप्रोफाइल नेता नहीं हैं। शायद इसी लिए पायलट सोचते होंगे कि मुख्यमंत्री तो मुझे होना चाहिए। और वह मुख्यमंत्री बन सकते हैं, क्योंकि उनके सामने एक लंबा जीवन है। अभी तो पायलट को गहलोत से सीखना चाहिए और राजनीतिक मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए। लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे।

इस समय अशोक गहलोत और पायलट दोनों ही अडि़यल मुद्रा में दिख रहे हैं। दोनों को भिड़ाने वाली भाजपा अब दूर से तमाशा देख रही है। अखाड़े में दो पहलवानों की कुश्ती चल रही है। दोनों ही एक-दूसरे को चित करने के लिए तरह-तरह के दाव आजमा रहे हैं। मीडिया को टीआरपी बटोरने का मौका मिल गया है और भक्तों को यह कहने का कि देखो ये कांग्रेसी आपस में ही कैसे उलझ रहे हैं। इस तरह हो रही जगहंसाई की परवाह सचिन पायलट को बिलकुल नहीं है। अशोक गहलोत को भी सरकार चलाने की बजाय विधायकों को समेटना पड़ रहा है। कोई छिटक न जाए।

राजस्थान में सचिन पायलट का दाव नहीं चला। इसके बाद गहलोत के नजदीकी कई लोगों के यहां आयकर विभाग के छापे पड़ने लगे हैं। समझा जा सकता है कि राजनीतिक वर्चस्व बनाने के लिए सत्ता का किस तरह उपयोग हो रहा है। सचिन पायलट यह बात नहीं समझ सकते क्योंकि वह कभी भी साधारण नागरिक की तरह नहीं रहे। उनकी राजनीतिक पारी पार्टी कार्यकर्ता के रूप में शुरू नहीं हुई थी। भाजपा को ऐसे ही कांग्रेस नेताओं की तलाश रहती है, जो हमेशा सत्ता से जुड़े रहना चाहते हैं। जैसे मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य हो गए और राजस्थान में सचिन पायलट।

यह भारतीय लोकतंत्र की भगवा रंग से बनी नई तस्वीर है। इसमें भाजपा ने वर्चस्ववाद शुरू कर दिया है। उसकी जिद है कि हर प्रदेश का नक्शा भगवा रंग का ही होना चाहिए। भले ही उसके लिए कुछ भी करना पड़े। साम, दाम, दंड, भेद सभी का उपयोग हो रहा है। कांग्रेस हाईकमान को समझना चाहिए कि वह भाजपा के हमलों से कैसे बच सकता है? क्या कांग्रेस इस तरह भाजपा को चुनौती देगी? जब पार्टी में एकजुटता ही नहीं है, मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री आमने-सामने हो रहे हैं तो भविष्य क्या होगा, समझा जा सकता है। राजस्थान में फिलहाल तो संकट टल गया है, लेकिन सतह के नीचे उथल-पुथल कायम है, जो कभी भी तूफान का रूप ले सकती है।

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चेतन ठठेरा ,94141-11350 पत्रकारिता- सन 1989 से दैनिक नवज्योति - 17 साल तक ब्यूरो चीफ ( भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़) , ई टी राजस्थान, मेवाड टाइम्स ( सम्पादक),, बाजार टाइम्स ( ब्यूरो चीफ), प्रवासी संदेश मुबंई( ब्यूरी चीफ भीलवाड़ा),चीफ एटिडर, नामदेव डाॅट काम एवं कई मैग्जीन तथा प समाचार पत्रो मे खबरे प्रकाशित होती है .चेतन ठठेरा, दैनिक रिपोर्टर्स.कॉम