
नई दिल्ली/ जयपुर/ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के होने वाले चुनाव को लेकर जहां तस्वीर साफ हो गई है कि गांधी परिवार से कोई भी यह जिम्मेदारी नहीं संभालेगा तो वही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ना तय है और राजस्थान में सरकार का नया पायलट भी बदलना अब करीब-करीब तय हो गया है राजस्थान सरकार का नया पायलट कौन होगा सचिन पायलट या डॉक्टर सीपी जोशी इसको लेकर अभी मंथन और सस्पेंस जारी है वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए होने वाला चुनाव अब रोचक हो गया है ।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी द्वारा अपने बयान पर अडिग रहते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से साफ इनकार कर दिया है इसके बाद अब अशोक गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का निर्णय कर लिया है और वह 28 सितंबर को अपने समर्थकों और राजस्थान सरकार में अपने विधायकों की मौजूदगी में कांग्रेस के चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री के समक्ष अपना नामांकन भरेंगे वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए गहलोत का मुकाबला शशि थरूर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कमलनाथ तथा सांसद मनोज तिवारी के भी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का ऐलान करने के बाद अब यह चुनाव बड़ा रोचक हो गया है ।
अगर थरूर दिग्विजय सिंह कमलनाथ और तिवारी मैदान में उतरते हैं तो ऐसी स्थिति में चुनावी समीकरण काफी रोचक होंगे उधर सोनिया गांधी ने स्पष्ट किया है कि व्यक्तिगत तौर पर किसी का भी समर्थन नहीं करेगी।
इधर दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के बाद अशोक गहलोत को पद की गरिमा के अनुरूप राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना होगा और उन्होंने इसका ऐलान भी कर दिया है इसी के साथ ही राजस्थान सरकार का नया पायलट कौन होगा इसको लेकर भी मंथन और लॉबिंग शुरू हो गई है।
इस दौड़ में युवा नेता पूर्व उपमुख्यमंत्री पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट तथा डॉक्टर सीपी जोशी का नाम प्रमुख रूप से आगे हैं पहले इस दौड़ में गहलोत सरकार के कैबिनेट मंत्री और गहलोत के विश्वसनीय शांतिलाल धारीवाल और डॉक्टर बी डी कल्ला का नाम भी शामिल था लेकिन अब इस दौड़ से बाहर हो गए हैं अब इस दौड़ में सिर्फ पायलट और डॉक्टर जोशी ही बचे है ।
राजनीति के विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि अगर आगामी चुनाव को देखते हुए सचिन पायलट को राजस्थान की कमान सौंपी जाती है तो वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर गहलोत के रहते हुए बड़े दबाव में रहेंगे और संभवतया वह खुलकर कार्य नहीं कर पाएंगे और गहलोत का हस्तक्षेप बराबर रहने से पायलट के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
और अगर सचिन पायलट को अध्यक्ष बनाया जाता है तो वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को पद छोड़ना पड़ेगा और कांग्रेस में जाट समुदाय से बड़े पद पर कोई नहीं होगा इससे आने वाले चुनाव में जाट समुदाय की कांग्रेस के प्रति नाराजगी हो सकती है यह न तो कांग्रेस और नहीं अशोक गहलोत चाहेंगे ।
दूसरी ओर अगर राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर पायलट को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बना भी दिया जाता है तो आने वाले चुनाव में अगर पार्टी अगर वापस सत्ता में नहीं आती है तो हार का ठीकरा सचिन पायलट पर फोड़ा जा सकता है और स्वयं सचिन पायलट भी शायद ऐसे परिस्थितियों में प्रदेशाध्यक्ष बनने के मूड में नहीं ?